हाईकोर्ट : आईपीएल के शोर पर दायर याचिका खारिज, रेस्टोरेंट को हर्बल हुक्का बेचने की इजाजत, फिल्म निर्माता गौरंग को भी राहत

High Court : dismissed plea filed on IPL noise during cricket
हाईकोर्ट : आईपीएल के शोर पर दायर याचिका खारिज, रेस्टोरेंट को हर्बल हुक्का बेचने की इजाजत, फिल्म निर्माता गौरंग को भी राहत
हाईकोर्ट : आईपीएल के शोर पर दायर याचिका खारिज, रेस्टोरेंट को हर्बल हुक्का बेचने की इजाजत, फिल्म निर्माता गौरंग को भी राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने इंडियन प्रीमियर लीग(आईपीएल) क्रिकेट मैच के दौरान होनेवाले शोर सराबे  के चलते ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियमों का उल्लंघन होने के दावे को लेकर दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि क्रिकेट मैच के दौरान शोर व कोलाहल होना स्वाभाविक है। समाज के लोगों को इसका मजा लेने देना चाहिए। पेशे से वकील कपील सोनी ने इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि साल 2014 में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम  व वर्ष 2013 में पुणे में हुए आईपीएल मैच के दौरान बड़े पैमाने पर ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियमों का उल्लंघन हुआ है। इसलिए बोर्ड आफ कंट्रोल फार क्रिकेट इन इंडिया (बीसीसीआई) व महाराष्ट्र किक्रेट एसोसिएशन के खिलाफ कानून कार्रवाई का निर्देश दिया जाए। क्योंकि आईपीएल के खेल रात आठ बजे से शुरु होते है और आधी रात तक चलते रहते है। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि जब मैच के दौरान चौका व छक्का लगता है। अथवा विकेट गिरता है तो लोगों का खिलाडियों के प्रोत्साहन के लिए चिल्लान स्वाभाविक है। इसलिए लोगों को किक्रेट का आनंद व मजा लेने दिया जाए। खंडपीठ ने कहा कि वानखेडे स्टेडियम के परिसर में रहनेवाले किसी ने इस संबंध में शिकायत नहीं की है। जबकि इस विषय पर याचिकादायर करने वाला याचिकाकर्ता स्टेडियम से काफी दूरी पर रहता है। ऐसे में यह हमारी समझ से परे है कि याचिकाकर्ता कैसे इससे प्रभावित हो रहा है। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। 

हाईकोर्ट ने रेस्टोरेंट को दी हर्बल हुक्का बेचने की इजाजत

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई के एक रेस्टोरेंट को हर्बल हुक्का बेचने की इजाजत प्रदान कर दी है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने रेस्टोरेंट मालिक अली रेजा अब्दी को हुक्का बेचने की अनुमति दी । अधिवक्ता सुजय कांटावाला के मार्फत दायर याचिका में दावा किया गया था कि हर्बल हुक्का  सिगरेट व अदर टैबेको प्रडोक्ट कानून के दायरे में नहीं आता है। लिहाजा इस कानून को हर्बल हुक्का पर नहीं लागू किया जा सकता है। याचिका में मांग की गई थी कि सरकारी अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वे हर्बल हुक्का बेचने पर याचिकाकर्ता के रेस्टोरेंट के खिलाफ  किसी प्रकार की कार्रवाई न करे। याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर खंडपीठ ने कहा कि रेस्टोरेंट को हर्बल हुक्का बेचने की इजाजत दी जाती है लेकिन यदि रेस्टोरेंट को तंबाकूयुक्त हुक्का बेचते पाया जाता है तो सरकारी अधिकारी रेस्टोरेंट के खिलाफ कानून के हिसाब से कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता कांटावाला ने कहा कि मेरे मुवक्किल हर्बल हुक्के के लिए सोएक्स नाम के उत्पाद का इस्तेमाल करते है। जिसमें बिल्कुल भी तंबाकू नहीं पायी जाती है। कई जगहों पर इस उत्पाद का इस्तेमाल हो है। इस दौरान उन्होंने लैब की एक रिपोर्ट भी पेश की जिसके जरिए यह साबित किया गया कि याचिकाकर्ता हुक्के के लिए जिस उत्पाद का इस्तेमाल करनेवाले है उसमें तंबाकू नहीं है। ऐसे में मेरे मुवक्किल को उनका कारोबार करने से रोकना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। आखिर पहले से यह कैसे मना जा सकता है कि मैं तंबाकूयुक्त हुक्का बेचूगा। याचिका में रेस्टोरेंट मालिक अली ने कहा था कि उसके मुंबई में सीसा स्कायलाज ब्रांड नाम के तीन रेस्टोरेंट है। जहां 400 से अधिक लोग काम करते है। लेकिन  पिछले साल कमला मिल में लगी आग के चलते उन्हें रेस्टोरेंट में हुक्का बेचने की इजाजत नहीं दी जा रही है। उनके तीनों रेस्टोरेंट बंद पड़े है। श्री कांटावाला की दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को हर्बल हुक्का बेचने की इजाजत प्रदान कर दी। 
 
