नोटबंदी के दौरान निर्धारित सीमा से अधिक रकम निकालने पर दर्ज मामले रद्द

High Court provided relief in criminal case during demonetization
नोटबंदी के दौरान निर्धारित सीमा से अधिक रकम निकालने पर दर्ज मामले रद्द
नोटबंदी के दौरान निर्धारित सीमा से अधिक रकम निकालने पर दर्ज मामले रद्द

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने नोट बंदी के दौरान रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआई) की ओर से तय की गई सीमा से अधिक रकम निकालने के चलते आपराधिक मामले का सामना कर रहे दो लोगों को राहत प्रदान की है।। यही नहीं नोट बंदी के समय निर्धारित सीमा से ज्यादा रकम निकालने के मामले में आरोपी रिलाइबल आटो टेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधक व निदेशक के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है। केंद्र सरकार ने 8 नवंबर 2016 को एक हजार व पांच सौ के नोटों पर प्रतिबंध लगाया था। 10 नवंबर को आरबीआई ने परिपत्र जारी कर सभी बैंकों को सूचना दी थी कि किसी को भी एक साथ दस हजार से अधिक रकम निकालने की इजाजत न दी जाए। और पुराने नोट के बदले चार हजार से अधिक रकम न दी जाए। इस दौरान कंपनी ने चेक के जरिए नाशिक स्थित स्टेट बैंक आफ इंडिया की इंडस्ट्रीयल शाखा से 10 वनंबर 2016 को एक साथ अलग-अलग खातों से 13.5 लाख  रुपए निकाले। रकम निकालने जाने की मिली गुप्त सूचना के अाधार पर सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधक व निदेशक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता व भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। जिसे रद्द करने की मांग को लेकर कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधक व निदेशक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 

न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए पी मुंदरगी ने कहा कि मेरे मुवक्किलों को आरबीआई की ओर से नोटबंदी के दौरान रकम निकालने को लेकर जारी परिपत्र की जानकारी नहीं थी। आरबीआई ने बैंकों को परिपत्र जारी किया था। इसलिए यह बैंक की जिम्मेदारी थी कि वह आरबीआई के परिपत्र का पालन करे। चूंकी आरबीआई के परिपत्र का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं किया गया था इसलिए मेरे मुवक्किल को इसके विषय में जानकारी नहीं थी।  मेरे मुवक्किल ने सिर्फ चेक में हस्ताक्षर किए थे। इसके लिए मेरे मुवक्किल को दंडित नहीं किया जा सकता है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि चेक से निकाली गई रकम से बैंक को कोई वित्तीय नुकसान नहीं हुआ है। याचिकाकर्ताओं को सिर्फ इसलिए मामले में आरोपी बनाया गया है क्योंकि उनके उस चेक में हस्ताक्षर है जिससे रकम निकाली गई है।

इस मामले से जुड़े आरोपपत्र पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हमारे सामने ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिसके आधार पर आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी (420) व आपराधिक अभित्रास (409) का मामला बनाता हो। इस मामले में सिर्फ आरबीआई के परिपत्र का उल्लंघन हुआ है। जिसके लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। खंडपीठ ने कहा कि मामले से जुड़े तथ्य इस मामले में याचिकाकर्ता के किसी दुराशय को नहीं दर्शाते है। ऐसे में इनके खिलाफ मुकदमा चलान पूरी तरह से बेतुका होगा।  इसिलए आरोपियों के खिलाफ दर्ज किए गए आपराधिक मामले व नाशिक कोर्ट में दायर आरोपपत्र को रद्द किया जाता है। 

Created On :   9 May 2019 7:56 PM IST

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