बांबे हाईकोर्ट ने पूछा- किस कानून के तहत पोल्ट्री फार्म पर नियंत्रण करती हैं सरकार?

Know how the poultryfarms chicken-feeds cause of health problems?
बांबे हाईकोर्ट ने पूछा- किस कानून के तहत पोल्ट्री फार्म पर नियंत्रण करती हैं सरकार?
बांबे हाईकोर्ट ने पूछा- किस कानून के तहत पोल्ट्री फार्म पर नियंत्रण करती हैं सरकार?

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि वह मुर्गी पालन केंद्र (पोल्ट्री फार्म) व दूध डेयरियों पर किस कानून के तहत नियंत्रण करती हैं। इसके साथ ही अदालत ने कहा है कि सरकार मुर्गियों के अाहार बेचनेवाली  दुकानों को निर्देश जारी करे कि बगैर डॉक्टर की पर्ची के किसी को एंटीबायोटिक न प्रदान करें। अदालत ने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। लिहाजा सरकार अगली सुनवाई के दौरान हमें बताए कि राज्य भर में कितने मुर्गी पालन केंद्र है और सरकार इन पर किस कानून के तहत निंयत्रण करती है। 

सिटीजन सर्कल फॉर सोसियल वेलफेयर एंड एज्युकेशन ने इस विषय को लेकर याचिका दायर की है। याचिका में फलों व सब्जियों को पकाने के लिए खतरनाक रसायन के इस्तेमाल के मुद्दे को उठाया गया है और साथ ही मांग की गई है कि खेतों में जरुरत ज्यादा किटनाशक के इस्तेमाल को रोका जाए। सोमवार को न्यायमूर्ति नरेश पाटील व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। 

मुर्गियों को जल्द बड़ा करने दे रहे एंटीबायोटिक 

इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील सैय्यद शहजाद अब्बास नकवी ने खंडपीठ के सामने मुर्गियों को दिए जानेवाले एक एंटीबायोटिक का पैकेट पेश किया। उन्होंने दावा किया कि यह मुर्गियों को जल्दी बड़ा करने व उनका वजन बढाने के लिए दिया जाता है। इस तरह के चिकन खाने वालों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह एंटीबायोटिक पशुओं का आहार बेचनेवाली दुकानों में बिकता है। जिसे डाक्टर की पर्ची के बिना नहीं बेचा जा सकता है? फिर भी उल्हासनगर में यह धडल्ले के साथ बेचा जाता है। इस पर खंडपीठ कहा कि सरकार बताए कि वह मुर्गी पालन केंद्रों पर किस तरह से नियंत्रण करती है। मुर्गियों को क्या खाने को दिया जाता। क्या सरकारी कर्मचारी इस पर नजर रखते हैं? क्योंकि यह बेहद  गंभीर मामला है। इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। सरकार देखे की विदेशों में इसे कैसे देखा जाता है।

इसके लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाई जाए। सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने कहा कि हम यह नहीं देख सकते है कि मुर्गी पालन केंद्र में मुर्गियों को क्या दिया जाता है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि सरकार इस मामले को गंभीरता से ले। जहां तक फलों की बात है तो इसके लिए हर परिमंडल में एक लैब बनाए जहां लोग फलों की जांच करा सके। दूध की मिलावट को रोकने के लिए भी सार्थक पहल की जाए। इसके साथ ही वह किसानों को भी किटनाशक के इस्तेमाल को लेकर जागरुक करे। खंडपीठ ने फिलहाल इस मामले की सुनवाई एक सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी।  

 

Created On :   25 Jun 2018 2:34 PM GMT

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