सोशल मीडिया पर जनता के मतों को नजरअंदाज करने से घटा मत-प्रतिशत

Ignoring public opinion on social media reduces vote share
सोशल मीडिया पर जनता के मतों को नजरअंदाज करने से घटा मत-प्रतिशत
सोशल मीडिया पर जनता के मतों को नजरअंदाज करने से घटा मत-प्रतिशत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विधानसभा चुनाव के दौरान जनता के मत या विचारों का ट्रेंड देखकर राजनीतिक दल, उम्मीदवारों को सुधरने का सुनहरा मौका था। लेकिन राजनीतिक दल या उम्मीदवारों ने सोशल मीडिया का उपयोग सिर्फ प्रतिस्पर्धी पर प्रति-हमला के लिए किया। जनता द्वारा सोशल मीडिया पर व्यक्ति किए गए विचार, अपेक्षा को महत्व न देते हुए प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार बाबत नकारात्मक पोस्ट करने से मतदान पर उसका सीधा असर हुआ है। राज्य में मत-प्रतिशत घटने का यह भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। विधानसभा चुनाव में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान का गणित शहर के प्रमुख राजनीतिक दल व उम्मीदवारों ने रखा था। इस अनुसार आसानी से जितने का दावा किया जा रहा था। लेकिन शहर में 50 प्रतिशत से कम और जिले में 56 प्रतिशत मतदान हुआ। सोशल मीडिया पर नकारात्मक प्रचार व प्रसार के कारण मतदान पर असर हुआ। यह दावा करते हुए सोशल मीडिया विश्लेषक अजित पारसे ने कहा कि मतदान प्रतिशत कम होने के लिए नागरिकों की उदासीनता के साथ राजनीतिक दल, उम्मीदवार भी जिम्मेदार है। राजनीतिक दल या उम्मीदवारों ने सोशल मीडिया का सिर्फ शक्ति प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल किया। चुनाव के दौरान नागरिकों ने अपनी अपेक्षा सोशल मीडिया पर व्यक्त की थी। उसकी समीक्षा कर राजनीतिक दल या उम्मीदवारों को जनता के हित में कदम उठाना अपेक्षित था। उसका सकारात्मक प्रभाव मतदान प्रतिशत पर हो सकता था। किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिसकारण नोटा या फिर मतदान न करने का विकल्प सामने आया।

इसके अलावा किसी पार्टी की विचारधारा से सहमत नागरिक सिर्फ उम्मीदवार पसंदीदा नहीं होने के कारण भी मतदान के लिए बाहर नहीं निकलने का ध्यान में आया। राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर नागरिकों से संवाद साधकर उम्मीदवार चयन बाबत मत मांगने पर मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी की संभावना था। उम्मीदवार की छवि कैसी होनी चाहिए, इस बाबत सोशल मीडिया पर विचार व्यक्त होते रहते है। किन्तु इसे नजरअंदाज किया गया। पत्रकारों से बात करते हुए अजित पारसेत ने कहा कि सोशल मीडिया बाबत जागृत न होने पर भविष्य में मतदान अनिवार्य का कानून लागू होने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उम्मीदवार लादने के परिणाम भी इस चुनाव के नतीजों से सामने आ रहे है। सोशल मीडिया को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया जा रहा है, यह गलत है। अब सोशल मीडिया लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ साबित हो रहा है। उसे नजरअंदाज करना महंगा पड़ सकता है।


सोशल मीडिया महत्वपूर्ण समीकरण

चुनाव में पहले राजनीतिक दल व जनता का समीकरण हुआ करता था। लेकिन अब राजनीतिक दल, सोशल मीडिया व जनता का नया समीकरण सामने आ रहा है। चुनाव में सोशल मीडिाय की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इसे नजरअंदाज करने पर राजनीतिक दलों के साथ उम्मीदवार चुनकर आने पर जनता को भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

एक तरफा प्रचार महंगा पड़ेगा

जनता को नजरअंदाज कर राजनीतिक एजेंडा चलाने के लिए राजनीतिक दल, उम्मीदवारों ने सोशल मीडिया का नकारात्मक इस्तेमाल किया। चुनाव के नतीजों से यह उन्हें महंगा साबित होता दिख रहा है। 2022 के मनपा चुनाव में भी उम्मीदवारों द्वारा एकतरफा प्रचार शुरू रहने पर उसका मतदान प्रतिशत पर असर होने के आसार अधिक है।
-अजित पारसे, सोशल मीडिया विश्लेषक 
 

Created On :   29 Oct 2019 4:35 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story