पारंपरिक शिक्षा प्रणाली से आएगा सुराज, पहले घुमंतू जनजातियों को लेकर सोच नहीं थी सही

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं भटके विमुक्त विकास परिषद, पुणे के संस्थापक गिरीश प्रभुणे ने कहा कि हमने स्वतंत्रता हासिल कर ली है और अब हम सुराज की तरफ बढ़ रहे हैं। यह तब होगा, जब हम हमारी परंपरागत शिक्षा पद्धति की ओर लौटेंगे। उन्होंने कहा कि महान जनजातीय परंपराओं में शताब्दियों से मौजूद अथाह ज्ञान भंडार से सीखेंगे। आईआईएमसी द्वारा ‘भारत की घुमंतू जनजातियां’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए प्रभुणे ने कहा कि भारत मंे 200 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं, लेकिन आज जितने भी महत्वपूर्ण आविष्काार या प्रौद्योगिकियां हैं, सब विदेशों से आई हैं, क्योंकि हमने अपनी पारंपरिक शिक्षा की उपेक्षा की है। उन्होंने कहा कि जब हम अपनी शिक्षा पद्धति से पढ़ते थे, तो हमने शून्य से आकाश तक, दुनिया को एक से बढ़कर एक सौगातें दीं। उन्होंने कहा कि कौशल विकास संस्थानों में पारंपरिक कौशल की पढ़ाई शुरू की जानी चाहिए। भारत में घुमंतू जनजातियों के प्रति समाज और सरकार की सोच के बारे में प्रभुणे ने बताया कि 1991 तक इनके साथ अंग्रेजों द्वारा बनाए ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, 1871’ के अनुसार व्यवहार किया जाता था। कहीं भी चोरी या डकैती जैसा कोई भी अपराध होता, तो पुलिस सबसे पहले उन्हें ही पकड़कर जेल में डाल देती थी। न कोई जांच, न कोई एफआईआर, सालों तक वे कालकोठरी में बंद रहकर पुलिस की यातनाएं झेलते रहते थे।
Created On :   10 Feb 2023 8:02 PM IST