18 सालों से घर से भागे बच्चों को उनके घरों तक पहुंचा रहे हैं जाधव

For 18 years, Jadhav is taking the children who ran away from home to their homes
18 सालों से घर से भागे बच्चों को उनके घरों तक पहुंचा रहे हैं जाधव
खास बात 18 सालों से घर से भागे बच्चों को उनके घरों तक पहुंचा रहे हैं जाधव

-    अब तक 30 हजार बच्चों को उनके परिवार से मिला चुकी है समतोल
-    रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगते मिलते हैं करोड़पति घरों के बच्चे 

डिजिटल डेस्क, मुंबई, विजय सिंह "कौशिक’, मुंबई। रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों व ट्रैफिक सिगनल पर घूमते-भीख मांगने आवारा बच्चों को हम एक नजर देख कर आगे बढ़ जाते हैं। हम इसे इन गरीब बच्चों की नियत समझते हैं पर ये बच्चे वास्तव में गरीब परिवारों में पैदा नहीं हुए हैं। इनमें से कई करोड़पति परिवारों की संताने हैं पर इनकी बचपने वाली एक गलती इन्हें उंचे-उंचे महलों से सड़क पर लाकर खड़ा कर देती है।कुछ को बहला-भुसला कर भगाया जाता है तो कुछ बड़े शहरों की चकाचौध से आकर्षित होकर घर से भाग आते हैं। पर जल्द ही चमक दमक वाले शहरों में रहने की बाद इन्हें जिंदगी की हकीकत समझ आने लगती है। लेकिन तब उनके सामने यह बड़ा सवाल खडा हो जाता है कि अब किस मुंह से घर वापस जाए? यही सोच इन बच्चों को अपने घरों से दूर रखती है। मुंबई की एक संस्था"समतोल' ऐसे बच्चों को उनके परिवारों तक पहुंचाने का काम करती है। 

वर्ष 2004 से घर से भागे बच्चों को उनके परिवार से मिलाने का पुनित कार्य कर रहे विजय जाधव ने "दैनिक भास्कर' को बताया कि अब तक उनकी संस्था ने 30 हजार से अधिक बच्चोंको उनके परिवार तक पहुंचाया है। वे बताते हैं कि हम जिन बच्चों के लिए कार्य करते हैं उनकी आयु सात से 18 वर्ष के बीच होती है। अपने घरों को छोड़ने वाले बच्चो को भावनात्मक सहारे की खास जरूरत होती है। इस लिए हम बड़े प्यार से इन बच्चों से उनकी समस्या जानते हैं। ये बच्चे कहां से आए हैं, उनका परिवार कहा रहता है, यह जानने की कोशिश करते हैं। इसके बाद उनके परिवार का पता लगाने का प्रयास शुरु होता है। उनके परिवार का पता लगते ही हम बच्चे को उनके परिवार को सुपुर्द कर देते हैं। यही हमारा अंतिम लक्ष्य होता है। 

जाधव बताते हैं कि जब वर्ष 2004 के दौरान मैंने इस काम की शुरुआत की तो उस वक्त इस समस्या पर किसी का कोई ध्यान नहीं था। इस लिए इस समस्या के समाधान के लिए मैंने कदम उठाने की सोची। पर यह सफलता एकाएक नहीं मिली। मैंने देखा कई घरों से बच्चे भाग कर शहरों में आ रहे हैं। लेकिन वे शहर से अपने घर नहीं लौट पाते। मन में विचार आया की इसको लेकर काम किया जाए। 

सायकिल न मिलने से नाराज हो घर से भागा था सरपंच का बेटा

शुरुआत हुई नांदेड़ के एक बच्चे से, यह गांव के सरपंच का बेटा था। इकलौता होने के नाते ज्यादा लाड प्यार में बिगड़ गया था। उसकी सारी जिद पूरी की जाती। अब उसे सायकिल चाहिए थी। पर परिवार ने उसे सायकिल देने से इंकार कर दिया।नाराज होकर वह घर से निकल गया। अपने एक दोस्त के साथ उसने मुंबई की राह पकड़ ली। एक दो महीनों में वह मुंबई में रम गया। एक रेलवे स्टेशन को अपना ठिकाना बना लिया। वह बच्चा जिस रेलवे स्टेशन पर रहता था, वही पास में मेरे कुछ मित्र रहते थे। उन्हे साथ लेकर नांदेड़ के उस बच्चें को उसके घर तक पहुंचाया। उसके गांव पहुंचने पर हमारा भव्य स्वागत किया गया। जुलूस निकाला गया। इससे हमें यह काम करने को लेकरप्रोत्साहन मिला। 

