बीटी और एचटीबीटी के विनाश से किसानों को बचाने की उठ रही मांग

Case against farmers who sowing htbt and bt in maharashtra
बीटी और एचटीबीटी के विनाश से किसानों को बचाने की उठ रही मांग
बीटी और एचटीबीटी के विनाश से किसानों को बचाने की उठ रही मांग

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विदर्भ के अकोला समेत कई जिलों में बीटी कपास की बुवाई करने और खुलकर अपनी पसंद के बीज चुनने के लिए आवाज उठाने की खबरें आती रही हैं। प्रतिबंधित बीजों की बुवाई के कारण राज्य के 12 किसानों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो चुके हैं। यह कार्रवाई शेतकरी संगठन के समर्थन से कई जगहों पर प्रतिबंधित बीजों की बुवाई के बाद की गई। भाजपा नेता रामदास तडस के खुलकर इसके पक्ष में आने से मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है। विदर्भ के किसान संगठन, कृषि विशेषज्ञ और पर्यावरणविदों ने किसानों में एचबीटी के प्रति बढ़ते आग्रह के कारण इस विषय पर तत्काल निर्णय लिए जाने की मांग की। उन्होंने पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक एचबीटी बीजों के प्रति प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से तत्काल निर्णय लेने की मांग की। मांग करने वालों में कृषि विशेषज्ञ विजय जावंधिया, डॉ. पंजाबराव देशमुख जैविक शेती मिशन तथा किसान ब्रिगेड के संस्थापक प्रकाश पोहरे, कृषि वैज्ञानिक विचार मंच के डॉ. शरद पवार, कृषि विशेषज्ञ डॉ. आनंद मुकेवार, डॉ. एसई पवार शामिल हैं। सभी ने एकमत से कहा कि बीटी और एचटीबीटी किसानों, भूमि और पर्यावरण के लिए विनाशक साबित हो रही है। इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को तत्काल नियम बनाने की जरूरत है। 

किसानों के लिए तारक नहीं मारक
महाराष्ट्र शेतकरी संगठन किसानों को तकनीकी स्वतंत्रता के नाम पर बीटी बैंगन, बीटी कपास, एचटीबीटी कपास और एचटी सोयाबीन लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। भारतीय बीज कंपनियां आज भी अपने स्वार्थ के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनी मॉन्सेटो-बायर को बढ़ावा दे रही हैं। इससे किसानों, पर्यावरण और लोगों का भारी नुकसान हो रहा है। वर्ष 2002 से चल रहे इस विवादास्पद मामले में सरकार अब तक कोई ठोस नीति नहीं बना पाई है। किसानों को अधिक उत्पादन के नाम पर बीज कंपनियां बरगला रही हैं। बीटी बीजों की ब्रिकी प्रतिबंधित हाेने के बावजूद बीज किसानों तक आसानी से पहुंच रहे हैं, जबकि जिन देशों में ये बीज विकसित किए गए हैं, वहां इन पर रोक लगाई जा चुकी है।  -{डॉ. एस.ई. पवार, विशेषज्ञ (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से सेवानिवृत्त) 

प्रतिबंधित बीज उत्पादकों पर हो कार्रवाई
खर-पतवार नष्ट करने के लिए विदर्भ के किसानों द्वारा उपयोग में लाए जा रहे ग्लायफोसेट खर-पतवार नाशक से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। किसान इतना जागरूक नहीं हैं कि इनके प्रभावों को समझ पाएं। उनके लिए खर-पतवारों से आसानी से छुटकारा पाना अहम है। किसानों को ऐसे बीज से फसल लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है। सरकार को प्रतिबंधित बीजों की ब्रिकी के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। (विजय जावंधिया)

किसानों पर कार्रवाई से समस्या का समाधान नहीं
विदर्भ में जीएम बीजों के अवैध इस्तेमाल पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है। भले ही प्रतिबंधित कीटनाशकों ग्लायफोसेट की ब्रिकी पर रोक लगा दिया गया है, लेकिन उसे कठोरता से लागू नहीं किया गया है। एक तरफ सरकार किसानों के हित के लिए कई योजनाएं बना रही हैं और दूसरी तरफ बीज कंपनियां अपने स्वार्थ के लिए उन्हें बरगला रही हैं। केवल अवैध रूप से प्रतिबंधित बीजों को बोनेवाले किसानों पर कार्रवाई से इस मामले को सुलझाना संभव नहीं है। जीएम बीजों के भयंकर दुष्परिणाम हैं। इससे जैव विविधता प्रभावित हो सकती है। इन बीजों से उगने वाले पौधों पर नए तरह के कीट नजर आते हैं। अत्यधिक उत्पादन का वादा भी गलत साबित हुआ है।  (प्रकाश पोहरे, किसान ब्रिगेड के अध्यक्ष)
 

Created On :   18 July 2019 8:54 AM GMT

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