फिल्म निर्माता गौरंग दोशी को हाईकोर्ट ने दी राहत

बांबे हाईकोर्ट ने न्यायालय की अवमानना के मामले में मशहूर फिल्म निर्माता गौरंग दोशी को राहत प्रदान की है। इससे पहले दोशी को जानबूझकर अदालत के आदेश की अवहेलना के लिए न्यायालय की अवमानना का नोटिस जारी किया था। जिसमें उन्हें 6 माह के साधरण कारावास की सजा हो सकती थी। किंतु मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग की खंडपीठ ने दोशी पर लगे न्यायालय की अवमानना के आरोप को खत्म कर दिया है। इस तरह से कोर्ट ने दोशी को राहत प्रदान की है। 

ऑटो व टैक्सी के इस्तेमाल की समय-सीमा से जुड़ी नीति को हर जगह समान रुप से किया जाएगा लागू

वहीं व्यावसायिक वाहनों आटोरिक्शा व टैक्सी के चलने की तय की गई समय सीमा सिर्फ चुनिंदा जिलों में लागू किए जाने के मुद्दे पर बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। मामले में हाईकोर्ट के कड़े रुख को देखते हुए राज्य सरकार ने कहा है कि आटोरिक्शा व टैक्सी के चलने को लेकर लाई गई नीति को पूरे राज्य में समान रुप से लागू करेगी। इससे पहले न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ ने आटोरिक्शा व टैक्सी के चलने को लेकर सरकार की ओर से साल 2013 में लाई गई नीति को सिर्फ मुंबई में लागू करने से जुड़ी नीति पर खिन्नता व्यक्त की। खंडपीठ ने कहा कि सरकार नियमों को चरणबध्द तरीके से लागू कर सकती है लेकिन सिर्फ चुनिंदा जगहों का चयन करके नीति को लागू करना ठीक नहीं है। मामले को लेकर सरकार की ओर से दायर किया गए हलफनामे में यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार अपनी नीति को समान रुप से हर जगह लागू करेगी। इसलिए सरकार इस विषय पर अतिरिक्त हलफनामा दायर करे। इस विषय को लेकर नाशिक के भंद्रकाली आटो रिक्शा यूनियन के अध्यक्ष हैदर मोहम्मद सैय्यद व अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में नाशिक के क्षेत्रिय परिवहन प्राधिकरण की ओर से जुलाई 2018 को  जारी किए गए परिपत्र को चुनौती दी गई है। परिपत्र के मुताबिक नाशिक में 20 साल से अधिक पुराने व्यावसायिक वाहनों को नहीं चलने दिया जाएगा। याचिका में दावा किया गया है कि वाहनों के इस्तेमाल के संबंध में जारी किए गए इस परिपत्र को सिर्फ मुंबई व नाशिक में लागू किया जा रहा है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि सरकार वहानों के इस्तेमाल की सीमा से जुड़ा नियम सिर्फ चुनिंदा जिलों में लागू नहीं कर सकती है। सरकार की ओर से इस मामले को लेकर दायर किया गया हलफनामा स्पष्ट नहीं करता है कि सरकार ने पूरे राज्य के लिए वाहनों के इस्तेमाल की समय सीमा तय की है। सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सरकारी वकील श्रुती व्यास ने कहा कि सरकार  वहानों के इस्तेमाल के लिए तय की गई समय सीमा के संबंध में लिए गए नीतिगत निर्णय को पूरे राज्य में समान रुप से लागू करेगी। सरकार ने साल 2013 में मुंबई में आटोरिक्शा चलने की समय सीमा 16 साल व टैक्सी के इस्तेमाल की समय सीमा 20 साल तय की है। इसके बाद इन वाहनों को सड़को पर नहीं चलने दिया जाएगा। सरकार ने हकीम कमेटी की सिफारिसों के आधार पर वहानों के इस्तेमाल की समय सीमा से जुड़े नियम को लागू किया है। याचिका में दावा किया गया है कि सरकार अब आटोरिक्शा व टैक्सी के इस्तेमाल को लेकर मुंबई के लिए तय किए गए नियम को नाशिक में लागू कर रही है। याचिकाकर्ता की वकील ने कहा कि साल 2013 में परिवहन आयुक्त ने निर्देश जारी कर कहा था कि वाहनों के इस्तेमाल की समय सीमा से जुड़ा नियम सिर्फ मुंबई के लिए है। मुंबई व नाशिक में एक जैसे नियम लागू नहीं किए जा सकते है। क्योंकि मुंबई व नाशिक की परिस्थितियां अलग-अलग है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 25 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी है और अगली सुनवाई के दौरान सरकारी वकील को  हकीम कमेटी की रिपोर्ट पेश करने को कहा है। 
 

Created On :   15 July 2019 2:55 PM GMT

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