Chhindwara News: नागद्वारी मेला, आस्था के साथ रोमांच से भरपूर नागलोक में छिपे हैं रहस्य

नागद्वारी मेला, आस्था के साथ रोमांच से भरपूर नागलोक में छिपे हैं रहस्य
  • जहरीले सांपों से सामना होना अब आम बात नहीं रही
  • आज से शुरु होगी 10 दिनों की रोमांचक धार्मिक यात्रा
  • सतपुड़ा फारेस्ट रिजर्व एरिया होने की वजह से इन स्थानों पर जाने के लिए श्रद्धालुओं को साल भर इंतजार करना पड़ता है।

Chhindwara News: सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में हर साल लगने वाला नागद्वारी मेला रहस्यों और रोमांच से भरपूर होता है। बादलों को छूते सर्पाकार पहाड़ों पर पैदल चढऩा उतरना, झरनों के बीच से गुजरना, कभी बादलों के ऊपर तो कभी बादलों के नीचे होने का एहसास यहां होता है। संकरे रास्ते से एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर चढऩा रोमांच से ज्यादा खतरों से भरा हुआ है। लेकिन हरिहर के नारों के साथ लोग मुश्किल सफर को भी आसानी से पार कर लेते हैं।

दरअसल नागद्वारी नर्मदापुरम के पचमढ़ी हिल स्टेशन से करीब 20 किलोमीटर दूर सतपुड़ा फारेस्ट रिजर्व एरिया के अंदर मौजूद है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए करीब 17 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है। जिसमें 2 दिन का समय तक लग जाता है। बीच के पड़ावों पर जंगल में टेंट या पहाड़ों की ओकट में रात गुजारनी पड़ती है। सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में सबसे ऊची चोटी धूपगढ़ समुद्र तल से 1,352 मीटर ऊंचाई पर है।

इसी स्थान के पास से ही दर्जनों पहाड़ों को पार कर बड़े द्वार यानि पद्मशेष तक पैदल पहुंचा जाता है। इस रास्ते के पहाड़ों की ऊंचाई भी धूपगढ़ की ऊंचाई के समकक्ष ही लगती है। 100 सालों से भी ज्यादा समय से चली आ रही इस यात्रा के प्रति लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है। कहते हैं कि इस नागलोक में कई रहस्य छिपे हैं। गुफाओं के द्वार पर नागदेवता की बड़ी-बडी मूर्तियां हैं। यहां के पहाड़ सर्पाकार हैं।

इस रास्ते पर चलते समय कभी बादलों के ऊपर होने का अहसास होता है तो कभी बादल सिर को छूकर निकल जाते हैं। हर पल मौसम में होने वाले परिवर्तन मन को प्रफुल्लित कर देते है। कुछ सालों पहले तक जहरीले सांपों से सामना होना यहां आम बात थी, लेकिन अब इनके दर्शन विरले ही होते हैं। मानो सांपों ने शिव भक्तों के लिए रास्ता छोड़ दिया है। हमेशा से आस्था का केंद्र रहे नागद्वारी मेले में अब आस्था के साथ दुर्गम पहाडिय़ों, खतरनाक रास्तों और घने जंगल पर्यटकों को लुभा रहे हैं। सतपुड़ा फारेस्ट रिजर्व एरिया होने की वजह से इन स्थानों पर जाने के लिए श्रद्धालुओं को साल भर इंतजार करना पड़ता है।

10 दिनों तक जारी रहेगा मेला

हर बार की तरह इस बार भी मेला 10 दिनों का रहेगा जो 19 जुलाई से 29 जुलाई तक आयोजित होगा। इस मेले में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। कुछ सालों से इस मेले में पर्यटन व रोमांच के शौकीनों की संख्या भी बढ़ी है। इस बार 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। नर्मदापुरम प्रशासन, महादेव मेला समिति व अन्य धार्मिक समितियां मंडल अपनी तैयारी पूरी कर चुके हैं।

