करोड़ों में लगेगी पॉल्यूशन कंट्रोल मशीन, उपभोक्ताओं से धीरे-धीरे वसूली जाएगी कीमत

heavy cost of Pollution Control Machine, will charge on customer
करोड़ों में लगेगी पॉल्यूशन कंट्रोल मशीन, उपभोक्ताओं से धीरे-धीरे वसूली जाएगी कीमत
करोड़ों में लगेगी पॉल्यूशन कंट्रोल मशीन, उपभोक्ताओं से धीरे-धीरे वसूली जाएगी कीमत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दिसंबर तक विद्युत उपभोक्ताओं को बिजली विभाग एक और झटका दे सकता है। नई प्रदूषण नियंत्रण नीति के अनुसार, सभी कोयला आधारित बिजलीघरों को प्रदूषण नियंत्रित करने वाले यंत्र खासकर सल्फर डाई-आक्साइड नियंत्रित करने के लिए फ्यूल गैस डी-सल्फराइजेशन (एफजीडी) लगाना है। वर्ष 2016 तक शुरू हुए बिजलीघरों को इसे लगाने के लिए दिसंबर 2017 तक का समय दिया गया था, पर अधिकांश बिजलीघरों ने यह यंत्र नहीं लगाया है।  

विद्युत उपभोक्ता पर ही इसका भार पड़ेगा
पेंच यहां है कि प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए इस यंत्र का लगना आवश्यक है, और बिजलीघर अपनी जेब से खर्च करने तैयार नहीं। यह भी खबर उड़ी थी कि बिजलीघरों के दबाव में ऊर्जा मंत्रालय कानून में परिवर्तन कर इसकी कीमत विद्युत खरीददारों से वसूल करने की छूट बिजलीघरों को देगी। हालांकि ऊर्जा सचिव अजय कुमार भल्ला ने इन खबरों का खंडन कर दिया है। लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि बिजलीघर इसके लिए विद्युत नियामक आयोग के समक्ष जा सकते है। साफ है कि अपरोक्ष रूप से विद्युत उपभोक्ता पर ही इसका भार पड़ेगा। एफजीडी और अन्य प्रदूषण नियंत्रण यंत्र तथा इनकी संरचना पर करीब 1 से 2 करोड़ रुपए प्रति मेगावाट का खर्च आता है। ऐसे में यह एक काफी कीमती मसला है। बिजलीघर अपनी कीमत पर इसे लगाना नहीं चाहते। एफजीडी से कीमत बढ़ेगी नहीं, घट सकती है।

एफजीडी लगाने से बिजलीघरों की लागत नहीं बढ़ेगी
विशेषज्ञों की मानें तो एफजीडी लगाने से बिजलीघरों की लागत बढ़ेगी नहीं, बल्कि दीर्घकाल में वे फायदे में ही होगे। एफजीडी सल्फर डाई-आक्साइड को रोकेगा। इससे उसे उप-उत्पाद के रूप में कैिल्शयम सल्फेट यानी जिप्सम अर्थात प्लास्टर आफ पेरिस प्राप्त होगा। इसकी बाजार में मांग अधिक है और कीमत भी। इसे बेचकर ही प्रदूषण नियंत्रण यंत्रों की कीमत वसूल हो सकती है। उनका मानना है कि यदि बिजलीघर नियामक आयोग के समक्ष जाते हैं, तो उन्हें जिप्सम प्राप्ति का खुलासा भी आयोग के समक्ष रखना चाहिए।

क्या होता है सल्फर डाई-ऑक्साइड 
सल्फर डाई-ऑक्साइड एक घातक गैस है। यह सीधे श्वसन यंत्र पर हमला करती है। इससे अस्थमा व श्वास संबंधी विकार के अलावा कैंसर जैसे घातक रोग हो सकते हैं। सल्फर डाई-आक्साइड एसिड रेन या तेजाबी वर्षा के लिए भी जिम्मेदार होती है।

जानें ये, जरूरी है
एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति एक दिन में 22 हजार बार श्वास लेता है, लेकिन आज वायुमंडल में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हवा में कई हानिकारक गैसों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। एक अनुमान के अनुसार, पिछले सात दशकों में 10 लाख टन कोबाल्ट, 8 लाख टन निकिल तथा 6 लाख टन आर्सेनिक सहित अन्य गैसें वायुमंडल में समाविष्ट हो चुकी हैं। विदर्भ में कोराड़ी, खापरखेड़ा, चंद्रपुर तथा पारस में महाजेनको के बिजलीघर हैं। 

 

210 मेगावाट की 2 तथा 660 मेगावाट की 3 इकाइयां-कोराड़ी 
210 मेगावाट की 4 व 500 मेगावाट की 1 इकाई कार्यरत -खापरखेड़ा 
210 मेगावाट की 2 तथा 500 मेगावाट की 5 इकाइयां -चंद्रपुर 
250 मेगावाट की 2 इकाइयां-पारस

अन्य पावर प्लांट कहां
2640 मेगावाट का अडानी पावर- तिरोड़ा 
1000 मेगावाट का एनटीपीसी प्लांट-मौदा
270 मेगावाट का आइडियल पावर-बेला  
1350 मेगावाट का रतन इंडिया -अमरावती 
600 मेगावाट का जीएमआर -वरोरा   
600 मेगावाट का  रिलायंस पावर- बूटीबोरी 
600 मेगावाट का धारीवाल इन्फ्रा -तडाली (चंद्रपुर)
540 मेगावाट का साईं वर्धा पावर प्लांट -वरोरा  

Created On :   26 Nov 2017 5:46 PM IST

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