सरकार ने हल की भोपाल के मर्जर और सिंधी विस्थापितों की समस्या

डिजिटल डेस्क, भोपाल। राज्य विधानसभा में शुक्रवार को राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने भोपाल के मर्जर समस्या और सिन्धी विस्थापितों की आवासीय समस्या को हल करने के लिये राज्य सरकार द्वारा मंत्रिपरिषद में लिये गये निर्णय को अपने वक्तव्य के माध्यम से सुनाया।उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश ग्रामों में की दखलरहित भूमि (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1970 में संशोधन किया जाकर राज्य के अधिकाधिक पात्र व्यक्तियों को लाभांवित करने हेतु शीघ्र ही विधान सभा में संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जायेगा। प्रस्तावित संशोधन विधेयक द्वारा मूल अधिनियम में इस आशय का संशोधन प्रस्तावित किया जायेगा कि विकास योजना क्षेत्र, स्थानीय निकाय की सीमा से लागू हुए ग्रामों तथा राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्ग के दोनों तरफ 500 मीटर क्षेत्र तथा मध्य प्रदेश नगरीय क्षेत्रों में पट्टाधृति (भूमिस्वामी अधिकारों का प्रदाय किया जाना) अधिनियम, 1984 में शामिल क्षेत्रों को छोडक़र प्रदेश के अन्य सभी क्षेत्रों में मध्यप्रदेश ग्रामों में की दखलरहित भूमि (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1970 के प्रावधानों के अंतर्गत आवासहीनों को आवासीय भू-खंड आबंटित किये जा सकेंगे और ऐसे आबंटन के लिये भू-खंड का अधिकतम 60 वर्गमीटर तक हो सकेगा।
मर्जर समस्या पर यह हुआ निर्णय
गुप्ता ने बताया कि निर्णय लिया गया कि भोपाल रियासत से संबंधित मर्जर एग्रीमेंट दिनांक 30-04-1949 के परिप्रक्ष्य में संक्षेपिका में उठाए गए विभिन्न बिंदुओं पर विधिक परिप्रेक्ष्य एवं व्यापक लोकहित को ध्यान में रखते हुए निम्न निर्देशों को शामिल करते हुए राजस्व विभाग द्वारा परिपत्र जारी किया जाए : एक, कलेक्टर भोपाल द्वारा प्रश्नाधीन भूमियों के हस्तांतरण, विक्रय, अंतरण तथा स्वत्व परिवर्तन को प्रतिबंधित किये जाने संबंधी आदेश क्रमांक 3394/नजूल/2002 दिनांक 23.03.2002 तथा आदेश क्रमांक 370/लिटि/एफ/2017 दिनांक 24.03.2017 माननीय उच्च न्यायालय की याचिका क्रमांक 6054/2001 में पारित अंतरिम आदेश दिनांक 16.01.2002 के अनुपालन में जारी किये गये थे, जबकि दिनांक 31.08.2004 को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा प्रकरण में अंतिम आदेश पारित किया जा चुका है, अत: कलेक्टर भोपाल के उक्त दोनों आदेशों को निष्प्रभावी माना जाए।
दो, कलेक्टर, भोपाल द्वारा 8 ग्रामों से संबंधित भूमियों के प्रकरण क्रमांक 01/स्व.निग./2007-08 से लगायत 08/स्व.निग./2007-08, मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 50 के अंतर्गत स्वमेव निगरानी में, मात्र खसरा प्रविष्टि के आधार पर दर्ज किये ये हैं, जबकि संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत निगरानी अधीनस्थ राजस्व अधिकारी के किसी आदेश के संबंध में ही की जा सकती है। इसके अतिरिक्त विधान सभा तारांकित प्रश्न क्रमांक 5996 माह मार्च, 2017 में प्रस्तुत किये गये उत्तर के अनुसार 109 प्रकरणों को राजस्व अधिकारियों द्वारा पुनर्विलोकन में लिया गया है।
उक्त परिप्रेक्ष्य में ऐसी सभी भूमियों के मामलों में, जिनके विवरण संक्षेपिका के परिशिष्ट 11(बी) में दिए गये हैं तथा जो आज भी भू-अभिलेखों में शासकीय दर्ज नहीं हैं (उन भूमियों को छोडक़र जिन पर शासकीय अस्पताल, शासकीय गेस्ट हाउस, शासन के निकायों/उपक्रमों आदि के अथवा सार्वजनिक प्रयोजनों के निर्माण हो चुके हैं अथवा जो सार्वजनिक उपयोग मे है), प्रांगनिर्णय, परिसीमा अधिनियम 1963 तथा प्रतिकूल कब्जा विधि के प्रकाश में भू-अभिलेखों में यथोचित संशोधन रोके नहीं जायें। तीन, मर्जर एग्रीमेंट से संबंधित भूमियों के संबंध में विभिन्न न्यायालयों (सिविल/उच्च न्यायालय/उच्चतम न्यायालय आदि) में लंबित प्रकरणों में उपरोक्त निर्णयों के प्रकाश में महाधिवक्ता मध्यप्रदेश से परामर्श कर शासन का पक्ष समर्थन किया जाए। चार, जिन प्रकरणों में जागीरदारी उन्मूलन अधिनियम के तहत भूमि पर शासन का दावा प्रस्तुत किया गया है, उनमें संबंधित न्यायालयों में यथावत शासन का पक्ष समर्थन किया जाए।
