भारत के विश्वगुरु बनने की राह में रोड़ा है कट्टरता

Fanaticism is an obstacle in the way of India becoming a world leader
भारत के विश्वगुरु बनने की राह में रोड़ा है कट्टरता
नागपुर भारत के विश्वगुरु बनने की राह में रोड़ा है कट्टरता

डिजिटल डेस्क, नागपुर | तेजस्वी युवाचार्य महेंद्र ऋषि महाराज साहब ने कहा कि विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर भारत की राह में धार्मिक कट्टरता एक रोड़ा है। हर समय इन मुद्दों में देश उलझा रहेगा, तो मूलभूत आवश्यकताओं से ध्यान भटक जाएगा। जैन भागवती दीक्षा महोत्सव के लिए नागपुर के वर्धमान नगर स्थित वर्धमान स्थानक में विराजित युवाचार्य महेंद्र ऋषि महाराज साहब ने दैनिक भास्कर के संपादकीय सहयोगियों के साथ विशेष बातचीत में अनेक समसामयिक विषयों पर चर्चा की। इस दौरान मालवा प्रवर्तक प्रकाशमुनि महाराज साहब भी उपस्थित थे। 

न्यायालय या सामाजिक संगठनों को  समस्या का हल ढूंढना चाहिए : अयोध्या में राम मंदिर के बाद मथुरा और काशी के धार्मिक स्थलों को मुक्त कराए जाने के सवाल पर युवाचार्य जी कहा कि सभी को अपने-अपने धरोहर की रक्षा का हक है। इन स्थानों को विवाद का रूप न देते हुए सांस्कृतिक दृष्टि से देखा जाना चाहिए।  न्यायालय या सामाजिक संगठनों को अपने स्तर पर समस्या का हल ढूंढना चाहिए। आज भारत विश्वगुरु बनने की ओर बढ़ रहा है, पर हर समय इन मुद्दों में देश उलझ जाएगा तो मूलभूत आवश्यकताओं से ध्यान भटक जाएगा। भगवान महावीर का सिद्धांत अनेकांतवाद का है। जिसने अनेकांतवाद को समझ लिया, वह कट्टर नहीं हो सकता।  एक ही पक्ष के आग्रहशील होने से हमारी मूलभूत बातें छूट जाएंगी। अनेकांतवाद और कट्टरता एक साथ नहीं चल सकती । युवाचार्य जी ने कहा कि प्रिंट मीडिया से ज्यादा खतरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से है, जो किसी भी बात को मिर्च-मसाला लगाकर परोसता है। तेजी से संवाद के कारण बात तुरंत पहुंच जाती है। इसके कारण कट्टरता वाली घटनाएं उग्र रूप धारण कर लेती हैं। कट्टरता और क्लेश से बचना चाहिए  संवाद  से ही समाधान होना चाहिए।

श्रद्धा सात्विक है, और पर्यटन तामसिक : जैन समाज के सबसे बड़े तीर्थस्थल सम्मेद शिखर जी को सरकार द्वारा पर्यटन स्थल घोषित किया जाना और समाज के विरोध पर युवाचार्य जी ने कहा कि श्रद्धा का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्थान है। श्रद्धा को अधिष्ठान कहा गया है। इससे जीवन में स्थिरता आती है। मनुष्य किसी भी स्थिति को संभाल सकता है।  वोट पर ध्यान हो तो बात अलग, लेकिन श्रद्धा के अधिष्ठान को मजबूत बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। श्रद्धा स्थान को ध्यान में रखकर काम किया जाना चाहिए। पर्यटन स्थल बनाने से बाकी जो स्थितियां बनती हैं, उसे टालना उचित है। श्रद्धा सात्विक है और पर्यटन तामसिक। वह लाखों लोगों का श्रद्धा स्थान है। आदिवासी समाज भी से श्रद्धा स्थान मांगता है। उचित ढंग से समाधान जरूरी है। 

