पत्रकारिता आजादी की कसौटी पर खरा उतरने का माध्यम : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा

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पत्रकारिता आजादी की कसौटी पर खरा उतरने का माध्यम : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा
पत्रकारिता आजादी की कसौटी पर खरा उतरने का माध्यम : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। पत्रकारिता देश के आम नागरिकों की आशा की किरण है। उनकी अपेक्षाओं की पूर्तता करने की जिम्मेदारी पत्रकारों के कंधों पर है। नागरिकों की आजादी का अर्थ भौतिक विकास या तिरंगा नहीं है। समाज कितना निर्भय, स्वालंबी, स्वाभिमानी है, यह आजादी का पैमाना है। पत्रकारिता सही मायने में आजादी की कसौटी पर खरा उतने का माध्यम है। अनिल कुमार स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में कृष्णा आयुर्विज्ञान अभिमत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा ने यह विचार व्यक्त किए। बाबूराव धनवटे सभागृह में विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान व नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार शैलेश पांडे और विजय सातोकर कर स्व. अनिलकुमार पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार एस. एन. विनोद ने की। मंच पर विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान के कार्याध्यक्ष गिरीश गांधी, तिलक पत्रकार भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रदीप मैत्र, सत्कारमूर्ति शैलेश पांडे, विजय सातोकर, प्रतिष्ठान के सचिव दिलीप जाधव, विश्वस्त प्रफुल्ल गाड़गे, वरिष्ठ पत्रकार बाल कुलकर्णी आदि उपस्थित थे। सत्कार मूर्तियों का 21 हजार नकद, शाल, श्रीफल व स्मृति चिह्न देकर सम्मान किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष एस. एन. विनोद ने कहा कि पत्रकारिता के माध्यम से समाज और राष्ट्र निर्माण करने का प्रयास करने वालों यह सम्मान है। समाचार पत्रों की निडरता, निष्पक्षता और निस्पृहता की अपेक्षा आज की पत्रकारिता से पूरी नहीं होने का दु:ख भी व्यक्त किया। प्रस्तावना गिरीश गांधी ने रखी। संचालन बाल कुलकर्णी ने किया। दिलीप जाधव ने आभार माना।

सत्ताधारी से करीबी की स्पर्धा पत्रकारिता के लिए खतरा : पांडे
पत्रकारों को विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए, यह हमने सीखा है। आज सत्ताधारी के करीब पहुंचने की स्पर्धा शुरू है। पत्रकारिता के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है। सम्मान के जवाब में शैलेश पांडे ने यह प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि आज भी बेबाक पक्ष रखने वाले पत्रकार है, इसलिए आशा की किरण मौजूद है। विश्वासार्हता पर प्रश्न चिह्न लगाने वालों से पत्रकारों को सतर्क रहना चाहिए। यह कहते हुए पत्रकारिता की यात्रा में उनके पीछे खड़ा रहने वालों का आभार माना।

"टच' फोन के कारण लोगों के "टच' में नहीं : सातोकर 
पारंपरिक प्रसार माध्यम सोशल मीडिया पर निर्भर है। केवल ट्वीट, फेसबुक की पोस्ट पढ़ना पत्रकारिता नहीं है। "टच' फोन के कारण पत्रकार लोगों के "टच' में नहीं रहने का दु:ख विजय सातोकर ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिए बिना जो सामान्य पत्रकारिता चल रही है, उसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। मोबाइल, वॉट्सएप ने सभी को पत्रकार बनाया है। पत्रकारिता के सामने यह बड़ी चुनौती है। विरोध में खबर प्रकाशित होने पर उसे फेक न्यूज कहा जाता है। फेक न्यूज क्या है, यह पत्रकारों को सीखना जरूरी है।

Created On :   15 Sep 2018 11:23 AM GMT

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