घूसघोरी के आरोप में गिरफ्तार बाजार समिति अध्यक्ष को हाईकोर्ट से मिली राहत

Market committee chairman arrested on charges of bribery got relief from High Court
घूसघोरी के आरोप में गिरफ्तार बाजार समिति अध्यक्ष को हाईकोर्ट से मिली राहत
घूसघोरी के आरोप में गिरफ्तार बाजार समिति अध्यक्ष को हाईकोर्ट से मिली राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने घूसखोरी के आरोप में गिरफ्तारी के बाद 48 घंटे तक पुलिस हिरासत में रहने के कारण अपनी सदस्यता गंवाने वाले नाशिक कृषि उत्पाद बजार समिति के चेयरमैन शिवाजी चुंबले को राहत प्रदान की है। चुंबेले को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने बाजार समिति के मजदूरों का ठेका देने के नाम पर तीन लाख रुपए घूस लेते हुए पकड़ा था। इस मामले में गिरफ्तारी के बाद चुंबले 48 घंटे पुलिस हिरासत में थे।  लिहाजा जिला उपनिबंधक (को-आपरेटिव सोसायटी) ने 16 सितंबर 2019 को  चुंबले को बजार समिति को बजार समिति के सदस्य पद से हटा दिया था। जिला उपनिबंधक के इस आदेश के खिलाफ चुंबले ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति उज्जल भुयान के सामने चुंबले की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान न्यायमूर्ति को बताया गया कि चुंबले के खिलाफ उपनिबंधक ने महाराष्ट्र कृषि उत्पाद बजार अधिनियम 1963 की धारा 45 (1) के तहत अधिकारों का दुरुपयोग करने के लिए कार्रवाई की है। इसके साथ ही साफ किया गया कि चुंबले किसी निजी विवाद के चलते गिरफ्तार नहीं हुए हैं उन्हें एसीबी ने घूसखोरी के मामले में पकड़ा है। इस लिहाज से उपनिबंधक के 16 सितंबर 2019 को दिए गए आदेश में हस्तक्षेप करने की जरुरत नजर नहीं आ रही है। वहीं चुंबले के वकील ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल पर अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप है उन्हें इस मामले में अभी दोषी नहीं पाया गया है। ऐसे में यह कैसे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उन्होंने अधिकारों का दुरुपयोग किया है और उन्हें बाजार समिति अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि याचिका में मुख्य रुप से यह प्रश्न उपस्थित हुआ है कि सिर्फ एफआईआर और गिरफ्तारी के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है? इस विषय पर विस्तार से सुनवाई की जरुरत है। तब तक के लिए हम उप निबंधक की ओर से 16 सितंबर 2019 को जारी किए गए आदेश को स्थगित (सस्पेंड) करते हैं। इस तरह से न्यायमूर्ति ने याचिकाककर्ता को राहत प्रदान की।  न्यायमूर्ति ने साफ किया कि याचिकाकर्ता समिति के वित्तीय मामले से जुड़े निर्णय बहुमत के आधार पर ले। हाईकोर्ट ने फिलहाल मामले की सुनवाई 11 दिसंबर 2019 तक के लिए स्थगित कर दी है। 

दो बच्चों की हत्या के बाद मां के खुदकुशी मामले में हाईकोर्ट पहुंचा भाई

पिछले दिनों ठाणे इलाके में अपने दो बच्चों की हत्या करने के बाद आत्महत्या करनेवाली महिला के भाई किसन अनवडिया ने बांबे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में अनवडिया ने दावा किया है कि पुलिस इस मामले की जांच ठीक तरह से नहीं कर रही है और आरोपियों की मदद कर रही है। इसलिए इस मामले की जांच पुलिस की अपराध शाखा, सीआईडी व स्वतंत्र जांच एजेंसी सीबीआई को सौप दी जाए। फिलहाल ठाणे की कसरवडवली पुलिस इस मामले की जांच कर रही है। गौरतलब है अनवडिया की बहन सीता ने दो सितंबर को घर में अपने दो बेटों की गला घोटकर हत्या कर दी थी। इसके बाद खुद आत्महत्या कर ली थी। इस घटना के बाद मिले सुसाइड नोट से साफ हुआ था कि सीता ने यह आत्मघाती कदम अपने पति व उसके रिश्तेदारों की प्रताड़ना से तंग आकर कदम उठाया था। पुलिस ने इस मामले में सीता के पति व उसके ससुर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है। अनवाडिया ने याचिका में दावा किया है कि पुलिस इस प्रकरण की जांच निष्पक्षता से नहीं कर रही है। इसलिए मामले की जांच पुलिस की अपराध शाखा, सीआईडी अथवा सीबीआई को सौप दी जाए। याचिका पर दिवाली की छुट्टियों के बाद सुनवाई हो सकती है।  

पति की हत्यारोपी को मिला संदेह का लाभ

बांबे हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा भोग रहे पति को आठ साल बाद संदेह का लाभ देते हुए मामले से बरी कर दिया है। मामले में आरोपी  संजय बर्डे को पुलिस ने मार्च 2010 में गिरफ्तार किया गया था। मालेगांव कोर्ट ने बर्डे को इस मामले में दोषी ठहराते हुए जून 2011 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ बर्डे ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति एसके शिंदे की खंडपीठ के सामने बर्डे की अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान बर्डे की वकील ने खंडपीठ के सामने दावा किया कि जब उनके मुवक्किल की पत्नी की मौत हुई उस समय वे वहां पर मौजूद नहीं थे। पुलिस ने घटना स्थल पर मेरे मुवक्किल की उपस्थिति को लेकर कोई सबूत नहीं पेश किए हैं। इस दौरान बर्डे (आरोपी) की पत्नी द्वारा मौत से पहले दिए गए बयान की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने दावा किया पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी क्यों कि इसको लेकर भी कोई ठोस कारण अदालत को नहीं बताया गया है। जबकि सरकारी वकील ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने नौ गवाहों के बयान और दूसरे सबूतों के आधार पर अारोपी पर लगे आरोप को साबित कर दिया है। इसलिए निचली अदालत के निर्णय में हस्तक्षेप करने की जरुरत नहीं है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मामले से जुड़े कुछ तथ्य स्पष्ट नहीं है। अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को संदेह से परे जाकर साबित करने में नाकाम रहा है। इसलिए हम आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी करते है। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने आरोपी को मामले से बरी कर दिया। 
 

Created On :   30 Oct 2019 7:27 PM IST

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