मुक्तिबोध जन्म शताब्दी वर्ष: दैनिक भास्कर 'मुक्तिबोध के बहाने' कार्यक्रम का नागपुर में हुआ आयोजन

dainik bhaskar organised muktibodh ke bahane program in nagpur
मुक्तिबोध जन्म शताब्दी वर्ष: दैनिक भास्कर 'मुक्तिबोध के बहाने' कार्यक्रम का नागपुर में हुआ आयोजन
मुक्तिबोध जन्म शताब्दी वर्ष: दैनिक भास्कर 'मुक्तिबोध के बहाने' कार्यक्रम का नागपुर में हुआ आयोजन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मुक्तिबोध ने हमारे समय के अंतर्विरोधों को पहचाना। हमारे समय का अंतर्विरोध उनकी रचनाओं में प्रतिबिंबित होता है। यह बात महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व प्र-कुलपति प्रो.अरविंदाक्षण ने कही। दैनिक भास्कर की ओर से विख्यात साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी वर्ष पर "मुक्तिबोध के बहाने" का आयोजन होटल ओरियेंट तायबा में किया गया। इस अवसर पर अरविंदाक्षण बोल रहे थे। कार्यक्रम का उद्धाटन वविषय प्रवर्तन संभागीय आयुक्त अनूप कुमार ने किया। प्रमुख वक्ता के रूप में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व प्र-कुलपति प्रो. अरविंदाक्षण, मनपा आयुक्त अश्विन मुद्गल मराठी कवि लोकनाथ यशवंत, रातुमविश्वविद्यालय के हिंदी विभागध्यक्ष डॉ. प्रमोद शर्मा उपस्थित थे।


प्रो. अरविंदाक्षण ने कहा कि मुक्तिबोध का सर्वोत्तम रचनाकाल सन 1947 से 63 तक का है। स्वातंत्र्योत्तर भारत की जितनी परियोजनाएं थीं वह विघटित होती गईं। जो स्वरूप बनना था वह नहीं बन पाया। संस्कृति काविघटन और अपसंस्कृति काविकास हुआ। मुक्तिबोध ने इन अंतर्विरोधों को अपनाविषय बनाया। मुक्तिबोध ने अमेरिका के साम्राज्यवाद को देखा। अंधेरे में कविता में उन्होंने अमेरिका के इसी पूंजीवाद का विरोध किया है।  उन्होंने मुक्तिबोध के समय और आज के समय की पड़ताल करते हुए कहा कि उनकी इतिहास दृष्टि गहन और भविष्योन्मुख है। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी वर्ष निमित्त केरल के कॉलेजों में मुक्तिबोध पर 7-8 आयोजन हो चुके हैं। मुक्तिबोध की कविताओं का पुनर्पाठ जरूरी है। अंधेरे में कविता को छोड़कर उनकी सभी कविताओं में वैचारिकी के दर्शन होते हैं। हमारे भीतर की वैचारिक ऊर्जा, मानवीयता और चीजों को समझने की ताकत मुक्तिबोध की कविता में है। सांस्कृतिकविमर्श उनकी रचनाओं में हैं। अरविंदाक्षण ने कहा कि मुक्तिबोध ने नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र में कहा है कि सौंदर्य के प्रतिमानों को बदलना होगा। सौंदर्यशास्त्र को नए ढंग से परिभाषित किया।

हमारी अंतर्रात्मा के पहरेदार : अनूप कुमार
मुक्तिबोध हमारी अंतर्रात्मा के पहरेदार हैं। आत्मा की जकड़बंदी से मुक्त होकर आसपास के समाज को समझने की दृष्टि दी। मुक्तिबोध की कविताओं का पुनर्पाठ आवश्यक है। यह बात संभागीय आयुक्त अनूप कुमार ने प्रथम सत्र "हमारे समय में मुक्तिबोध" का विषय प्रवर्तन करते हुए कही। अध्यक्षता प्रो. अरविंदाक्षण ने की। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध मृत्यु के छह दशक बाद आधुनिक हिंदी कविता के केंद्रबिंदु में हैं। भारतीय समाज की ऐतिहासिक अनिवार्यताओं ने मुक्तिबोध को कविता का नया प्रतिमान गढ़ने ओर अभिव्यक्ति के मठ और गढ़ों को तोड़ कर काव्य का एक नया मुहावरा रचने के लिए उत्प्रेरित किया। यह अनिवार्यताएं आज भी मुक्तिबोध को कविता के अंतविहीन आशय का युगांतकारी व्याख्याकार बनाए हुए हैं। 

