विद्युत क्षेत्र को सुधारने के लिए फ्लाप फ्रेंचाइजी की जगह जरूरी है खर्चों पर लगाम

डिजिटल डेस्क, नागपुर। केंद्र के थिंक टैंक नीति आयोग ने सलाह दी है कि विद्युत व व्यावसायिक हानि घटाने के लिए वितरण कंपनियों का निजीकरण किया जाना चाहिए, साथ ही विद्युत वितरण के लिए फ्रेंचाइजी नियुक्त की जानी चाहिए। विद्युत संगठनों ने इसका मुखर विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि पूरी तरह असफल हो चुकी फ्रेंचाइजी पद्धति लाकर विद्युत उपभोक्ता तथा विद्युत कर्मचारियों को परेशानी में डालने का काम किया जा रहा है। विद्युत क्षेत्र को सुधारने के लिए फ्रेंचाइजी या निजीकरण की नहीं, अनुशासन और प्रशासनिक खर्चों पर लगाम लगाने की जरूरत है। विद्युत मंडलों को विभाजित कर विद्युत कंपनी बनाने से आयकर सहित कई अन्य करों का भार कंपनियों पर बढ़ा है। इसका अपरोक्ष भार उपभोक्ताओं पर पड़ा है।
कंपनियों को समेटना पड़ा है काम
महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन के अध्यक्ष मोहन शर्मा व प्रदेश सहसचिव वेंकटेश नायडू ने बताया कि देश का थिंक टैंक वह सलाह दे रहा है, जो पूरी तरह असफल है। अभी तक एक भी फ्रेंचाइजी सफल नहीं रही। यदि भिवंडी को छोड़ दें, तो बिहार में मुजफ्फर नगर, मध्यप्रदेश में सागर और उज्जैन में फ्रेंचाइजी विफल रही। कुछ ही दिनों में उन्हें वहां से अपना काम समेटना पड़ा। ग्वालियर में तो शुरू होने के पूर्व ही फ्रेंचाइजी बंद हो गई। नीति आयोग ने ग्रामीण इलाकों में फ्रेंचाइजी आधार पर विद्युत वितरण करने का सुझाव दिया है। निजी कंपनियां भी ऐसे क्षेत्रों में फ्रेंचाइजी लेने की उत्सुक नहीं हैं। उन्हें भी कम विद्युत और व्यावसायिक हानि वाले क्षेत्र में ही आने की इच्छा रहती है। छत्तीसगढ़ में भटापारा सहित एक दो ग्रामीण क्षेत्रों में फ्रेंचाइजी पद्धति लागू करने की कोशिश की गई, लेकिन विफल रहे।
देशभर में होगा विरोध
बिजली दिन-प्रति-दिन महंगी होती जा रही है। बिजली कैसे सस्ती हो, इसका उपाय सुझाने की जगह नीति आयोग गैर जिम्मेदाराना सलाह दे रहा है। आल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने इस पर कड़ा विरोध जताया है। फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा कि नीति आयोग ने उन्हीं बिंदुओं को उठाया है, जिनके लिए विद्युत अधिनियम में 2014 व 2018 में संशोधन लाया गया था और इन्हें पारित नहीं कराया जा सका। फेडरेशन के देशभर में 15 लाख सदस्य हैं। उन्होंने केंद्रीय बिजली मंत्री आर. के. सिंह से मिलने का समय मांगा है। उन्होंने कहा कि प्रायोगिक तौर पर जहां भी फ्रेंचाइजी की गई, वहां बुरी तरह से विफल रही है। यदि सरकार नीति आयोग के सुझावों पर अमल करती है, तो फेडरेशन देश में इसका विरोध करेंगे।
महाराष्ट्र में करोड़ों का चूना लगाकर भाग गई फ्रेंचाइजी
माेहन शर्मा ने बताया कि महाराष्ट्र में सबसे पहले फ्रेंचाइजी पद्धति पर अमल किया गया था। मुंबई से जुड़े भिवंडी क्षेत्र को टोरेंट को फ्रेंचाइजी पर दिया गया था। देश की यह एक मात्र फ्रेंचाइजी है, जो सफल है। इसके पीछे का राज है बुनकरों को मिलने वाली छूट है। इसके अलावा सभी फ्रेंचाइजी विफल रही हैं। नागपुर के साथ औरंगाबाद शहर का विद्युत वितरण फ्रेंचाइजी पर दिया गया था। औरंगाबाद का विद्युत वितरण संभाल रही जीटीएल, महावितरण को 284 करोड़ रुपए का चूना लगा कर भाग गई। उसके द्वारा दी गई बैंक गारंटी और अन्य तरीकों से वसूलने की कोशिश कर कुछ हद तक वसूली की गई। जलगांव का विद्युत वितरण क्रांप्टन ने लिया। उसने भी हाथ खड़े कर दिए और बैंक गारंटी जप्त कर महावितरण ने बकाया की वसूली की।
एसएनडीएल लड़खड़ाती स्थिति में
वर्ष 2011 में नागपुर के 3 विभागों को कपिल शर्मा की कंपनी स्पेनको को फ्रेंचाइजी पर दिया गया था। एक साल में ही 225 करोड़ का कर्ज महावितरण पर लाद कर उसने भी हाथ खड़े कर दिए। बाद में एसएनडीएल ने नागपुर का विद्युत वितरण संभाला, लेकिन वह भी लड़खड़ाती स्थिति में है। ऐसे में देश में विद्युत विरण को फ्रेंचाइजी पर देने का नीति आयोग का सुझाव हास्यास्पद है।
Created On :   22 Jun 2019 2:09 PM IST