इस दुर्गम क्षेत्र में 365 दिन शुरू रहती है स्कूल, एडमिशन फुल का लगाना पड़ा बोर्ड

Chandrapur :This School runs in this inaccessible area whole year
इस दुर्गम क्षेत्र में 365 दिन शुरू रहती है स्कूल, एडमिशन फुल का लगाना पड़ा बोर्ड
इस दुर्गम क्षेत्र में 365 दिन शुरू रहती है स्कूल, एडमिशन फुल का लगाना पड़ा बोर्ड

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। अच्छे-अच्छे बड़े स्कूलों के बच्चे संडे की छुट्टी में मस्ती के मूड में रहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा पर बसे जिवती आदिवासी दुर्गम तहसील के 400 आबादी वाले छोटे से गांव पालडोह में संडे हो या मंडे रोज क्लास चलती है। पांच शिक्षकों के भरोसे पालडोह की स्कूल 365 दिन चल रही है। कान्वेंट कल्चर के दौर में मराठी स्कूलों से जहां पैरेंट्स मुंह फेरते हैं, वहीं इस स्कूल में एडमिशन की होड़ लगी है। यहां का एडमिशन हाउसफुल हो चुका है। मजबूरन शाला में प्रवेश हाउसफुल का बोर्ड लगाया गया है।

गौरतलब है कि, चंद्रपुर जिले के महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा पर बसा जिवती आदिवासी दुर्गम तहसील है। इसी तहसील में 400 आबादी वाला छोटासा गांव है पालडोह। इस गांव में कक्षा पहलीं से आठवीं तक जिला परिषद की शाला है। 151 विद्यार्थी क्षमता वाले इस शाला में 5 शिक्षक हैं। शाला दुर्गम क्षेत्र में होने से केवल दो कक्षा के भरोसे शिक्षकों को कक्षा पहलीं से आठवीं तक के छात्रों को पढ़ाना पड़ रहा है। विशेष बात यह है कि, पिछले 5 वर्षो से 365 दिन यह शाला शुरू रहती है। आमतौर पर जिला परिषद के शाला में शैक्षणिक सत्र शुरू होने के बाद भी प्रवेश मिलता है। वहां सीटें भी खाली रहती है। लेकिन इस शाला में 15 मई को ही प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण हो गई। जिससे अब पाल्यों के प्रवेश के लिए आनेवाले पालकों को वापस लौटने की नौबत आन पड़ी है। विद्यादान का कार्य प्रामाणिक रूप से किया गया तो मराठी शाला को भी कैसा वैभव आ सकता है, इस शाला ने दिखा दिया है।

इस शाला का नाम तहसील में इतना रोशन हुआ है कि, कई विद्यार्थी यहां प्रवेश लेने के इच्छुक हैं। लेकिन उन्हें प्रवेश नही मिल रहा। प्रवेश संख्या मर्यादित होने के चलते शिक्षक भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में शिक्षकों ने शाला प्रबंधक समिति को विश्वास में लेकर चंदा जमा कर शाला निर्माणकार्य के लिए जगह ली और जिला परिषद ने इसके लिए निधि मंजूर किया। जिससे अब नए से दो कक्षाओं का निर्माणकार्य जारी है। जिसके बाद विद्यार्थियों की संख्या और बढ़ेगी। 

स्वमर्जी से विद्यादान, तड़के 4 बजे उठते है बच्चे 
स्कूल में जितने बच्चे पढ़ रहे हैं, उन्हें अच्छी शिक्षा देने के लिए यहां के शिक्षक अथक परिश्रम ले रहे हैं। उनके लिए ग्रीष्मकाल की छुट्टियां भी नही लेते। स्वमर्जी से विद्यादान का कार्य कर रहे है। विद्यार्थियों को केवल किताबी ज्ञान नही बल्कि शारीरिक दृष्टि से तंदुरूस्त करने पर भी शिक्षकों का जोर है। जिससे तड़के 4 बजे बच्चों को व्यायाम, योग और मैदानी खेल के लिए उठाया जाता है। विद्यार्थी भी बड़े आनंद से घर से उठकर शाला में आते है। 365 दिन यह उपक्रम चलाया जाता है। 

भौतिक सुविधाओं की फिर भी कमी
पिछले 5 वर्षो से 365 दिन शाला चला रहे है। यह उपक्रम अच्छा चल रहा है। पिछले वर्ष कक्षा पहली से कक्षा आठवीं तक के 122 विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया। बैठने के लिए दो ही कक्षाएं थे थे। तीन शिक्षक अभी मिले हैं। पहले कम शिक्षक में संभाल रहे थे। अब नई दो कक्षाएं निर्माणाधीन है। इस वर्ष 43 विद्यार्थियों को 15 मई तक प्रवेश दिया गया। इनमें 25 विद्यार्थी तो कॉन्वेंट के हैं। अन्य पालकों को तारीख पता नही थी। जिससे अब वें शाला में आकर प्रवेश की मांग कर रहे है। लेकिन यहां कक्षाएं व भौतिक सुविधाओं की कमी होने के चलते प्रवेश बंद किया गया।  (राजेंद्र परतेकी, प्रभारी मुख्याध्यापक जिप उच्च प्राथमिक शाला, पालडोह)

Created On :   18 May 2019 1:33 PM GMT

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