मुक्तिबोध के साहित्य में आम आदमी की पीड़ा : यशवंत
कवि लोकनाथ यशवंत ने कहा कि मुक्तिबोध के साहित्य के अध्ययन से उनके जीवन और लेखन को नई दिशामिली। मुक्तिबोध की तरह दलित साहित्य में भी आम आदमी पीड़ा और जीवन के यथार्थ को अभिव्यक्तिमिली हे। उन्होंने सवाल उठाया कि हिंदी या मराठी साहित्य में सच्चाई क्यों नहीं लिखी जाती। आज भी हमारे दिमाग से धर्म और जाति नहीं निकला है। शोषित और वंचित हमारे साहित्य का केंद्र बिंदु नहीं है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हिंदी और मराठी साहित्य आज भी चांद-तारों तक सीमित है। जलेबी की गोलमाल बातें होती हैं।

हमारी चेतना में मुक्तिबोध प्रतिबिंबित : मुद्गल
मनपा आयुक्त अश्विन मुद्गल ने कहा कि हमारी चेतना में मुक्तिबोध प्रतिबिंबित है। उनका साहित्य आज भी प्रासंगिक है। मुक्तिबोध ने उस मसय की सारी स्थिति और कठोर यथार्थ को उतारने का प्रयोग किया है। मुक्तिबोध ने मानव के मन के यथार्थ और स्थिति को प्रतिबिंबित करने का काम किया। समाजवाद से प्रभावित का अस्तित्ववाद में विश्वास था। हम जिन चीजों के कारण अंधेरे में है उनसेनिकलने की राह दिखाती है उनकी कविताएं। मुक्तिबोध आधुनक हिंदी साहित्य के पिरोध थे। उन्होंने सफल रचनात्मक जीवन नागपुर में बिताए।

नागपुर विवि करेंगा मुक्तिबोध पर व्याख्यान का आयोजन : डॉ. शर्मा
डॉ. प्रमोद शर्मा ने घोषणा की कि नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा अगले वर्ष से मुक्तिबोध पर नियमित व्याख्यान का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने मुक्तिबोध के साहित्य में बिंब , प्रतीकों और मिथकों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "अंधेरे में" कविता का रचनाकाल सन 1958 से 61-62 का है। अक्टूबर 56 में रेडियोे की नौकरी छोड़ दी। 2 जुलाई तक उन्होंने साप्ताहिक "नया खून" में काम किया। अंधेरे में कविता का लेखन नागपुर नहीं, बल्कि राजनांदगांव में किया गया। इसमें जुम्मा तालाब का जिक्र नहीं है। उनकी रचनाओं में नागपुर के बिंब ज्यादा है। 


मुक्तिबोध ने अभिव्यक्ति के खतरे उठाए : खरे
मुक्तिबोध ने अभिव्यक्ति के खतरे उठाए और विसंगतियों के खिलाफ संघर्ष किया। यह बात वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु खरे ने कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ‘मुक्तिबोध और आज का भारत’ विषय पर चर्चा में कही। खरे ने कहा कि जो समाज हत्यारा हो वह आपको भी नहीं बख्शेगा। जो सच बोलेगा उसे खतरे उठाने होंगे। मुक्तिबोध भाग्यशाली थे कि उन्हें सिर्फ सीआईडी का डर था। हमें कई लोगों से डर है। मुक्तिबोध हमेशा पूछते थे-पार्टनर तुम्हारा पालिटिक्स क्या है? आज रंगे सियार और धूर्त समाज में पैठ गए हैं। हमें सजग रहना पड़ता है कि इसका पालिटिक्स क्या है। मुक्तिबोध का पालिटिक्स आज आउटडेटेड हो गया है। भारत की मानवता के साथ खड़े होना होगा। सांप्रदायिकता और कालाबाजारी न हो। देश बेचा तो नहीं जा रहा। हमारा देश काफी बेचा जा चुका है।

विचारधारा का संकट
खरे ने कहा कि देश में पूरी विचारधारा को नष्ट करने का संकट मंडरा रहा है। इसे रोकना होगा। इसके लिए कीमत चुकानी होगी। क्या मध्यमवर्ग इसके लिए तैयार है? अब देश में परिवर्तन सुपर स्ट्रक्चर से नहीं, बल्कि बुद्धिजीवियों के क्रांतिकारी बनने से होगा। हिंदी या भारत में वह कौनसी ताकत है जो मुक्तबोध को मान्य करती है। मुक्तिबोध को बड़ा कवि मानती है। मुक्तिबोध ने कवि के रूप में पूरी हिंदी भाषा और साहित्य को बदला। मुक्तिबोध की पूरी बनावट नेहरू युग की थी। नेहरू उनके हीरो थे। 1964 तक देश इतना बर्बाद नहीं हुआ था। नेहरू बीमार थे, तो बार-बार उनका हालचाल पूछते रहते थे।

