ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही है सायफन तकनीक से खेती

Farming from siphon technology is proving boon for villagers
ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही है सायफन तकनीक से खेती
ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही है सायफन तकनीक से खेती

डिजिटल डेस्क, मूल/चंद्रपुर।  मूल एवं सावली मुख्य रूप से उद्योगविहीन एवं खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था वाली तहसीलें हैं। यहां साल में एक बार धान, सोयाबीन व तुअर की फसल के अलावा और कोई खास उत्पादन नहीं हो पाता। इन फसलों से ही यहां के किसानों का गुजारा होता है। यहां सिंचाई संसाधनों के अभाव में खेती हमेशा ही घाटे का सौदा साबित होती रही ,लेकिन सायफन तकनीक क्षेत्र के किसानों के लिए जैसे वरदान बन चुकी है।
 
सावली में वाघोली बूटी एवं पुराना आसोलामेंढा इन दो प्रकल्पों के अलावा सिंचाई का अन्य कोई संसाधन नहीं है। इसी प्रकार मूल तहसील में भी नलेश्वर प्रकल्प के अलावा सिंचाई का कोई ठोस विकल्प नहीं है। ऐसे में यहां की सिंचाई रामभरोसे हो रही थी, लेकिन इसमें नया विचार व नई तकनीक का इस्तेमाल कारगर साबित हो रहा है। एक अधिकारी की सूझबूझ से यहां पर सिंचाई का नया प्रयोग सफल हो चुका है। यहां पर सायफन तकनीक करीब 300 हेक्टेयर क्षेत्र की फसलों के लिए संजीवनी साबित हुई है।

भविष्य में इस तरह से अन्य परिसरों में भी प्रयोग कर खेती किसानी को प्राकृतिक आपदा से बचाए जाने पर विचार किया जा रहा है। इस वर्ष अल्पवर्षा के कारण अधिकांश जलाशय एवं तालाब सूख चुके हैं। ऐसे में किसानों के लिए फसलों को बचा पाना आसान नहीं था। सायफन तकनीक  से लगभग तीन किमी तक पाइप के माध्यम से पानी लिया जा रहा है। करीब 300 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की सिंचाई होने से सैकड़ों किसानों के चेहरों पर संतोष के भाव नजर आ रहे हैं।  सायफन तकनीक का पहला प्रयोग सावली तहसील में किया गया है जो काफी हद तक सफल रहा है। 

पहले किसान थे परेशान

सावली तहसील अंतर्गत ग्राम पालेबारसा के नागरिकों का मुख्य व्यवसाय खेती ही है तथा फसल उत्पादन पर ही गांव की अर्थव्यवस्था निर्भर है। बारिश शुरू होते ही यहां के किसानों ने रोपाई का काम पूरा कर लिया। बाद में बारिश ने मुंह फेर लिया जिस कारण किसानों के लिए अपनी फसलों को बचाना कठिन हो गया। अंतत: चिंतित किसानों ने गोसेखुर्द नहर से पानी लेकर फसलों को बचाने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने अपने जनप्रतिनिधि से गुहार भी लगाई, लेकिन कोई हल नहीं निकला। अंतत: संतप्त किसानों ने नहर की दीवार ही फोड़ दी और पानी तालाब में ले लिया। इसकी जानकारी गोसेखुर्द के अधिकारियों को मिलने के बाद उन्होंने  किसानों के पानी लेने पर रोक लगा दी। पानी के अभाव में खेत में खड़ी फसलें सूखने की कगार पर आ गईं। इस बीच फसल हाथ से जाती देख किसान रुंआसे हो गए।

ऐसे में अभियंता हटवार ने सूझबूझ का परिचय देते हुए किसानों को सायफन तकनीक से पानी लेकर फसल बचाने का सुझाव दिया, किंतु नहर से पानी लेते समय अनुमति लेना आवश्यक था। समस्या को देखते हुए विधायक विजय वडेट्टीवार किसानों की मदद के लिए आगे आए और उन्होंने किसानों को नहर से पानी लेने की अनुमति दिला दी। तत्पश्चात चार तालाबों में पानी भरकर फसल बचाने का निर्णय गांववालों ने लिया। इंधन, यंत्र व बिजली का उपयोग न करते हुए 15 दिन तक किसानों ने सायफन तकनीक की मशीन के जरिए पानी लेकर करीब 300 हेक्टेयर क्षेत्र की खेती की सिंचाई कर लीं। 

 चंदे से हुआ काम

सायफन  तकनीक से पहले लोगों ने आपस में चंदा जुटाकर करीब दो लाख रु. इकट्ठा किए थे जिस कारण वर्ष 2014 में नहर की दीवार की मरम्मत की गई। इसके बावजूद दीवार का टूटना जारी था। ऐसे में फसलों को बचा पाना मुश्किल हो गया था। इस वर्ष भी 1 लाख रुपए जमा कर सायफन तकनीक के इस्तेमाल के लिए फुटबॉल पाइप खरीदे गए जिससे सिंचाई की सुविधा हो गई।

Created On :   6 Nov 2017 11:29 AM IST

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