न्यायमूर्ति वीजी बिष्ट सेवानिवृत्त, शौचालय को लेकर छात्राओं ने दाखिल की याचिका, बरसात में घर ठहने के खौफ में जीवन जीना सही नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वीजी बिष्ट सोमवार को सेवानिवृत्त हो गए। बेहद अनुशासन प्रिय न्यायमूर्ति बिष्ट अपनी सेवा के आखरी दिन मुख्य न्यायाधीश दत्ता के साथ बैठे और कई मामलों की सुनवाई की। 19 जुलाई 1960 को जालना में जन्में न्यायमूर्ति बिष्ट 1982 में नागपुर विश्वविद्यालय से विज्ञान संकाय में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद नागपुर के जिला व सत्र न्यायालय में वकालत (दीवानी व फौजदारी) शुरु की। बाद में सिविल जज जूनियर डिवीजन व न्यायिक दंडाधिकारी प्रथमश्रेणी के रुप में महाराष्ट्र न्यायिक सेवा से जुड़े। इस बीच वे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए 5 दिसंबर 2019 को बांबे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बने। इस तरह हाईकोर्ट में करीब तीन साल की सेवा के बाद न्यायमूर्ति बिष्ट व सोमवार को गार्ड ऑफ ऑनर के साथ विदाई दी गई। न्यायमूर्ति बिष्ट इस वर्ष हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त होनेवाले सातवें न्यायमूर्ति हैं। इसी के साथ ही हाईकोर्ट में मौजूदा न्यायाधीशों की संख्या 53 पहुंच गई है। जबकि हाईकोर्ट के लिए न्यायाधीश के 94 पद मंजूर हैं। हालांकि शनिवार को केंद्र सरकार ने नौ वकीलों के नामों को हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए मंजूरी दी है। नौ न्यायाधीशों की नियुक्ति के बाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या 62 हो जाएगी।
‘गंदे हैं सरकारी अनुदानित स्कूलों में लड़कियों के शौचालय’ - छात्राओं ने हाईकोर्ट में दाखिल की है जनहित याचिका
ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी अनुदानित स्कूलों में लड़कियों के शौचालय गंदे व अस्वच्छ हैं। बांबे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करनेवाली कानून की दो छात्राओं ने हलफनामा दायर कर सरकारी स्कूलों के शौचालय की इस स्थिति का खुलासा किया है। हलफनामे में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी स्कूलों के शौचालय की गंदगी को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। जिसके चलते माहवारी के दौरान स्कूल जानेवाली किशोरियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। दरअसल कानून की छात्रा निकिता गोरे व वैष्णवी घोलवे ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की है कि सैनेटरी नैपकिन को आवश्यक वस्तु घोषित कर दिया जाए। और इसे सभी जरुरतमंद लड़कियों व महिलाओं को उपलब्ध कराया जाए। कोरोनाकाल में महिलाओं व किशोरियों को यह नैपकिन आसानी से नहीं मिल रही थी। इसलिए इसे आवश्यक वस्तु घोषित करने कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
औरंगाबाद, बीड, नाशिक, लातूर के स्कूलों का किया दौरा
इस बीच दोनों याचिकाकर्ताओं ने राज्य के औरंगाबाद, अहमदनगर, हिंगोली, बीड, नाशिक, लातूर व सिंधुदुर्ग इलाके में स्थित सरकारी स्कूलों का दौरा कर इन स्कूलों के शौचालय की स्थिति से जुड़ी तस्वीरों के साथ कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। हलफनामे के मुताबिक सरकारी स्कूलों के शौचालय की स्थिति काफी दयनीय है। हलफनामे के अनुसार शौचालय को स्वच्छ रखने के लिए जरुरी है कि वहां पर 24 घंटे पानी की आपूर्ति हो। इसके साथ ही वहां पर लगे वेंडिग मशीन में सेनेटरी नैपकिन भरे हो और उन्हें नष्ट करने की पर्याप्त व्यवस्था हो। क्योंकि ऐसे नैपकिन कचरे का डिब्बा न होने के चलते यहां वहां फेके जाते हैं। जिससे गंदगी फैलती है। अधिवक्ता विनोद सांगविकर के माध्यम से दायर इस याचिका पर 25 जुलाई 2022 को हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है।
बरसात में घर ठहने के खौफ में जीवन जीना सही नहीं हाईकोर्ट
बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि हम चाहते है कि हर नागरिक एक गरिमापूर्ण जीवन जिए न कि इस खौफ में जीवन बिताए कि तेज बारिश में उसका घर तास के पत्तों की तरह ढह जाएगा। हाईकोर्ट ने यह बात ठाणे की नौ अवैध जर्जर इमारतों को खाली करने को लेकर दिए गए आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए उपरोक्त बात कही। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने कहा कि हम नहीं चाहते है कि नागरिक इस खतरे में रहे कि उनकी इमारत बरसात में गिर जाएगी। हमारी इच्छा है कि नागरिक गरिमापूर्ण जीवन बिताए। खंडपीठ के सामने एक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। जिसमे ठाणे जिले के मुंब्रा इलाके में स्थित नौ अनधिकृत जर्जर इमारतों को गिराने व वहां पर रह रहे लोगों को घर खाली करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
बिजली-पानी कनेक्शन काटने के बाद खाली नहीं करते घर
याचिका के मुताबिक ठाणे महानगरपालिका ने इमारतों को गिराने को लेकर अनेकों बार नोटिस जारी की है। इसके साथ ही वहां का पानी व बिजली कनेक्शन भी काट दिया गया। फिर भी लोग इमारतों में रह रहे हैं और अवैध तरीके से पानी व बिजली की व्यवस्था भी कर रखी है। सोमवार को जब यह याचिका खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी तो ठाणे मनपा की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राम आप्टे ने कहा कि महानगरपालिका ने साल 2019 में भी मुंब्रा की नौ इमारतों को खाली करने नोटिस जारी किया था। यह नोटिस साल 2021 में भी दोबारा जारी की गई थी। जबकि इमारतों में रह रहे लोगों की ओर से पैरवी कर रहे वकील सुहास ओक ने कहा कि इमारतों में रह रहे लोगों को घर खाली करने के लिए थोड़ा वक्त दिया जाए। वहीं इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगनेवाले अधिवक्ता मैथ्यू निदुंबरा ने कहा कि वे मुंब्रा इलाके में रहनेवाले लोगों की ओर से आवेदन दायर करना चाहते हैं इसलिए इमारत को खाली करने को लेकर जारी महानगरपालिका की नोटिस पर कुछ समय के रोक लगाई जाए। इस पर खंडपीठ ने कहा कि हमने पिछले सप्ताह इमारत में रहनेवाले लोगों को स्वेच्छा से घर खाली करने को कहा था। क्यों की हमारे लिए हर नागरिक का जीवन बहुमूल्य है। इसके साथ ही खंडपीठ ने ठाणे मनपा को हलफनामा दायर कर बताने को कहा है कि नौ इमारतों में कुल कितने लोग रहते हैं।
हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा, अब तक इस दिशा में क्या किया
इमारतों को आग से बचाने के लिए अग्नि सुरक्षा से जुड़े विशेष कानून को लागू किए जाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि इस मामले में क्या कदम उठाए गए हैं। सोमवार को राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता हितने वेणेगांवकर ने कहा कि इस मामले में विशेषज्ञों की कमेटी से जुड़ा प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है। इस प्रस्ताव की मंजूरी के बाद आगे के कदम उठाए जाएगे। सारी प्रक्रिया के पूरे होने में करीब चार माह का समय लग सकता है। इस पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने कहा कि हमे 25 जुलाई तक हलफनामा में सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की जानकारी दी जाए। पेशे से वकील आभा सिंह ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में मांग की गई है कि शिक्षा, मॉल व व्यावसायिक तथा अन्य इमारतों को आग से बचाने के लिए तैयार किए गए नियमों को कड़ाई से लागू करने के लिए कहा जाए। याचिका में दावा किया गया है कि इमारतों को मानव निर्मित आपदा से बचाने के लिए नियमों का लागू किया जाना जरुरी है। याचिका के अनुसार सरकार ने नियमों का मसौदा तो 2009 तैयार कर लिया गया है लेकिन इसे अंतिम रुप नहीं दिया जा रहा है।
Created On :   18 July 2022 9:54 PM IST