सिन्धी विस्थापितों हेतु यह हुआ निर्णय
गुप्ता ने बताया कि निर्णय लिया गया कि पश्चिम पाकिस्तान से आये विस्थापितों के पुनर्वास के लंबित मामलों का निराकरण पूर्व में विभाग द्वारा जारी परिपत्र दिनांक 9 जुलाई, 1986 तथा दिनांक 18 फरवरी, 1994 के द्वारा किये जाने में कठिनाई अनुभव की गयी है अतएव् इन कठिनाईयों को दूर करने के लिये राज्य सरकार नये निर्देश जारी करेगी, इन निर्देशों में निम्नानुसार राहत दिया जाना प्रस्तावित है :
(1) ऐसे मामलों में जहां संदर्भित ज्ञापों एवं राज्य शासन के समय-समय पर जारी किए गये निर्देशों के अनुक्रम में विस्थापितों को व्यवस्थापित करते हुए कन्वेयन्स डीड (सनद) निष्पादित की गयी है, उन मामलों में ऐसे कन्वेयन्स डीड के आधार पर भू-खंड धारकों को ऐसे प्रयोजन के लिये, जिस हेतु उन्हें डीड के अनुसार भू-खंड आबंटित रहा है, भूमिस्वामी मान्य किया जाए और तद्नुसार भू-अभिलेखों में प्रविष्टि अंकित की जाए।
(2) ऐसे विस्थापितों को जिन्होंने आबंटित भू-खंड के भूमि उपयोग में बिना किसी विधिक अनुज्ञा के परिवर्तन कर लिया है, और ऐसा परिवर्तन तत्स्थानी विकास योजना में ऐसे भू-खंड के लिये निर्धारित प्रयोजन के अनुरूप है, वहां ऐसे परिवर्तन को इस शर्त पर मान्य किया जाए कि भू-खंड धारक ऐसे भूमि उपयोग परिवर्तन के लिये मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 59 के अधीन बने नियमों के अनुक्रम में वर्तमान प्रचलित देय प्रीमियम एवं संगणित वार्षिक भू-राजस्व के भुगतान के लिये सहमत हों और आदेश दिनांक तक की बकाया राशि की एकमुश्त भुगतान की अदायगी करे। ऐसे मामलो में देय प्रीमियम एवं पुनर्निधारित भू-राजस्व की संगणना आदेश दिनांक को लागू दरों के आधार पर की जाएगी, किन्तु बकाया राशि पर कोई ब्याज देय नहीं होगा।
(3) ऐसे व्यवस्थापितों के संबंध में, जिनके द्वारा संदर्भित परिपत्रों के अनुक्रम में आबंटित भू-खंड से अधिक क्षेत्रफल पर आधिपत्य किया जाकर उपयोग किया जा रहा है, उन्हें ऐसे अतिरिक्त क्षेत्रफल के लिये, यदि भू-खंड का उपयोग आवासीय प्रयोजन के लिये किया जा रहा है, तो वर्तमान वर्ष की कलेक्टर गाइड लाइन के आधार पर संगणित बाजार मूल्य के 5 प्रतिशत प्रब्याजि राशि और इस प्रकार संगणित प्रब्याजि राशि पर 5 प्रतिशत वार्षिक भू-भाटक और यदि आवासीय प्रयोजन से भिन्न प्रयोजन के लिये किया जा रहा है तो 20 प्रतिशत प्रब्याजि राशि और इस प्रकार संगणित प्रब्याजि राशि पर 7.5 प्रतिशत वार्षिक भू-भाटक निर्धारित करते हुए ऐसे आधिपत्य की दिनांक से 30 वर्ष के स्थायी पट्टे पर आबंटित की जाए जो पट्टे की अवधि समाप्ति पर नवकरणीय होगा। ऐसा आबंटन तत्स्थानी विकास योजना में अनुमत प्रयोजन के अनुरूप ही किया जा सकेगा, अन्यथा नहीं। ऐसा आवंटिती भूखण्ड के इस प्रकार आवंटित क्षेत्रफल के मामले में सरकारी पट्टेदार समझा एवं माना जाएगा तथा उस पर मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 182 के प्रावधान तथा नवीकरण के लिए राजस्व पुस्तक परिपत्र खण्ड चार क्रमांक-1 के अंतर्गत दिए गए स्थायी पट्टों के नवीकरण के लिए प्रभावशील परिपत्र/ज्ञाप के प्रावधान उसी प्रकार लागू होंगे, मानो कि ऐसा पट्टा राजस्व पुस्तक परिपत्र खण्ड चार क्रमांक-1 के अथवा तत्संबंधी विषयक मामलों के लिए जारी किए गए हैं। आवंटन के फलस्वरूप भू-खंडधारी से उस अवधि का भू-भाटक वसूल किया जाएगा, जबसे वे ऐसे अतिरिक्त भू-खंड का उपयोग करते आ रहे हैं, किन्तु कोई ब्याज नहीं लिया जाएगा।
(4) ऐसे विस्थापितों द्वारा जिन्हें आबंटित भू-खंड का उपयोग उनके अथवा वैधानिक अंतरिती कब्जाधारी द्वारा ऐसे भूमि उपयोग से भिन्न उपयोग में किया जा रहा है, जिसके लिये ऐसा भू-खंड आबंटित था, उनके विषय में तत्स्थानी विकास योजना के अध्यधीन रहते हुए भूमि उपयोग परिवर्तन मान्य किया जाए। ऐसा भूमि उपयोग परिवर्तन सर्वप्रथम उपरोक्त उपकंडिका (1) से (3) के अनुसरण में विधिमान्य किये जाने के उपरांत ही अनुज्ञेय होगा।
Created On :   16 March 2018 9:33 PM IST