65.74 हेक्टेयर क्षेत्र की तिलहन की फसल नष्ट होने की कगार पर
डिजिटल डेस्क, वर्धा. जिले में रबी के मौस में 65.74 हेक्टेयर क्षेत्र में पारंपरिक तिलहन (तेलबीज) करडी, सरसों, तिल ,जवस व सूर्यफूल की बुआई की जाती है। लेकिन कृषि विभाग से प्राप्त आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि गत कुछ वर्ष से तिलहन की फसलें लुप्त होने की कगार पर है। ताज्जुब की बात है कि जारी रबी के मौसम में रबी के तिलहन क्षेत्र मेंं शून्य प्रतिशत बुवाई की गई है। गत कुछ वर्ष में मार्कटिंग के दौर में नियोजनबद्ध तरीके से पारंपरिक फसल नष्ट कर नकद, क्रैशक्रॉप फसल लेने की ओर किसानों का रूझान बढ़ रहा है। अपने क्षेत्र में मूंंगफली, करडी, तिल व सूर्यफूल आदि के बीज से निकलनेवाले तेल का इस्तेमाल खाने में किया जाता था।
लेकिन गत कुछ वर्ष में सोयाबीन का बडे़ पैमाने पर प्रचार -प्रसार किया गया। इस कारण जिले के हजारों किसानों ने अरंडी, तिल, सूर्यफुल की बुआई करना ही बंद कर दिया है। बाजार में आवश्यक रिफाइंड तेल उपलब्ध होने के कारण किसान अब उत्पादन और तालमेल नहीं बिठा पा रहा है। लिहाजा विदर्भ के नागरिकों के भोजन में पारंपारिक तेल की जगह अब सोयाबीन के तेल ने ली है। बाजार में सोयाबीन तेल आसानी से उपलब्ध होने से अब जिले में रबी के मौसम में लिए जानेवाला करडी, मोहरी, जवस व सूर्यफूल का उत्पादन क्षेत्र लुप्त होने की कगार पर है। रबी के मौसम में 1 हेक्टेयर में करडी, 1 हेक्टेयर में तिल, 42.74 हेक्टेयर में जवस, 2 हेक्टेयर में सूर्यफूल व 19 हेक्टर में अन्य फसल ली जाती थी। लेकिन जारी वर्ष के रबी मौसम में एक एकड में भी इसकी बुआई नहीं की गयी हैं। इसके कारण रबी के मौसम का तेलबीज क्षेत्र लुप्त होने की कगार पर है।
कम हो रहा उत्पादन क्षेत्र
डॉ. विदया मानकर, प्रभारी, अधीक्षक कृषि अधिकारी के मुताबिक किसान गत कुछ वर्ष से पारंपरिक फसल लेने से कतरा रहे हैं। बाजार में अधिक मांग व उचित दाम मिलने के कारण सोयाबीन की बुआई पर जोर दिया जा रहा हैै। साथ ही सूर्यफूल व जवस के बीज पंछी खा जाते हैं। करडी को जंगली सुअर नुकसान पहुंचाते हैं। इस कारण तिलहन का उत्पादन क्षेत्र कम हो रहा है।
Created On :   19 Jan 2023 6:49 PM IST