न्याय नहीं दे सकते तो हमें मध्यप्रदेश में शामिल कर दें

If you cant give justice then include us in Madhya Pradesh
न्याय नहीं दे सकते तो हमें मध्यप्रदेश में शामिल कर दें
गोंदिया न्याय नहीं दे सकते तो हमें मध्यप्रदेश में शामिल कर दें

डिजिटल डेस्क, आमगांव (गोंदिया). आमगांव नगर परिषद अथवा नगर पंचायत? यह मामला पिछले कई वर्षों से सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। इस कारण आमगांव नगर परिषद पर पिछले आठ वर्षों से प्रशासक राज चल रहा है। जिसका सीधा असर क्षेत्र के विकास कार्यों पर पड़ रहा है और अनेक शासकीय योजनाओं का लाभ यहां के नागरिकों को नहीं मिल पा रहा है।

इससे त्रस्त होकर आमगांव नगर परिषद संघर्ष समिति के बैनर तले सर्वपक्षीय नेताओं एवं नागरिकों ने सोमवार, 27 फरवरी को तहसीलदार मानसी पाटील के माध्यम से राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नाम ज्ञापन सौंपकर राज्य सरकार से गोंदिया जिले के आमगांव तहसील के आमगांव, बनगांव, िकंडगीपार, माल्ही, पदमपुर, कुंभारटोली, बिरसी, रिसामा यह इन आठ गांवों के निवासियों को न्याय नहीं दिला सकती तो इन सभी गांवों का समावेश सीमावर्ती मध्यप्रदेश राज्य में कर दिया जाए अथवा इस क्षेत्र को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया जाए। 

ऐसी मांग की है। गौरतलब है कि आमगांव तहसील के आमगांव, बनगांव, िकंडगीपार, माल्ही, पदमपुर, कुंभारटोली, बिरसी, रिसामा यह आठ गांव महाराष्ट्र राज्य के गोंदिया जिले में है। इन गांवों की कुल जनसंख्या लगभग 40 हजार है। पहले वर्ष 2015 में राज्य सरकार ने सभी तहसील मुख्यालयों को नगर पंचायत का दर्जा दिया था। जिसके बाद आमगांव तहसील मुख्यालय की ग्राम पंचायत नगर पंचायत में तब्दील हो गई थी एवं कामकाज शुरू हो गया था। इसके बाद स्थानीय लोगों की मांग पर राज्य सरकार ने आठ गांवों को मिलाकर आमगांव नगर परिषद का गठन करने की अधिसूचना जारी की एवं नगर परिषद की वार्ड रचना के साथ ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई।

इसी बीच कुछ लोगों ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में राज्य सरकार की नगर परिषद गठन की अधिसूचना को चुनौती देते हुए याचिका दायर की तथा केवल आमगांव को नगर पंचायत एवं आमगांव नगर परिषद में शामिल किए गए सभी गांवों को पहले की तरह ही ग्राम पंचायत बनाए रखने की मांग की। सभी पक्षों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की नगर परिषद गठन की अधिसूचना रद्द कर दी एवं पूर्व की स्थिति बहाल करने के निर्देश दिए। इस निर्देश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित चल रहा है। मामला न्यायालय में लंबित होने के कारण राज्य सरकार नगर परिषद का कामकाज प्रशासक के भरोसे चला रही हंै। वर्ष 2014 के बाद से इन गांवों में कोई स्थानीय स्वराज संस्था के चुनाव नहीं हुए है। 

जनप्रतिनिधि नहीं होने के कारण विकास कार्यों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। इस बीच राज्य मंे दो सरकारे बदल गई लेकिन आमगांव नगर परिषद के भविष्य का फैसला नहीं हो सका। इससे त्रस्त होकर आज सर्वपक्षीय प्रतिनिधियों एवं नागरिकों ने राज्य के मुख्यमंत्री से मांग की कि या तो इस मामले का निपटारा करवाकर यहां सामान्य स्थिती बहाल की जाए अथवा उपरोक्त सभी आठ गांवों को पडोसी मध्यप्रदेश में शामिल कर दिया जाए। ताकि क्षेत्र का विकास हो सके। निवेदन सौंपते समय रवि क्षीरसागर, यशवंत मानकर, संजय बहेकार, उत्तम नंदेश्वर, रितेश चुटे, विजय नागपुरे, मुन्ना गवली, महेश उके, राहुल चुटे, प्रभा उपराडे, बालु वंजारी, पिंकेश शेंडे, राधाकिशन चुटे, इकबाल पठान, चंदन बावने, भोला गुप्ता, घनश्याम मेंढे, आनंद भावे, चिनु मेश्राम, विक्की बावने, शुभम कावले, रामदास गायधने, आदित्य मेश्राम, तुषार चचाने सहित अन्य नागरिक उपस्थित थे। 
 

Created On :   28 Feb 2023 7:48 PM IST

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