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दिया-बाती और फूल मालाओं में उलझा बचपन
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा। दीपावली की चकाचौंध वाले बाजार में दिया-बाती ले लो..., फूल माला ले लो... की नन्हीं तुतलाती आवाजें भी गूंजती नजर आई। गले में बाती की टोकरी टांगकर बीच बाजार बच्चे कुछ इस तरह अपने वर्तमान से जूझते हुए भविष्य को तलाशते रहे। बाती और टोकरी का वजन सह सकने की क्षमता भले ही उनमें दिख रही थी, लेकिन भविष्य का बोझ वे इतनी सहजता से संभाल पाएंगे यह सवाल उभर रहा था। ऐसे बच्चे आमतौर पर अपने परिवार की आय का सहारा बनने की मजबूरी में ही परिवार का हाथ बंटाते पाए जाते हैं। बावजूद इसके ये बालकों यानी18 वर्ष से कम आयु वालों के संरक्षण के लिए बने कानून समेत सरकारी योजनाओं को आइना दिखाते हुए उनके क्रियान्वयन पर सवाल खड़े कर रहे हैं। खेलने-कूदने और त्योहारों में खुशी से चहकने के बजाए बच्चे बाजार में बालश्रमिक या बाल व्यापारी की शक्ल में दिखाई देने के लिए सबसे पहले उनके पालक, उन्हें ऐसा करते देखने वाले और बाल संरक्षण कानून और बच्चों से जुड़ी सरकारी योजनाओं का पालन कराने का जिम्मा लेकर बैठे विभाग जिम्मेदार हैं।
बालकों के संरक्षण के लिए कानून:
- बालकों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम 2015 के तहत जरूरतमंद बालकों के हितों की रक्षा के लिए ढेर सारे प्रावधान किए गए हैं।
- राइट टू एजुकेशन अधिनियम के तहत हर बालक की शिक्षा सुनिश्चित की गई है। यानी कोई भी उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं रख सकता है। चाहे माता-पिता क्यों न हो।
संरक्षण के लिए सरकारी एजेंसियां:
- महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत समेकित बाल संरक्षण इकाई की प्रत्येक जिले में स्थापना की गई है। बड़ा अमला इस कार्य में लगाया गया है।
- जरूरत मंद बच्चों की मदद के लिए चाइल्ड लाइन का संचालन किया जा रहा है। चाइल्ड लाइन की बड़ी टीम इसके लिए लगाई गई है।
- पुलिस विभाग ने बच्चों की मदद व उनसे जुड़े मामलों के लिए विशेष किशोर पुलिस इकाई का गठन कर रखा है। प्रत्येक थाने में बाल संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया गया है।
- बेसहरा, परित्यक्ता, गुमशुदा बच्चों को संरक्षण देने महिला एवं बाल विकास विभाग लाखों का बजट हर साल खर्च कर बालगृह और शिशु गृह का संचालन जिले में करा रहा है।
Created On :   13 Nov 2020 5:24 PM GMT