स्कूल छोड़ कर महुआ के फूल बीन रहे हैं बच्चे- है आमदनी का परम्परागत जरिया

childrens are picking mahua flowers instead of going to school
स्कूल छोड़ कर महुआ के फूल बीन रहे हैं बच्चे- है आमदनी का परम्परागत जरिया
स्कूल छोड़ कर महुआ के फूल बीन रहे हैं बच्चे- है आमदनी का परम्परागत जरिया

डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा/परासिया। चैत्र माह में गुल्ली के पेड़ों पर महुआ फूल की बहार आई है। अंचल में पेड़ों से टूटकर नीचे गिरते महुआ फूल बीनने आदिवासी परिवार जुटे हुए हैं। इस काम में परिवार के सभी सदस्य अपनी भूमिका निभा रहे हैं। स्कूलों में परीक्षा के बाद गर्मियां की छुट्टी में बच्चें भी अपने परिवार के लिए महुआ बीनने में मदद कर रहे हैं। कुछ लोगों ने पेड़ के आसपास ही अपनी झोपड़ी बनाकर अस्थाई बसेरा कर लिया है।
छिंदवाड़ा जिले के तामिया, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, हर्रई, परासिया, सौंसर, पांढुर्णा और मोहखेड़ ब्लाक में महुआ फूल और गुल्ली फल की बहुत पैदावार है। एक ही पेड़ से फूल और फल के रूप में दो अलग अलग उपज मिलने से आदिवासी अंचलों के लोग इसे हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। परिवार के बड़े सदस्यों के साथ ही छोटे बच्चें भी इस काम में पूरी मदद करते हैं। सुबह उजाला होते ही पेड़ों के नीचे महुआ बीनने सबसे पहले बच्चें ही पहुंचते हैं। बांस की टोकनी अथवा अन्य किसी पात्र में महुआ को एकत्रित कर किसी साफ, समतल और सुरक्षित स्थान पर उसे फैलाकर सूखने के लिए छोड़ देते हैं। महुआ पेड़ पर अपना हक जताने के लिए इन दिनों उसके ऊपर कोई कपड़ा लटका दिया जाता है। जिससे उस पेड़ से गिरे महुआ को कोई दूसरा नहीं बीनता है।
पलायन किया तो घर पर महुआ बीनने छोड़ दिया बुजुर्ग और बच्चें
पहाड़ी और वनांचलों में पानी की कमी और रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में पलायन होता है। लगभग 15 से 30 फीसदी घरों में इन दिनों ताले लटक रहे हैं। वहीं 40 से 55 फीसदी घरों में फसल, मवेशी की देखभाल और महुआ बीनने के लिए बुजुर्गों और बच्चों को छोड़ दिया गया है।
बढ़े महुआ के दाम
पहले संग्रहकों को अपना महुआ औने पौने दाम पर बेचना होता था। वहीं बिचौलिए उनका कुछ दिनों तक गोदामों में संग्रहण कर अच्छे दाम कमाते थे। अब हालात बदलने वाले हैं। बिचौलियों द्वारा 12 से 18 रुपए प्रतिकिग्रा दर पर महुआ खरीदा जाता था, सरकार ने महुआ के दाम 30 रुपए निर्धारित कर दिया है।
जंगली सूअरों के बढ़ जाते हैं हमले
महुआ बीनना अलसुबह से शुरू हो जाता, इस दौरान वन्य प्राणी भी सक्रिय रहते हैं। महुआ बीनने वालों पर जंगली  सुअरों के सबसे अधिक हमले इसी दौरान होते हैंं। महुआ में नमी भी होने से शाकाहारी प्राणियों के साथ जंगली सुअर भी उन्हें खाने पहुंच जाते हैं। आबादी क्षेत्रों और खेतों में लगे पेड़ों से गिरे महुआ को पालतु मवेशी भी खा लेते ह

Created On :   7 April 2018 5:52 PM IST

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