महाभारत में प्रबंधन का जितना ज्ञान है, उतना संसार के किसी ग्रंथ में नहीं

In the Mahabharata, no knowledge of the world is as much as the knowledge of management
महाभारत में प्रबंधन का जितना ज्ञान है, उतना संसार के किसी ग्रंथ में नहीं
महाभारत में प्रबंधन का जितना ज्ञान है, उतना संसार के किसी ग्रंथ में नहीं

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  महाभारत में जो डुबकी लगाते हैं, उनके विचारों को अद्भुतता की प्राप्ति होती है। महाभारत में प्रबंधन का जितना ज्ञान है, उतना संसार के किसी ग्रंथ में नहीं। नेतृत्व के बारे में जितना स्वामी रामदास के ग्रंथों में है, और कहीं नहीं है। यह उद्गार राधाकृष्ण मंदिर, वर्धमान नगर आयोजित महाभारत संदेश कथा के द्वितीय दिवस पर श्रेयस विद्यालय प्रांगण वर्धमान नगर में व्यासपीठाचार्य गोविंदगिरि महाराज ने अपनी अमृतमय वाणी में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि कालिदास और शेक्सपियर ने अपने साहित्य में जितने चरित्र नहीं गढ़े उससे अधिक कृष्ण द्वपायन व्यास ने महाभारत में रचे हैं। जिसने इस ग्रंथ को नियम से पढ़ा, उसका जीवन प्रभावशाली बन जाता हैं। महाभारत की कथा वेद व्यास ने सर्वप्रथम जनमेजय को सुनाई थी। जनमेजय पांडव वंश में अर्जुन के बाद तीसरी पीढ़ी के थे। जनमेजय ने वेदव्यास से प्रश्न किया कि हमारे पूर्वज सुविज्ञ थे, कुलीन थे व सदाचारी थे, फिर उनमें मतभेद क्यों आए? युद्ध क्यों हुआ।

देखा जाए तो दुर्योधन मित्र बनाना जानता था और मित्रता पालना भी जानता था। यही कारण कि भगवान कृष्ण के पांडव पक्ष में होते हुए भी पांडव सात अक्षौहिणी सेना जुटा पाए जबकि दुर्योधन ने ग्यारह अक्षौहिणी सेना जुटा ली थी। कोई मतभेद ऐसा नहीं होता जो समय पर मिटाया न जा सके। फिर भी भाई-भाई में, मित्रों में ऐसी परिस्थिति क्यों आती है। इसका परिचय वेदव्यास ने इस ग्रंथ से जगत को कराया है। सहसंयोजक किसनदास झंवर ने बताया कि राधाकृष्ण मंदिर ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी पवनकुमार पोद्दार मुख्य यजमान परिवार, श्यामसुंदर पोद्दार परिवार से गौरव पोद्दार, आर.के. पोद्दार एवं आज के दैनिक यजमान रतनकुमार बाबुलाल पोद्दार सपत्नीक ने पूजन किया।

ग्रंथ पूजन विठ्ठलदास तापडिया, ब्रिन्देश अग्रवाल, संजय केडिया, डाॅ. राजेन्द्र अग्रवाल, अशोक छगनलाल कोठारी, प्रभा मुरारीलाल अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण सारडा राजनांदगांव, राजेश जिंदल, सुरेश लखोटिया, संतोष अग्रवाल, चंपालाल पालीवाल, मधु बारापात्रे, गणेशलाल अग्रवाल जालना, रमेशकुमार राठी काटोल, अंकित अग्रवाल कामठी, पुरुषोत्तम राठी, परमानंद धींगरा, रमेश जावंधिया दुर्गापूर, शंकरलाल केडिया, सत्यनारायण लोया, मोहनलाल भूतडा, ज्योतीस्वरुप पुरोहित, हंसमुख ठक्कर आदि ने किया। संचालन रमेश राजोरिया ने किया। 

शकुंतला दुष्यंत ... कथा-वाचन
 शकुंतला दुष्यंत की करूणामयी कथा महाराज ने सुनाई। दुष्यंत ने शकुंतला को गर्भवती बनाने पर भी उसका तिरस्कार किया। कालांतर में दुष्यंत ने शकुंतला को अपनाया और उनका पुत्र भरत नाम से विख्यात हुआ। उसी के नाम पर हमारा देश भारत कहलाया। 

कथा स्थल के लिए नि:शुल्क बस व्यवस्था
कथा का समय नित्य दोपहर 2.30 से शाम 6.30 बजे तक रहेगा। बस व्यवस्था सीतामाता मंदिर, शांतिनगर कालोनी के पास एवं रामनगर राम मंदिर के पास से कथा स्थल के लिए की गई है। बस व्यवस्था के लिए सुधीर केडिया से संपर्क किया जा सकता है। 

Created On :   23 Dec 2019 10:43 AM IST

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