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मराठा आरक्षण मामला और नवलखा की जमानत पर फैसला सुरक्षित
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मराठाओं को नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले एसईबीसी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने के मामले में पिछले 10 दिनों से जारी मैराथान सुनवाई के दौरान सभी पक्षकारों की ओर से रखी गई दलीलों के एक बैच में फैसले को सुरक्षित रख लिया है। पांच जजों की पीठ में जस्टिस अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एस अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और रवीन्द्र भट के समक्ष इस मामले पर बीते 15 मार्च से सुनवाई शुरु हुई। इस दौरान हुई सुनवाई के दौरान दलील सुनने के बाद पीठ ने महाराष्ट्र एसईबीसी अधिनियम की संवैधानिकता को लेकर तथा क्या 50 फीसदी आरक्षण की सीमा बढाने पर फिर से विचार करने की आवश्यकता के सवाल पर फैसले को सुरक्षित रखा है। आज की सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने अपनी दलील में कहा कि आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा पर इंदिरा साहनी मामले में 9 में से 8 न्यायाधीशों के विचार स्पष्ट थे और यहां तक कि वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी की दलीलों को स्वीकार करने का भी उस पर कोई असर नहीं पडेगा, क्योंकि 50 फीसदी की सीमा एक बाध्यकारी नियम है। वरिष्ठ अधिवक्ता बीएच मरलापल्ले ने तर्क दिया कि इंदिरा साहनी मामले में असाधारण परिस्थितियों के सिद्धांत को एक शासक, प्रबावी समुदाय पर लागू नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें है, जिनमें से 9 आरक्षित है। शेष 39 में से 2014 के लोकसभा चुनाव में 20 और 2019 के चुनाव में 21 20 उम्मीदवार मराठा समुदाय से थे। महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमंडल में 42 में से 21 मराठा है। इन्हें किसी भी राज्य सरकार द्वारा ओबीसी के रुप में मान्यता नहीं दी गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता बीएच मरलापल्ले ने अंतिम दलील में कहा कि मराठा समुदाय को या तो ओबीसी माना जाए या कुनबी के समकक्ष। हालांकि इस विचार को तीन राज्य और दो राष्ट्रीय आयोग द्वारा पहले ही अस्वीकार कर दिया है
सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा की मानत पर फैसला सुरक्षित रखा
वहीं भीमा कोरेगांव मामले में कैद एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। नवलखा ने इस आधार पर जमानत मांगी है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने (एनआईए) ने सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत 90 दिनों की तय अवधि के दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं की है। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान नवलखा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील रखते हुए कोर्ट को बताया कि मामले में 22 अगस्त 2018 को नवलखा का नाम एमआईआर में जोड़ा गया। 28 अगस्त को जब दिल्ली से हिरासत में लिया गया था और साकेत कोर्ट में पेश करके ट्रांजिट रिमांड का आदेश दिया गया था। यदि आप तीनों को ध्यान में रखते हैं तो यह 93 दिन होते है। चार्जशीट 90 दिन के बाद दायर की गई है। इस तरह नवलखा को डिफॉल्ट जमानत पर रिहा होना चाहिए। सिब्बल ने कहा कि नवलखा को 34 दिन तक हाउस अरेस्ट में रखा गया था और 110 दिन के बाद चार्जशीट दाखिल की गई। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजू ने अपनी दलील में कहा कि नवलखा को कई बार विभिन्न अदालतों से अंतरिम राहत दी गई थी, इसलिए पुलिस द्वारा पूछताछ नहीं की जा सकी। उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय द्वारा उन्हें हिरासत में रखने संबंधी पारित किए आदेश सीआरपीसी की धारा 167 के तहत नहीं आते। इस प्रकार इन अवधियों को 90 दिन की अवधि के बाग के रुप में नहीं गिना जा सकता है। इन दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने जमानत पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि पक्षकार इस मामले में कोर्ट में लिखित प्रस्तुतियां देने के लिए स्वंतत्र है।
Created On :   26 March 2021 9:49 PM IST