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नीरी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया ऐसा एप जो गायब हुए नदी और तालाबों को खोज निकालेगा
डिजिटल डेस्क, नागपुर। अतिक्रमण के कारण गायब होते नदी, तालाब और झील बढ़ते जल संकट के प्रमुख कारणों में शामिल हैं। बढ़ती आबादी और शहरीकरण के कारण तालाब और झीलों का आकार लगातार सिकुड़ता जा रहा है। पिछले कुछ ही वर्षों में शहरों में असंख्य जलस्रोतों का नामोनिशान मिट चुका है। कांक्रीट के जंगल, पानी और पेड़-पौधों को निगलते जा रहे हैं। वर्ष-2019 में गर्मी के मौसम में नागपुर समेत देश के कई शहर गंभीर जलसंकट में महीनों घिरे रहे। विशेषज्ञों के अनुसार चेन्नई व बंगलुरु जैसे शहर तेजी से डे-जीरो की तरफ बढ़ रहे हैं।
बढ़ते जलसंकट के प्रभावी हल के लिए गंभीर प्रयासों के तहत जल स्रोतों की पहचान, पुनर्जीवन और संरक्षण आवश्यक है। इस प्रक्रिया को कारगर ढंग से करने के लिए नागपुर स्थित सीएसएआर-नीरी के वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार व इंजीनियर आशीष शर्मा ने ‘जल अभिलेख एप’ तैयार किया है। फिलहाल यह एप पुड्डुचेरी में काम कर रहा है। डॉ. खैरनार ने बताया कि, पूरे देश में जल की स्थिति का विस्तार से अध्ययन करने के बाद उन्होंने इस दिशा में काम करने के लिए सबसे पहले वॉटर बॉडीज को जियो टैग किए जाने से शुरुआत करने की योजना बनाई और एप तैयार किया। एप के प्रायोगिक संबंधी प्रस्ताव को सबसे पहले पुड्डुचेरी सरकार से हरी झंडी मिली। उसके बाद सीएसआईआर-नीरी, पुड्डुचेरी सरकार और नगरपालिका के सहयोग से वहां एप लांच किया गया। इस एप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलाेड किया जा सकता है। हालांकि, इसका उपयोग पुड्डुचेरी के 20 किमी के दायरे में ही किया जा सकता है।
हर वॉटर बॉडी को यूनिक नंबर
कोई भी व्यक्ति एप में किसी वॉटर बॉडी की तस्वीर डालता है, तो एप तत्काल उसकी पूरी सूचना के साथ उसे यूनिक नंबर के साथ जियो टैग कर देगा। यह नंबर आधार नंबर की तरह काम करता है। जियो टैग करने से भविष्य में उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाया जाना संभव नहीं होगा। एप पर टैग किसी भी वॉटर बॉडी के किसी हिस्से पर किसी भी तरह का निर्माणकार्य होते ही उसका रंग ब्ल्यू से बदलकर ग्रीन हो जाएगा। इससे प्रशासन को तत्काल अतिक्रमण हटाने में मदद मिलेगी।
अतिक्रमण के शिकार सभी जलस्रोत
सैटेलाइट से ली गई पुड्डुचेरी की तस्वीरों के जरिए डॉ. खैरनार बताते हैं कि, कैसे ब्ल्यू रंग से दिखाए गए सभी वॉटर बाॅडी तेजी से ग्रीन यानी सैटेलमेंट में बदलते जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि, पुड्डुचेरी जैसी जगह में जहां प्रशासन के रिकॉर्ड में केवल 150 वॉटर बॉडी के नाम थे, अब तक 700 से ज्यादा झील व तालाब मिल चुके हैं। ऐसे में नागपुर जैसे शहर में वॉटर बॉडीज की संख्या कितनी ज्यादा हो सकती है।
क्या है डे जीरो
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर के 200 शहर और 10 मेट्रो सिटी ‘डे-जीरो’ की ओर बढ़ रहे हैं। डे-जीरो का मतलब होता है, वह दिन जब टोटियों से पानी आना बंद हो जाएगा। रिपोर्ट में बंगलुरु को भारत का केपटउन बताया गया है। सूची में शामिल अन्य शहरों में बीजिंग, मेक्सिको सिटी, नैरोबी, कराची, काबुल और इस्तांबुल हैं। इन शहरों में पानी की उपलब्धता कभी भी खत्म हो सकती है।
अतिक्रमण की होगी पहचान
हमने पूरे देश में जल की स्थिति का विस्तृत अध्ययन कर वर्तमान स्थिति, आने वाले समय में उत्पन्न होने वाली समस्या पर रिपोर्ट तैयार की है। बढ़ते जलसंकट से बचाव के लिए क्या किया जा सकता है, इसका मॉडल तैयार किया है। इस दिशा में प्रक्रिया शुरू करने के लिए सबसे जरूरी है सभी जल स्रोतों की पहचान कर उन्हें जियो टैग करना। इससे उन पर अतिक्रमण की पहचान आसान हो जाएगी। इस तर्ज पर तैयार ‘जल अभिलेख एप’ फिलहाल पुड्डुचेरी में काम कर रहा है। -डॉ. कृष्णा खैरनार, वरिष्ठ वैज्ञानिक नीरी
हर जलस्रोत की पहचान जरूरी
पानी की समस्या को हल करने के लिए शुरुआत हर जलस्रोत के पहचान से करनी होगी। एक बार नदी, तालाब और झीलों की पहचान उसका आकार-प्रकार सब डिजिटल रूप में दर्ज हो जाए, तो आगे के कार्य में काफी आसानी हो सकती है। जल अभिलेख इस दिशा में काम करने वाला देश का पहला एप है। इसकी मदद से राेज नए तालाबों का पता चल रहा है। -आशीष शर्मा, इंजीनियर नीरी
Created On :   29 Nov 2019 12:46 PM IST