मायावती देश की सत्ता हासिल कर, बड़े स्तर पर नागपुर में बदलने वाली थीं धर्म

Mayawati was going to change religion in Nagpur 10 years ago
मायावती देश की सत्ता हासिल कर, बड़े स्तर पर नागपुर में बदलने वाली थीं धर्म
मायावती देश की सत्ता हासिल कर, बड़े स्तर पर नागपुर में बदलने वाली थीं धर्म

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बसपा सुप्रीमो मायावती 10 साल पहले नागपुर में ही धर्म बदलने वाली थी,अब फिर से मायावती ने हिन्दू धर्म छोड़ने की घोषणा कर सरकार को घेरने की कोशिश की है, साथ ही एक बार फिर धर्मांतरण का मुद्दा गरमा गया है। 10 वर्ष पूर्व नागपुर में उनके धर्मांतरण की तैयारी को लेकर बड़ी सभा हुई थी। लेकिन अंतिम समय पर उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए। मायावती ने कहा था कि पहले देश की सत्ता मिल जाने दो, बाद में बड़े स्तर पर धर्मांतरण करेंगे। मंगलवार को उन्हाेंने धर्म बदलने की चेतावनी को दोहराया। यूपी के आजमगढ़ में कहा है कि शंकराचार्य, बीजेपी और आरएसएस को अंतिम मौका दे रही हैं कि वे अपने व्यवहार में बदलाव लाएं। दलितों और बहुजनों के साथ व्यवहार में बदलाव नहीं लाया गया, तो बौद्ध धर्म अपना लूंगी। मायावती की इस घोषणा को लेकर आंबेडकरवादियों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। 

इतिहास दोहरा रहा है

नागपुर विश्वविद्यालय में आंबेडकर विचारधारा के प्रमुख रहे डॉ.भाऊ लोखंडे मानते हैं कि मायावती ने धर्म बदलने की चेतावनी के माध्यम से समाज की पीड़ा व्यक्त की है। वे कहते हैं कि इस स्वयं को दोहराता प्रतीत हो रहा है। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने 1935 में ही घोषणा कर दी थी कि हिंदू पैदा होना उनके वश में नहीं था, लेकिन हिंदू रहकर वे नहीं मरेंगे। धर्म बदलने की चेतावनी देने के बाद भी आंबेडकर 1956 तक हिंदू ही थे। चेतावनियों व आंदोलनों के बाद भी आंबेडकर को अनसुना किया जा रहा था। तब उन्होंने धर्म बदला था। 

बहुजन पार्टी का होगा नुकसान

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश प्रभारी रहे सुरेश माने का मानना है कि मायावती की चेतावनी निराशाजनक है। बीजेपी या आरएसएस के साथ विचारों की लड़ाई लड़ने के बजाय मायावती हताशा प्रदर्शित कर रही हैं। बसपा संस्थापक कांशीराम के निधन के बाद नागपुर में ही मायावती ने बौद्ध धर्म अपनाने की तैयारी की थी, लेकिन सत्ता के लिए निर्णय रोक दिया। बाद में उत्तरप्रदेश में बहुमत के साथ बसपा सत्ता में आईं। फिर भी बौद्ध धर्म अपनाने के विषय पर निर्णय नहीं लिया जा सका। मायावती के निराशाजनक बयान से बहुजन समाज की राजनीतिक ताकत का नुकसान हो रहा है। 


तथ्य नजर नहीं आते

लांग मार्च के प्रणेता व आंबेडकरवादी रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष प्रा.जोगेंद्र कवाड़े कहते हैं कि बसपा अध्यक्ष की चेतावनी में कोई तथ्य नजर नहीं आ रहा है। सभी हिंदू हिंदुत्ववादी नहीं है। हिंदुत्ववादियों से परहेज किया जा सकता है। हिंदुओं में बहुजन समाज का बड़ा वर्ग शामिल है। विषय केवल बौद्ध धर्म अपनाने का नहीं है। मायावती की चेतावनी राजनीति प्रेरित लगती है। बौद्ध बनने के लिए किसी को किसी ने नहीं रोका है। 


तुरंत बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए

बहुजन रिपब्लिकन एकता मंच की संयोजक सुलेखा कुंभारे ने कहा है कि मायावती को तुरंत बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए। बुद्ध को स्वीकारे बिना बाबासाहब आंबेडकर के अभियान को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। बौद्ध धर्म के कल्याणकारी विचार हर क्षेत्र में संघर्ष की ऊर्जा देते हैं। तेलंगाना में बसपा के प्रभारी सुरेश साखरे ने कहा है कि मायावती ने नागपुर में बौद्ध धर्म स्वीकारने की घोषणा की थी। लेकिन देश की सत्ता पाने के लिए सामाजिक स्थितियों को देखते हुए वह निर्णय नहीं लिया जा सका। अब देश में हिंदुत्व के नाम पर जो वातावरण बनाया जा रहा है उसे देखते हुए मायावती की चेतावनी उचित है। धम्मसेना के पदाधिकारी दिनेश अंडरसहारे के अनुसार धर्म व राजनीति को अलग अलग ही रखा जाना चाहिए। शर्त के आधार पर धम्म स्वीकारा नहीं जाता है। 

 नागपुर में हुई थी ऐसी घटना 

2000 के दौरान बसपा संस्थापक कांशीराम ने घोषणा की थी कि वे 2 करोड़ बहुजनों के साथ हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाएंगे। नागपुर की दीक्षाभूमि में 14 अक्टूबर 1956 को बाबासाहब आंबेडकर ने 5 लाख सर्मथकों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। 2006 में बाबासाहब के धर्मांतरण को 50 वर्ष पूरे होने पर उत्सव मनाने की तैयारी थी। कांशीराम ने कहा था कि 2006 में वेविधिवत बौद्ध बनेंगे। संयोग से 2003 में कांशीराम का स्वास्थ्य खराब हो गया। मायावती बसपा की प्रमुख बन गईं। 9 अक्टूबर 2006 को कांशीराम का अंतिम संस्कार दिल्ली में किया गया। मायावती ने कांशीराम का अंतिम संस्कार बौद्ध विधि से करवाया था। कहा गया कि कांशीराम भले ही हिंदू धर्म नहीं त्याग पाये पर उनके समर्थक अवश्य बौद्ध बनेंगे। 13 अक्टूबर 2006 को बसपा समर्थकों के लिए भावुक समय था। पहले की घोषणा कर दी गई थी कि मायावती नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाने की घोषणा करने वाली हैं। इंदौरा मैदान में सभा का आयोजन भी किया जा रहा था, लेकिन कांशीराम की मौत के कारण सभा रद्द होने की संभावना थी। तब मायावती ने कार्यकर्ताओं को सांत्वना दी। मायावती इंदौरा की सभा में शामिल हुई। सभा के आयोजकों मेंविलास गरुड, सुरेश साखरे, बुद्धम राऊत जैसे पदाधिकारी व कार्यकर्ता थे। लेकिन उस सभा में मायावती ने सत्ता और सामाजिक इंजीनियरिंग का जिक्र करते हुए धर्म बदलने का निर्णय रोक दिया था। नारा लगाया गया -पहले सत्ता, फिर धर्म।

Created On :   25 Oct 2017 4:52 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story