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नहीं रहे मधुकरराव किंमतकर, थम गई विदर्भ के न्याय की आवाज
डिजिटल डेस्क, नागपुर/रामटेक। विदर्भ के साथ अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले मधुकरराव किंमतकर नहीं रहे। बुधवार 3 जनवरी को सुबह 9.30 बजे गेटवेल अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। गुरुवार को अंबाला मोक्षधाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। एडवोकेट किंमतकर का जन्म 10 अगस्त 1932 को रामटेक में हुआ। विदर्भ में सिंचाई अनुशेष का उन्हें गहरा अध्ययन था। सामाजिक, शैक्षणिक क्षेत्र में भी उनका अतुलनीय योगदान रहा। बचपन से ही वे इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित वानरसेना के सदस्य रहे। 1944-45 में सोमलवार विद्यालय नागपुर में प्रवेश लिया। लेकिन रहने की सुविधा नहीं हो पाने से रामटेक वापस चले गए। उसी साल कांग्रेस सेवादल से जुड़े और खादी के कपड़ों का इस्तेमाल शुरू किया।
नौकरी में मन नहीं रमा
1952 में बीए की उपाधि प्राप्त की। डाक विभाग में लिपिक पद पर नियुक्त हुए, लेकिन नौकरी में उनका मन नहीं रमा। 8-10 दिन में ही नौकरी छोड़ रामटेक लौट गए। वहां राष्ट्रीय आदर्श विद्यालय की स्थापना की। खुद बतौर शिक्षक 3 साल काम किया।1952 में नरेंद्र तिड़के के आग्रह पर श्रमिक संगठन से जुड़ गए। मॉडल मिल कामगार संगठन को बढ़ाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। वर्ष 1958 में एलएलबी होने के बाद चंद्रशेखर धर्माधिकारी के मार्गदर्शन में वकालत करने लगे, लेकिन इस दौरान केवल कामगार और कामगार संगठनों के लिए काम किया।
राजनीतिक पारी
वर्ष 1980 में कांग्रेस के टिकट पर रामटेक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत गए। उन्होंने अपनी विदर्भ में सिंचाई की सुविधा के लिए खर्च किया। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। अलग गुट बनाकर सरकार पर दबाव बनाया। विधायक सतीश चतुर्वेदी, भाऊसाहब मुलक, बनवारीलाल पुरोहित, गिरिजाशंकर नागपुरे, हरीश मानधना, नानाभाऊ एंबडवार, राम मेघे आदि को विदर्भ के विकास के मुद्दे पर एकजुट किया।
मंत्री बने
वर्ष 1982 में बाबासाहब भोसले मुख्यमंत्री बने। विदर्भ के पांच मंत्री बनाए गए, एड. किंमतकर उनमें से एक थे। इसके बाद वसंतदादा पाटील के मंत्रिमंडल में किंमतकर विदर्भ के एकमात्र मंत्री रहे। वर्ष 1985 में किंमतकर चुनाव हार गए, लेकिन उन्हें महाराष्ट्र राज्य लघु उद्योेग विकास महामंडल का अध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 1992 में म्हाडा के अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य बनाए गए। रामटेक के विकास के लिए खास योगदान दिया। उम्र के 85 वर्ष पूरे कर उन्होंने अंतिम सांस ली।
अन्याय के खिलाफ ‘मामा’ ने जगाया स्वाभिमान
अपनों के बीच वे मामा के नाम से चर्चित थे। उनकी अभ्यासु वृत्ति और विदर्भ के बैकलॉग पर मजबूत पकड़ के चलते उन्हें एक नये नाम से भी जाना जाने लगा। बैकलॉग विधायक के रूप में वे विधानमंडल में पहचाने जाने लगे। 1978 से उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। 1980 में वे कांग्रेस की टिकट पर रामटेक विधानसभा क्षेत्र से भारी मतों से विजयी हुए और पहली बार विधानसभा पहुंचे। अपने अध्ययनशील भाषणों से और विलक्षण प्रतिभा के कारण उन्होंने संपूर्ण महाराष्ट्र का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था।
Created On :   4 Jan 2018 1:11 PM GMT