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सिर्फ विवाह से इंकार करना धोखाधड़ी नहीं, 25 साल बाद बरी हुआ आरोपी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सिर्फ विवाह से इनकार कर देने भर से धोखाधड़ी का अपराध नहीं बनता है। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में यह बात स्पष्ट करते हुए दुष्कर्म के मामले में दोषी पाए एक आरोपी को 25 साल बाद बरी कर दिया है। सत्र न्यायालय ने मामले से जुड़े आरोपी चंद्रकांत लिंगवले को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 व 418 के तहत दोषी ठहराते हुए 1997 में तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के आदेश के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति अनूजा प्रभुदेसाई के सामने आरोपी की अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि आरोपी व शिकायतकर्ता एक दूसरे के परिचित थे। पीड़िता आरोपी के लिए काम करती थी। मामले से जुड़े सबूत यह नहीं दर्शाते हैं कि आरोपी ने पीड़िता की सहमति व इच्छा के विरुद्ध उसके साथ संबंध बनाए थे। चूंकि आरोपी ने पीड़िता (शिकायतकर्ता) के साथ विवाह करने से इनकार कर दिया था। इसलिए पीड़िता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।
न्यायमूर्ति ने कहा कि शिकायतकर्ता यह जानती थी कि आरोपी पहले से शादीसुदा है। ऐसे में वह अपने पहले विवाह के अस्तित्व में रहते हुए उसके साथ विवाह नहीं कर सकता है। फिर भी शिकायतकर्ता ने आरोपी के प्रति अपने प्रेम का इजाहर किया था। मामले में ऐसा कोई सबूत नजर नहीं आ रहा है जो यह दर्शाए कि आरोपी ने पीड़िता के साथ धोखे से संबंध बनाए थे। इसलिए सिर्फ विवाह से इनकार कर देने भर से धोखाधड़ी का अपराध नहीं बनता है।
इसके अलावा अभियोजन पक्ष पीड़िता की उम्र को लेकर भी कोई प्रमाणिक ठोस सबूत नहीं पेश कर पाया है। मेडिकल जांच में पीड़िता की उम्र 17 से 19 साल बताई गई है। जबकि अभियोजन पक्ष में पीड़िता की उम्र 16 साल होने का दावा किया था। इस मामले में अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को संदेह से परे जाकर साबित नहीं कर पाया है। इसलिए आरोपी को दोषी ठहराने के निचली अदालत क फैसले को रद्द किया जाता है और आरोपी को मामले से बरी किया जाता है। इस मामले में 28 मई 1996 में एफआईआर दर्ज हुई थी।
Created On :   9 Dec 2021 9:58 PM IST