एलपीजी डीलरशिप रद्द करने पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम को थमाया अवमानना नोटिस

Contempt notice handed over to hindustan petroleum for cancellation of lpg dealership
एलपीजी डीलरशिप रद्द करने पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम को थमाया अवमानना नोटिस
एलपीजी डीलरशिप रद्द करने पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम को थमाया अवमानना नोटिस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन प्राइवेट लिमिटेड (एचपीसीएल) के क्षेत्रीय प्रबंधक को अवमानना नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता ब्लू फ्लेम ट्रेडर्स की प्रोप्राइटर कुमुदिनी मिश्रा की याचिका पर यह नोटिस जारी किया है। दरअसल, याचिकाकर्ता एलपीजी गैस वितरक है। कुछ वर्ष पूर्व उन्होंनें अपने बेटे दीपक मिश्रा के साथ मिलकर पार्टनरशिप में यह एजेंसी शुरू की थी। बाद में दीपक का निधन हो गया। एचपीसीएल के नियमों के अनुसार पार्टरनशिप फर्म में एक पार्टनर की मृत्यु हो जाने पर मृतक के वंशज को पार्टनरशिप संभालनी होती है, लेकिन याचिकाकर्ता को ऐसा कोई पार्टनर नहीं मिला और बीते कुछ वर्षों से वे अकेले ही बतौर प्रोप्राइटर यह एजेंसी चला रही थीं, लेकिन 3 अगस्त को  एचपीसीएल ने उनकी एलपीजी डीलरशिप रद्द कर दी, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली।

हाईकोर्ट ने 3 सितंबर को अंतरिम आदेश जारी करते हुए डीलरशिप निलंबित करने पर रोक लगाई थी, लेकिन याचिकाकर्ता के अनुसार एचपीसीएल ने अब तक निलंबन रद्द नहीं किया है। ऐसे में उन्होंने एचपीसीएल पर कोर्ट की अवमानना के आरोप लगाए हैं, जिसके बाद हाईकोर्ट ने एचपीसीएल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने अपनी मूल याचिका में एचपीसीएल के नियमों को भी चुनौती दी है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आर.पी. जोशी के अनुसार पार्टनरशिप एक्ट के प्रावधानों के अनुसार किसी पार्टनर की मृत्यु हो जाने पर पार्टनरशिप समाप्त हो जाती है। कुछ चुनिंदा शर्तों और करार पर ही पार्टनरशिप जारी रह सकती है। एचपीसीएल के नियम कानून के विरुद्ध हैं। मामला कोर्ट के विचाराधीन है।

वार्षिक रिपोर्ट की जानकारी देने में टालमटोल, कालेजों से नहीं मिल रही जरूरी जानकारी
राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय को अपनी इस साल की वार्षिक रिपोर्ट बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। विश्वविद्यालय को अपने विभागों और संलग्न कॉलेजों से जरूरी जानकारी नहीं मिल रही है। जिसके कारण रिपोर्ट का काम लटका पड़ा है। दरअसल, विश्वविद्यालय हर साल सीनेट में अपनी वार्षिक रिपोर्ट रखता है। सीनेट की मंजूरी के बाद इसे राज्य सरकार को भेजा जाता है।  इस रिपोर्ट में शैक्षणिक व इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति से लेकर विविध उपक्रमों, उसकी सफलता और अन्य कई अहम मुद्दे शामिल किए जाते हैं।

सीनेट की बैठक के एक माह पूर्व सभी सदस्यों को यह रिपोर्ट सौंपी जाती है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए विश्वविद्यालय अपने सभी विभागों और कॉलेजों से डेटा मंगाता है। इस साल भी विश्वविद्यालय ने विभागों और कॉलेजों को पत्र भेज कर एक फॉर्मेट में सूचना मांगी थी, लेकिन कई विभागों और कॉलेजों ने लंबा समय बीत जाने के बाद भी जानकारी नहीं भेजी है। पिछले वर्ष सीनेट की बैठक में सदस्यों ने मुद्दा उठाया था कि, सीनेट में आने वाली इस रिपोर्ट मंे त्रुटियां निकालने और अपडेशन सुझाने के लिए उन्हें कुछ वक्त मिलना चाहिए। जिसके बाद विश्वविद्यालय की मैनेजमेंट काउंसिल ने निर्णय लिया था कि, सभी सीनेट सदस्यों को सीनेट बैठक के एक माह पूर्व वार्षिक रिपोर्ट सौंपी जाएगी, ताकि वे उसका अध्ययन करके गलतियां और सुझाव बता सके, लेकिन विभागों और कॉलेजों के टाल-मटौल के कारण अब तक विवि ने यह रिपोर्ट तैयार नहीं की है। 

Created On :   14 Oct 2019 7:35 AM GMT

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