मंदिरों में भीड़ बढ़ी, धार्मिकता कम हो गई : संतों के पास एक आंतरिक सिद्धि रहती है। इस सिद्धि को लेकर जनता के बीच वातावरण बनाने से लालसा को बढ़ावा मिल सकता है। आज मंदिरों में भीड़ बढ़ गई है, लेकिन धार्मिकता कम हो गई। धार्मिकता के बजाय लोगों की इच्छा ज्यादा बढ़ गई है। कुछ संत मांग के अनुसार पूर्ति करते हैं। आजकल हर दो-चार साल में एक नया व्यक्ति मिल जाता है, जिसके इर्द-गिर्द भीड़ इकट्ठा होती है। फिर लोग नदारद हो जाते हैं। सदगुरु की शरण में जाने से विपरीत परिस्थितियों में भी सुरक्षित निकल सकते हैं, लेकिन सद्गुरु कौन, सवाल यह है। शिष्य के चित्त को हरने और शांति पहुंचाने वाले बहुत कम सद्गुरु हैं। 

आस्था नहीं,  मिल्कियत का झगड़ा : अकोला जिले के शिरपुर गांव स्थित अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर के विवाद के प्रश्न पर कहा कि यह आस्था नहीं, बल्कि मिल्कियत का झगड़ा है। इसे निपटाने में साधु-संत सभी जुटे हैं।

धर्म और विज्ञान मिल जाए तो बेहतर : धर्म को विज्ञान की कसौटी पर कसना कितना उचित है, इस सवाल पर युवाचार्य जी ने कहा कि धर्म आस्था से जुड़ा है और विज्ञान तकनीक से। आस्था स्थिर रहती है, लेकिन तकनीक बदलते रहता है। जैसे छुरी को गलत ढंग से पकड़ने से खुद को ही नुकसान होता है, वैसे ही धर्म के गलत इस्तेमाल का परिणाम होता है। विज्ञान और धर्म एक-दूसरे के विरोधी नहीं है। धर्म शाश्वत मूल्यों को सुरक्षित रखता है। कहा भी गया है - मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। हरिवंश राय बच्चन जी ने कहा है -बैर कराते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला'। दिल धर्म की तरह है और विज्ञान दिमाग की तरह। दोनों मिल जाए तो बेहतर है। 

राजनीति की रोटी सेंकने धर्म का इस्तेमाल : राजनीति में धर्म के इस्तेमाल के सवाल पर कहा कि धर्म के नाम पर लोगों को ज्यादा आकर्षित किया जा सकता है। राजनेता इसीलिए धर्मों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि राजनीति की रोटी सेंकी जा सके। राजनेता  धर्म के नाम पर व्यक्तिगत महत्व बढ़ाने का काम करते हैं, इसलिए धर्म कटघरे में है। जैन साधुओं के विश्व भ्रमण के लिए अनुकूलताएं नहीं  एक सवाल के जवाब में युवाचार्य जी ने कहा कि जैन मुनियों के विश्व भ्रमण के लिए अनुकूलताएं नहीं है। विदेशों में मूलभूत आहार सामिष है। हमारा आहार ही ऊर्जा  है। आहार जितना शुद्ध होगा, उतनी ही ऊर्जा मिलेगी। इसके अलावा हमारे कुछ संकल्प और व्यवस्थाएं हैं। जैन धर्म के नियमों के अनुसार, प्रचार-प्रसार में अनुकूलता नहीं मिलती। जैन साधुओं के लिए पानी में चलना भी वर्जित है। नदी पार कर लिया तो आगम के अनुसार बाद में प्रायश्चित करना पड़ता है।  

भावा के गीत की प्रस्तुति : जैन भागवती दीक्षा महोत्सव निमित्त प्रभा सखी मंडल के नेतृत्व में 14 अन्य मंडलों के सहयोग से भावा के गीत की प्रस्तुति की जा रही है, जो 2 फरवरी तक चलेगी। 

Created On :   29 Jan 2023 4:16 PM IST

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