मेडिकल के कैंसर विभाग का बड़ा खुलासा- अभी भी जड़ी-बूटी, झाड़-फूंक पर विश्वास

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे. शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के कैंसर रोग विभाग की ओपीडी में हर रोज नए-पुराने मिलाकर औसतन 100 मरीज आते हैं। इसमें पुराने मरीज 60 व नए मरीजों की संख्या 40 के आस-पास होती है। इनमें से 50 फीसदी मरीज सिर और गर्दन (हेड एंड नेक) के कैंसर से पीड़ित होते हैं। इन मरीजों में से 80 फीसदी यानी 40 मरीजों की बीमारी तीसरे व चौथे चरण में पहुंच चुकी होती है।
सिर और गर्दन कैंसर का प्रमाण ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में अधिक पाया जाता है। वहां अब भी जागरुकता की कमी है। कैंसर के प्राथमिक लक्षणों की जानकारी नहीं होने से ग्रामीण लोग सामान्य क्लीनिक में जाकर दवाएं लेते रहते है। सामान्य उपचार से थोड़े समय के लिए आराम मिल जाता है, उससे संतुष्ट होते हैं। पुन: यही चक्र चलता है। अधिकतर ग्रामीण जड़ी-बूटी देने वालों के पास जाकर उपचार करवाते हैं। ग्रामीण लोग अब भी झाड़-फूंक पर विश्वास कर उपचार के नाम पर वहां समय बर्बाद करते हैं, जबकि 2 महीने के बाद कैंसर तेजी से फैलने लगता है। लंबा समय बीत जाने पर भी जब पूरी तरह लाभ नहीं होता, तब वे स्पेशलिटी अस्पतालों के डॉक्टरों के पास पहुंचते हैं। तब तक उनका कैंसर तीसरे या चौथे चरण में पहुंच चुका होता है। मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में आनेवाले मरीजों की यही कहानी होती है।
मुंह में छाले : ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले 40 साल के युवक अमेय (बदला हुआ नाम) के मुंह में बार-बार छाले आ रहे थे। चार डॉक्टरों के क्लीनिक में उपचार करवाया, लाभ नहीं हुआ। हकीम के पास पहुंचा, तो जड़ी-बूटी से उपचार शुरू हुआ। तीन महीने बीत गए, तब किसी परिचित ने कैंसर रोग विभाग में जाकर जांच करने की सलाह दी। पता चला कैंसर चौथे चरण में पहुंच चुका है।
गर्दन में गांठ : शह
55 साल के जोगेंद्र (बदला हुआ नाम) के गर्दन में एक गांठ हुई थी। सामान्य क्लीनिक में जाकर उपचार करवाना शुरू किया। अलग-अलग तरह की जांच के बाद दवाएं लीं, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। अंतत: किसी ने उसे मेडिकल अस्पताल में जाने की सलाह दी। जांच के बाद उसे कैंसर रोग विभाग में भेजा गया। वहां कैंसर होने की पुष्टि हुई। यह तीसरे चरण में पहुंच चुका है।
कैंसर का प्रकार देख कर उपचार
संबंधित रोगी का कैंसर का प्रकार और उसके चरण के आधार पर उपचार पद्धति अपनाई जाती है। जांच के लिए सीटी स्कैन, पीईटी स्कैन, एक्स-रे, एमआरआई स्कैन किया जाता है। उपचार के लिए कीमोथेरेपी, इम्यूनोथेरेपी, सर्जरी, रेडियोथेरेपी, रेडियोमोथेरेपी आदि प्रक्रिया की जाती है।
लक्षण : सिर, गर्दन के कैंसर के शुरुआती लक्षणों में लंबे समय तक मुंह में छाले होना शामिल है। मुख्य रूप से मुंह में दर्द, निगलने में कठिनाई, जबड़े की गति कम होना, गर्दन में गांठ आना, वजन कम होना, दांतों का गिरना, सांसों में बदबू आना, मुंह में लाल पैचेस, मुंह में सफेद धब्बे समेत मुंह का पूरा नहीं खुलना आदि शामिल है।
प्रमुख कारण : सिर और गर्दन के कैंसर होने के पीछे दो प्रमुख कारण है। इसमें शराब का अधिक सेवन और तंबाकू व तंबाकूजन्य पदार्थों का सेवन शामिल है। इसके अलावा सिगरेट, सिगरेट का धुआं, जर्दा, गुटखा, खैनी का सेवन, सुगंधित तंबाकू सूंघना, नस सूंघना भी शामिल है। इनसे 70% से अधिक कैंसर होने की आशंका होती है। इन पदार्थों से टॉन्सिल, तालू और जीभ व अन्य मौखिक आधार काे प्रभावित होते हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में सर्वाधिक मामले
डॉ. अशोक कुमार दीवान, कैंसर रोग विभाग प्रमुख के मुताबिक सिर और गर्दन के कैंसर के 50 फीसदी मामले सामने आ रहे हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्र के सर्वाधिक मामले होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता का अभाव होने से ऐसा हो रहा है। कैंसर को हराया जा सकता है, बशर्ते पीड़ित शुरुआती चरण में ही जांच व उपचार करवाएं। थोड़ा भी संदेह होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाना चाहिए। उनकी सलाह अनुसार नियमित जांच व उपचार करवाना चाहिए। मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में सारी सुविधाएं नि:शुल्क उपलब्ध है। यहां आकर आसानी से उपचार करवाया जा सकता है।
Created On :   12 Feb 2023 5:00 PM IST