सम्मान से बढ़ा हौसला 

जाधव ने बताया कि इसके बाद हमने तय किया की मुंबई पहुंच कर घर से भागे जो भी बच्चे मिलेंगे उन्हें उनके परिवार तक पहुंचना है। इस तरह इस अभियान की शुरुआत हुई। घर से भागे बच्चों के परिजन अपने बच्चों की फोटो घर में रख कर संतोष करने को मजबूर रहते थे। ऐसे में जब हम उनके बच्चे को उन तक पहुंचाते हैं तोउनके घर में दिवाली और दशहरे से ज्यादा खुशी आती है। इससे हमें जो खुशी और संतुष्टि मिलती है, वह अवर्णनीय है। जाधव बताते हैं फिलहाल उनकी संस्था मुंबई, पुणे, नागपुर सहित महाराष्ट्र के पांच जिलों के 10 रेलवे स्टेशनों पर कार्य करती है। 

कोरोना के बाद बदली परिस्थिति

जाधव बताते हैं कि शुरुआत में मुंबई के सीएसटी, कुर्ला, दादर, बोरीवली में खूब बच्चे मिलते थे। पर अब मुंबई के बड़े रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी होने के नाते घर से भागे बच्चों को इन स्टेशनों पर नहीं सोने दिया जाता। इस लिए आजकल इन बच्चों ने मुंबई उपनगर के रेलवे स्टेशनों को अपना ठिकाना बना लिया है। इसके अलावाकल्याण, इगतपुरी, कर्जत, कसारा, वसई-विरार में ये बच्चे ज्यादा मिलते हैं। कोरोना महामारी के बाद परिस्थिति थोड़ी बदली है। अब पहले की अपेक्षा कम बच्चे घरों से भाग कर आते हैं। 

आईएएस, डाक्टर, वकील के थे बच्चे 

जाधव कहते हैं कि समाज इन बच्चों को नकारात्मक नजरिए से देखता है। पर हमें जो बच्चे मिले उनमें से कोई गरीब घर का बच्चा नहीं था। पर लोगों को लगता है की ये गरीब घरों के बच्चे हैं, इस लिए भीख मांग रहे हैं। इनमें आईएएस अधिकारी, डाक्टर, वकील, क्लास वन आफिसर के बच्चे भी होते हैं। हमें ऐसे संपन्न घरों के बच्चे भी भीख मांगते मिले हैं।

बॉलीवुड का आकर्षण भी है एक कारण

मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों और बॉलीवुड के आकर्षण में भी कुछ बच्चे घर से भाग आते हैं। कुछ बच्चे क्रिकेट के लिए घर छोड़ देते हैं तो कुछ लिटिल चैंप जैसे टीवी रियलिटी शो में अपनी किस्मत आजमाने के चक्कर में घर से भाग आते हैं। किसी पर पढ़ाई को लेकर अभिभावकों का दबाव होता है। इसको लेकर हैदराबाद का एक उदाहरण देना चाहूंगा। यहां के एक परिवार की मां एक अच्छे इंटरनेशनल स्कूल में अंग्रेजी की शिक्षिका थीं। पिता एलआईसी में अधिकारी थे। लड़का आठवीं कक्षा में था। स्कूल में वह 1 से 10 नंबर के बीच आता था। लेकिन उसकी मां चाहती थी की उनका बेटा क्लास में पहले तीन बच्चो में एक रहे। बच्चा प्रयास करता पर सफल नहीं हो पा रहा था। आखिरकार उस बच्चे ने घर ही छोड़ दिया। वह हमारे संपर्क में आया। हमने उस बच्चे के परिजनों से संपर्क किया तो उन्हें लगा की हमने उनके बच्चे का अपहरण किया है। वे अपने बच्चे को लेने के लिए हवाई जहाज से मुंबई पहुंचे। हमने अपनी पद्धित के अनुसार उनकी काउंसलिंग की। बच्चे के मां-पिता को भी समझाया। 

कई बार जाना पड़ा जेल 

जाधव ने बताया कि इन बच्चों के साथ काम करते हुए एक और समस्या दिखाई देती है। यह समस्या है बच्चो की तस्करी का। इसकी वजह से मुझे कई बार जेल भी जाना पड़ा। इन बच्चों का इस्तेमाल करने वालों ने मुझ पर हमले भी किए।मेरे खिलाफ केस दर्ज कराया। पर मैने यह कार्य करना नहीं छोड़ा।
 

Created On :   15 Jan 2023 7:15 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story