दुनिया से विदाई भी राहत के साथ नहीं होने दे रहा निगम, अस्थियाँ बिखेर देते हैं जानवर

Corporations are not letting the world farewell with relief, the animals scatter the bones
दुनिया से विदाई भी राहत के साथ नहीं होने दे रहा निगम, अस्थियाँ बिखेर देते हैं जानवर
दुनिया से विदाई भी राहत के साथ नहीं होने दे रहा निगम, अस्थियाँ बिखेर देते हैं जानवर

रानीताल मुक्तिधाम के हाल- बाउंड्रीवॉल है ही नहीं, रात में छा जाता है घुप्प अँधेरा, पानी की समस्या लॉकर सिस्टम भी ठप, कई चबूतरे और प्लेटफार्म खस्ताहाल, देखरेख करने वाला कोई नहीं
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
दुनिया से विदा होते इंसान के साथ जब लोग श्मशानघाट पहुँचते हैं तो वे भी गमगीन होते हैं। ऐसे में यदि श्मशानघाट में बेहतर सुविधाएँ न मिलें, गंदगी रहे, आवारा जानवर परेशान करें, तो यह गम और भी बढ़ जाता है। कोई भी इंसान दो-चार सौ सालों के लिए नहीं आता वह तो अपनी यात्रा के कुछ साल बिताता है और चला जाता है। यह नियति है, लेकिन लगता है नगर निगम के अधिकारी इसे नहीं मानते क्योंकि यदि वे इसे मानते तो कम से कम जिस जगह हर इंसान की अंतिम विदाई होनी है, वहाँ इतनी अव्यवस्थाएँ न होतीं। आखिर एक दिन उन्हें भी ऐसे ही किसी स्थान पर जाना है तो  फिर इनती घोर लापरवाही क्यों। 
रानीताल श्मशानघाट, ग्वारीघाट के बाद सबसे व्यस्त घाटों में से एक है। यहाँ रोजाना कई अंतिम संस्कार होते हैं इसके बाद भी इसे उपेक्षित छोड़ दिया गया है। आलम यह है कि अब तो मृतकों की अस्थियाँ तक सुरक्षित नहीं रह गई हैं। रानीताल श्मशानघाट में पिछले करीब 10 सालों में एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च की गई, लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। आज यह हालत है कि रात में यहाँ आवारा तत्वों की धमाचौकड़ी चलती है, शराबखोरी होती है। किसी भी श्मशानघाट में जो मूलभूत सुविधाएँ होनी चाहिए उन्हीं के लिए यह घाट जूझ रहा है। यहाँ बाउंड्री न होने से कई समस्याएँ सामने आ रही हैं। बिजली व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है और सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं। 
ऐसा श्मशान जिसके बीच में सड़क
रानीताल श्मशानघाट संभवत: ऐसा पहला श्मशान है, जिसके बीच में से सड़क गुजरती है और एक तरफ चिताएँ जलती रहती हैं, तो दूसरी तरफ महिलाएँ, बच्चे और अन्य लोग आवाजाही करते हैं। इसके लिए भी योजना बनी थी और नाले पर सड़क बनाकर आवाजाही को डायवर्ट किया जाना था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। पूर्व पार्षद मुकेश राठौर ने अपने पार्षद मद सहित अन्य मदों से लगभग 30 लाख रुपए के कार्य कराए थे। देख-रेख न होने से ये कार्य भी नष्ट हो रहे हैं। 
इनका कहना है
रानीताल में भी एक दिन में गार्डन बनाया गया था। शर्त यह थी कि स्थानीय लोग गार्डन की देख-रेख करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब गार्डन को फिर से सँवारा जाएगा और देख-रेख भी निगम ही करेगा। 
-आदित्य शुक्ला, उद्यान अधिकारी नगर निगम

Created On :   23 Feb 2021 9:23 AM GMT

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