राजनीति में सड़ांध 
खरे ने कहा कि देश की राजनीति सड़ गई है। हम यदि मुक्तिबोध के वंशज है तो क्या करना होगा। क्या ये समाज मुक्तिबोध की बात सुनने के लिए तैयार है। समाज में जितना पैसा आ रहा है क्या मुक्तिबोध का समाज इसके आगे ठहरता है। आज का भारत विचारधारा के स्तर पर ध्वस्त हो रहा है। मुक्तिबोध का सपना कैसे साकार होगा? मूल्य नष्ट हो रहे हैं।

छिंदवाड़ा का विलय नागपुर में हो
खरे ने कहा कि छिंदवाड़ा का विलय नागपुर में करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि छिंदवाड़ा का काम नागपुर में होता है। छिंदवाड़ा के आधे से ज्यादा लोग मराठी भाषा बोलते हैं। खरे ने बताया कि उन्होंने नागपुर से एमए किया है। उनके पिता साइंस कालेज में कार्यरत थे।

रचनाकारों में सन्नाटा : शिलेदार
मराठी कवि प्रफुल्ल शिलेदार ने कहा कि मुक्तिबोध ने शहर में सबसे महत्वपूर्ण समय व्यतीत किया। जब वह अपनी रचनात्मकता के चरम पर थे, संघर्ष का समय और गोलीबारी जैसी घटनाओं वाला इतिहास उनके वैचारिक लेखन में दिखता है। उस शहर में उनकी जन्मशताब्दी पर इतना सन्नाटा क्यों? मुक्तिबोध जिस सन्नाटे की बात करते हैं वह सन्नाटा यहां के रचनाकारों में आ गया है। जब टैगोर हर भाषा में पहुंच सकते हैं तो मुक्तिबोध क्यों नहीं? हिंदी-मराठी भाषा एक-दूसरे के करीब हैं और आपस में बहनें हैं। जब उन्होंने हिंदी में लिखने का निर्णय लिया, तो उन्हें लगा कि मेरा कोई हिस्सा पीछे छूट गया।


भारत का सबसे ज्यादा जिक्र : त्रिपाठी
बसंत त्रिपाठी ने कहा कि आजादी के बाद  राष्ट्रवादी कवियों द्वारा लिखा जा रहा था, लेकिन इन सबसे अलग यदि देश की चिंता कोई कर रहा था तो वह मुक्तिबोध थे। उनके लेखन में भारत का सबसे ज्यादा जिक्र होता है। वह अपने भारत को तीन स्त्रोत से तलाशते हैं। पहला जब वह ‘नया खून’ और उससे पहले पत्रकारिता में वह वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका पर लिख रहे थे। उनका भारत दक्षिण एशिया का प्रतिनिधित्व कर रहा था। दूसरे को वह इतिहास से तलाशते हैं। अपनी किताब में मध्यकाल, आधुनिककाल और भारत को ढूंढने, तलाशने, स्थापित करने में जुटे थे। तीसरा आजादी के समय वह कहते हैं कि ‘ऐ फटेहाल हिंदुस्तान, तेरा ये कवि तेरे साथ रहेगा’। उन्होंने इस वादे को अंत तक निभाया।


अभिव्यक्ति के खतरे उठाने होंगे : जोशी
भालचंद्र जोशी ने कहा कि शरदचन्द्र मुक्तिबोध और गजानन मुक्तिबोध दोनों में समानताएं है और भिन्नताएं भीं। दोनों की देखने की दृष्टि भी एक है। कई आलोचकों ने तो उन्हें मनोरोगी भी कह डाला। मराठी में मनोरोगी सिर्फ ड्रेस का कहा जाता है। उन्होंने कहा कि दो लोग ऐसे हैं जिनका प्रभाव भारत में एक जैसा है पहले राममनोहर लोहिया और गजानन मुक्तिबोध एक बार किसी ने आपको पकड़ लिया तो वह आपको नहीं छोड़ते और आप उनको नहीं छोड़ते हैं। अभिव्यक्ति के खतरे बढ़ गए हैं उन्हें उठाने की होंगे। अब अभिव्यक्ति के खतरे उठाने से बचते हैं। खतरे उठाने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं। खतरे नहीं उठाए गए तो जो भारत का निर्माण होगा उसका आज हो गया। ये शब्द नहीं बल्कि जीवन के शिल्पी हैं।

 

Created On :   4 Nov 2017 9:55 PM IST

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