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निलंबित शिक्षिका को सेवा में वापस लेने के आदेश, बीपी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वर्क का मामला

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय ने हनुमान नगर स्थित बी.पी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वर्क की निलंबित शिक्षिका वंदना महात्मे को सेवा में वापस लेने का आदेश दिया है। संस्थान को बदनाम करने के आरोप में 10 फरवरी 2018 को शिक्षिका को निलंबित कर दिया गया था, जिसके खिलाफ शिक्षिका ने विवि के पास अपील की थी। आदेश में विवि कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थ विनायक काणे ने कहा है कि महाराष्ट्र विवि अधिनियम के अनुसार कोई भी कॉलेज मान्यता प्राप्त शिक्षक को बगैर विवि की अनुमति के इस तरह निलंबित नहीं कर सकता। ऐसे में महात्मे का निलंबन नियमों के विरुद्ध है, उन्हंे तत्काल सेवा में वापस लिया जाए। बता दें कि शिक्षिका महात्मे कॉलेज में वर्ष 1984 से कार्यरत हैं और कॉलेज के प्राचार्य के बीच विवाद लंबे समय से जारी था।
नहीं सुना गया पक्ष : महात्मे
इंस्टीट्यूट के अनुसार शिक्षिका ने कॉलेज प्राचार्य पर कई तरह के अारोप लगाए थे, जिसके बाद कॉलेज ने शिक्षिका के खिलाफ विभागीय जांच बैठाई थी। रिपोर्ट में दोषी मानकर उन्हें निलंबित किया गया। इसके खिलाफ शिक्षिका ने विवि और कोर्ट दोनों स्तरों पर अपील की थी। विवि द्वारा शिक्षिका को तत्काल सेवा में लेने के आदेश के बाद भी इसका पालन नहीं करने पर नागपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ने कुलगुरु से शिकायत भी की थी। महात्मे ने भास्कर से बातचीत में बताया कि संस्था ने उन्हें बगैर कोई ठोस कारण बताए या अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना निलंबित कर दिया था, जो कि सरासर गलत है।
कुलगुरु को जानकारी दे दी है
डॉ. लक्ष्मीकांत तुलनकर, प्राचार्य, बी.पी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वर्क के मुताबिक कॉलेज ने सभी पक्षों की सुनवाई पूरी करने के बाद शिक्षिका महात्मे को निलंबित किया था। इसके खिलाफ वह कोर्ट भी गई थीं। विवि ने भले ही उन्हें सेवा में लेने का आदेश दिया हो, संस्थान बगैर कोर्ट का फैसला आए उन्हें सेवा मंे नहीं लेगा। संस्था ने कुलगुरु को भी पत्र भेज कर इसकी जानकारी दे दी है।
कॉलेज की एक शिक्षिका ने लगाए थे गंभीर आरोप
सावनेर के डॉ. हरिभाऊ आदमने कला व वाणिज्य महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. वीरेंद्र जुमडे को सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिली है। सर्वोच्च न्यायालय ने नागपुर खंडपीठ को अपने एक पुराने आदेश पर पुनर्विचार करने को कहा है। दरअसल मामला 7 फरवरी 2011 का है। कॉलेज की ही एक शिक्षिका ने प्राचार्य डॉ. वीरेंद्र जुमड़े पर दुराचार का आरोप लगाया था। मामले मंे नागपुर विवि और सावनेर पुलिस में जुमडे के खिलाफ शिकायत की गई थी।
बदले की भावना से कार्रवाई का आरोप
जुमले को निचली अदालत ने तो बरी किया, लेकिन नागपुर विवि महिला सेल ने उन्हें दोषी मानकर उन पर विवि चुनावी प्रक्रिया और परीक्षा के कामकाज में शामिल होने पर रोक लगाई थी। ऐसे में जुमडे ने विवि महिला सेल के सदस्यों पर बदले की भावना से कार्रवाई करने और गलत दस्तावेजों के आधार पर उनके खिलाफ फैसला देने का आरोप लगाया था। डॉ. जुमडे ने महिला सेल के सदस्य और तत्कालीन कुलगुरु डॉ. विलास सपकाल के खिलाफ सीताबर्डी पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की थी।
महिला सेल के सदस्य और कुलगुरु सरकारी सेवा में थे, जेएमएफसी कोर्ट ने उन्हें एफआईआर दर्ज करने के लिए सरकार से अनुमति लेने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ जुमडे हाईकोर्ट पहुचे थे, लेकिन हाईकोर्ट ने भी जेएमएफसी कोर्ट का निर्णय कायम रखा। इसके बाद जुमडे ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी। सर्वोच्च न्यायालय ने नागपुर खंडपीठ को फिर एक बार डॉ. जुमडे की याचिका पर विचार करने को कहा है।
Created On :   8 April 2018 3:58 PM IST