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झिरिया का पानी, देशी खानपान से सेहतमंद है पातालकोट के आदिवासी - कोरोनाकाल में एक भी ग्रामीण सर्दी जुकाम या बुखार से पीडि़त नहीं
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा/ तामिया । हरे भरे जंगलों से भरपूर पहाड़ों के बीच बसे पातालकोट में सालों बाद आम आदमी की पहुंच के लिए रास्ता बन पाया। यहां के लोग आज भी अपनी संस्कृति के अनुरूप साल भर झिरिया का पानी पीते हंै तो वहीं उनकी भोजन थाली में मक्का, कोदो, कुटकी, और मक्का से बने पोषक व्यंजन कायम हंै। यही कारण है कि बीते 15 माह में कोरोना की दो घातक लहरों के बीच यहां एक भी ग्रामीण बीमार नहीं हुआ। कोरोना तो दूर यहां किसी भी नागरिक को सर्दी, जुकाम या बुखार की शिकायत नहीं हुई। पातालकोट में तीन गांव चिमटीपुर, रातेड़ और कारेआम शामिल हैं। यहां मूलत: भारिया जनजाति के लोग निवास करते हैं। बीते 18 महीनों में यहां सिर्फ उम्रदराज बुजुर्गों की सामान्य मृत्यु हुई है। पहली लहर में यहां 80 लोगों के सेम्पल लिए गए थे जिसमें एक भी संदिग्ध नहीं मिला सभी की रिपोर्ट निगेटिव ही आई। दूसरी लहर में 48 सेम्पल लिए गए इस बार भी कोई संदिग्ध नहीं मिला। लाकडाउन के दौरान इन गांवों के लोग जरूरी काम के लिए गांव से बाहर अन्य गांवों तक गए लेकिन वहां भी ये कोरोना संक्रमण से बच गए।
शुद्ध देसी खानपान बरकरार
यहां के लोगों का खानपान एकदम देसी है। जिसे शहरी लोग सिर्फ बीमारी पर अतिरिक्त आहार के रूप में लेते हैं। इसी आहार के कारण इन अतिगरीब ग्रामीणों के शरीर में बीमारी से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा है। यहां के लोग मुख्य आहार में मक्के की रोटी, पेजा, मही और मक्के का दलिया, बल्हर यानी देसी सेमी की दाल और जंगल में पाई जाने वाली भाजी के साथ चावल की जगह कुटकी और समा का इस्तेमाल करते हैं।
पीते हैं पहाड़ी झरने का पानी
यहां के लोग बारहमासी पहाड़ी झरनों के पानी का उपयोग करते हैं। रातेड़ में पीएचई ने झरनों से पाइप गांव तक पाइपलाइन बिछाकर गांव के नजदीक टंकी रखवा दी है। कारेआम में झरने के पानी को एक बड़े टांके में स्टोर किया जाता है जिसे ग्रामीण पानी भरते हंै। इस पानी का अलग ही स्वाद है।
Created On :   7 Jun 2021 7:21 PM IST