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बॉम्बे हाई कोर्ट: गाली देने के एससी-एसटी मामले में 20 साल बाद 7 बरी, मानसिक बीमार वृद्धा का बेटों और बेटी को गार्जियन बनाने से इनकार

- राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए ठाणे सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा
- अदालत ने वृद्ध महिला का संरक्षण के रूप में कार्य करने के लिए गार्जियन एड-लिटम (मुकदमे के लिए अभिभावक) को किया नियुक्त
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने जाति सूचक शब्द से गाली देने के एससी-एसटी मामले में 20 साल बाद भिवंडी तहसील के वडपे ग्राम पंचायत के उप सरपंच समेत 7 सदस्यों को बरी कर दिया। अदालत ने राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए ठाणे सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। अदालत ने माना है कि ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों में कोई दोष नहीं लगता है। पहले आरोपी को छोड़ कर अन्य आरोपियों की उपस्थिति संदिग्ध है। कई व्यक्तियों द्वारा हमला करने के बारे में अभियोजन पक्ष का पूरा मामला ही संदिग्ध है, क्योंकि चिकित्सा साक्ष्य के माध्यम से पुष्टि नहीं हुई है। एक छड़ी बरामद हुई है, लेकिन पंच ने इसका समर्थन नहीं किया है। छड़ी पर खून के धब्बे नहीं हैं। न्यायमूर्ति एस.एम.मोडक की एकलपीठ ने कहा कि क्या घटना ग्राम पंचायत कार्यालय के अंदर हुई है या ग्राम पंचायत कार्यालय के बाहर। गवाह की राय के अलावा और कुछ नहीं है कि ‘अविश्वास' प्रस्ताव पारित होने के कारण उसे जाति के आधार पर गाली दी गई थी। एससी और एसटी अधिनियम के अनुसार जाति के आधार पर गाली देना आवश्यक है। मुझे उस निष्कर्षों में कोई दोष नहीं लगता है। पीठ ने यह भी कहा कि अपील दायर करने के समय प्रथम शिकायतकर्ता को पक्षकार के रूप में शामिल नहीं किया गया था। अपील वर्ष 2004 की है। इसलिए मुझे उसे नोटिस जारी करना आवश्यक नहीं लगा। ट्रायल कोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण एक संभावित दृष्टिकोण है। इसलिए अपील में कोई योग्यता नहीं है। इसलिए याचिका खारिज कर दी। ठाणे जिले के भिवंडी तहसील स्थित वडपे ग्राम पंचायत है। शिकायतकर्ता नितिन पांडुरंग गायकवाड़ आरक्षित वर्ग से सरपंच चुने गए थे, जबकि जनार्दन उप सरपंच थे। वे और अन्य आरोपी सदस्य किसान हैं। उनके नितिन के साथ अच्छे संबंध नहीं रख रहे थे। उनकी शिकायत थी कि नितिन गांव के विकास के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे थे। 30 जून 2001 को दोपहर करीब 12.30 बजे नितिन कार्यालय में उपस्थित थे। इस दौरान आरोपियों ने कार्यालय में घुस कर नितिन के साथ मारपीट की और उन्हें जाति सूचक गाली दिया। नितिन ने भिवंडी तहसील पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। ठाणे के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा 2004 में आरोपियों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (एससी और एसटी अधिनियम) की धारा 3(1)(10) और भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 323,325 सहपठित धारा 149 के तहत दर्ज मामले में बरी कर दिया था। राज्य सरकार ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार वृद्ध महिला का दो बेटों और बेटी को गार्जियन बनाने से किया इनकार
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार वृद्ध महिला का दो बेटों और एक बेटी को गार्जियन बनाने से इनकार कर दिया। अदालत ने महिला का संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए गार्जियन एड-लिटम (मुकदमे के लिए अभिभावक) को नियुक्त किया है, जिसमें चारुशीला वैद्य, मास्टर और सहायक प्रोथो नोटरी (न्यायिक) होंगे। दो बेटे और एक बेटी गार्जियन एड-लिटम द्वारा किए जाने वाले खर्चों को वहन करेंगे। अदालत ने पाया कि अदालत ने पहले वृद्ध माता-पिता का गार्जियन एक बेटे और एक बेटी को बनाया था। एक बेटे ने याचिका दायर कर भाई एवं बहन पर पैतृक संपत्ति के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। न्यायमूर्ति एन.जे.जमादार की पीठ के समक्ष अजय अमरचंद छाबड़िया की दायर याचिका पर पर पीठ ने कहा कि लड़ाई संयुक्त परिवार की संपत्ति को लेकर भाई-बहनों के बीच है। जहां बच्चे अपने जीवन के अंतिम समय में माता-पिता की संपत्ति पर मुकदमा कर रहे हैं, वहां जिस माता-पिता के लिए संरक्षक नियुक्त किया जाना है, उनके ‘हित' का निर्धारण कठिनाइयों से मुक्त नहीं है। माता-पिता के ‘हित' क्या हैं, इस प्रश्न का उत्तर अक्सर ऐसे माता-पिता की इच्छाओं में निहित होता है। जहां माता-पिता उस ‘हित' को स्पष्ट करने की स्थिति में नहीं हैं, वहां यह निर्धारित करना कि किसका हित ऐसे माता-पिता के प्रतिकूल है, यह कहना कठिन है। इसलिए महिला के हित के प्रश्न को केवल भाई या बहन के रूप में पक्षों की व्यवस्था के आधार पर सार रूप में तय नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह इंगित करती है कि बेटी मां और पिता के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के रूप में काम किया है और पंजीकरण के लिए एक बेटे के पक्ष में मां द्वारा निष्पादित एक उपहार विलेख प्रस्तुत किया है। इसके बावजूद पीठ का विचार है कि संपत्ति से निपटने के संबंध में आरोपों और प्रति-आरोपों के मद्देनजर मांग के संरक्षक के रूप में बहन की नियुक्ति कर्तव्य और हितों के टकराव की स्थिति को जन्म दे सकती है। ऐसे में पीठ मानसिक रूप से बीमार मां के संरक्षण के रूप में कार्य करने के लिए न्यायालय के एक अधिकारी को नियुक्त करना उचित मानता है। ।याचिकाकर्ता बेटे ने दावा किया गया कि अदालत ने उनके भाई और बहन को माता-पिता का गार्जियन बनाया था। उनके पिता की मृत्यु हो गई और मां की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में उनके भाई बहन मां की मानसिक बीमारी का फायदा उठा कर पैतृक संपत्ति का दुरुपयोग कर रही है। मां के स्वास्थ्य की जांच और उनकी देखरेख के लिए गार्जियन एड-लिटम (मुकदमे के लिए अभिभावक) नियुक्त करने का अनुरोध किया।
Created On :   6 July 2025 9:24 PM IST