100 साल से चल रही धार्मिक यात्रा

नागद्वार मंदिर की धार्मिक यात्रा को शुरू हुए 100 साल से ज्यादा हो गए हैं। लोग 2-2 पीढिय़ों से इस मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं। यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र हैं। महाराष्ट्र के लोग यहां मन्नतें लेकर आते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिर के चमत्कार और नाग देवता की कृपा से लोगों के काम होते हैं। पचमढ़ी तहसील कार्यालय के मुताबिक सबसे पहले 1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था। इसके बाद 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ। यह समिति नागद्वारी धार्मिक यात्रा में व्यवस्थाओं के लिए काम करती है।

ये है नागद्वार यात्रा का रूट

- पचमढ़ी बस स्टैंड (अस्थाई) से गणेशगिरी मंदिर - 7 किलोमीटर (वाहन से)

- गणेशगिरि से कालाझाड़ (पैदल यात्रा शुरू होती है) - 3 किलोमीटर लगभग

- कालाझाड़ से काजली गांव 5 किलो मीटर लगभग

- काजली से पद्मशेष (बड़ा द्वार) 5 किलो मीटर लगभग

- पद्मशेष से पश्चिम द्वार 2 किलो मीटर लगभग

- पश्चिम द्वार से स्वर्ग द्वार 2 किलो मीटर लगभग

- स्वर्ग द्वार से चिंतामन 3 किलो मीटर लगभग

- चिंतामन से चित्रशाला माता (माई की गिरी 1 किलो मीटर लगभग खड़ी पहाड़ी)

- माई की गिरि से दूधधारा 500 मीटर लगभग

- दूध धारा से गुप्तगंगा 1 किलोमीटर लगभग

- गुप्तगंगा से कालाझाड़ 2 किलो मीटर लगभग

यात्रा से दूर हो जाती है बीमारी, जो मांगों वो मन्नत भी होती है पूरी

नागद्वार यात्रा को लेकर मान्यता है कि पद्मशेष, चिंतामन, चित्रशाला माता, पश्चिम द्वार, नंदीगढ़ जैसे स्थानों पर दर्शन मात्र से ही दुख दूर हो जाते हैं, व्यक्ति निरोगी हो जाता है। मन्नत पूरी होती है। सर्पदोष भी दूर हो जाते हैं। इन स्थानों पर अलौकिक शक्तियों का वास है। कहते हैं कि सालों पहले इस यात्रा के दौरान रास्ते भर सर्प के दर्शन होते थे। श्रद्धालु इन्हें हाथों से हटाकर आगे का सफर तय करते थे। आज तक सर्पदंश की कोई घटनाएं सामने नहीं आई। लेकिन अब यह विरले ही दिखते हैं।

पैदल यात्रा के लिए यह साथ जरूर रखें

- टार्च या इमर्जेंसी लाइट (क्योंकि जंगल में रोशनी की व्यवस्था नहीं है।)

- कपूर व लाइटर (रास्ते भर मंदिरों में कपूर जलाने की प्रथा है, इसकी आरती लेने से थकान भी दूर हो जाती है, इसकी गंध से कीड़े भी नजदीक नहीं आते, आक्सीजन लेवल भी बढ़ता है)

- कपड़े टेरीकॉट के रखें ताकि सूखने में आसानी हो।

- बारिश के बिना यात्रा कठिन हो जाती है, इसीलिए यात्रा करने से पहले पैदल चलने की आदत डाल लें, जिससे थकान का अहसास कम हो।

मंडलों और कोरकू का यात्रा में अहम रोल

जिला प्रशासन और महादेव मेला समिति के जरिए ही श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्थाएं उपलब्ध कराती है। महाराष्ट्र और छिंदवाड़ा के दर्जनों धार्मिक मंडल श्रद्धालुओं के लिए खाने व ठहरने की व्यवस्थाएं नि:स्वार्थ भाव से करते हैं। वहीं

छिंदवाड़ा और नर्मदापुरम के पिपरिया में बसी आदिवासियों की कोरकू जाति इस यात्रा में अहम रोल अदा करती है। आदिवासियों की कोरकू जाति इन मंडलों के भारी भरकम सामान को पहाड़ों तक पहुंचाने में मदद करती है। मंडलों व कोरकू के बिना यह यात्रा पूरी करना मुश्किल है।

Created On :   19 July 2025 2:12 PM IST

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