लकवाग्रस्त कर्मचारी को नौकरी से निकाला, हाईकोर्ट ने कहा-यह निष्ठुरता की हद

Paralyzed employee was fired, High Court said - this is extent of ruthlessness
लकवाग्रस्त कर्मचारी को नौकरी से निकाला, हाईकोर्ट ने कहा-यह निष्ठुरता की हद
लकवाग्रस्त कर्मचारी को नौकरी से निकाला, हाईकोर्ट ने कहा-यह निष्ठुरता की हद

डिजिटल डेस्क, नागपुर। आंशिक रूप से लकवाग्रस्त कर्मचारी यवतमाल निवासी संजय बहड को नौकरी से बेवजह निकालने वाले महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन मंडल (एमएसआरटीसी)को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने जमकर लताड़ लगाई। हाईकोर्ट ने न सिर्फ दिवंगत कर्मचारी के बेटे महेश बहड को अनुकंपा पर नौकरी देने के आदेश दिए। साथ ही कर्मचारी की मृत्यु के दिन तक बकाया वेतन (एरियर) भी 6 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने के आदेश दिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कुछ अधिकारियों की गलती के कारण टैक्स के पैसों से यह भुगतान नहीं होगा। एमएसआरटीसी के डिविजनल कंट्रोलर को यह रकम अपनी जेब से भरनी होगी। न्या.रवींद्र घुगे और न्या.एस.एम.मोडक की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया है। 

एमएसआरटीसी को बताया पत्थर दिल

हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में निकल कर आया कि लेबर कोर्ट के आदेश और मेडिकल बोर्ड के कर्मचारी को फिट करार देने के बावजूद एमएसआरटीसी के अधिकारियों ने उसे नौकरी से निकाल दिया। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी मंे इस फैसले को पत्थर दिल लोगों द्वारा लिया गया फैसला करार दिया। कोर्ट ने माना कि पर्सन्स विद डिजेबिलिटी एक्ट के तहत कर्मचारी नौकरी करने के लिए पूरी तरह पात्र था, लेकिन इसके बावजूद उसे नौकरी से निकाल कर उसकी आजीविका छीन ली गई। जीवन और कानून दोनों का अपमान किया। 

यह था मामला

29 नवंबर 1980 को उन्हें अस्थायी कर्मचारी के रूप में एमएसआरटीसी में नौकरी मिली थी। इसके बाद उनके खराब स्वास्थ्य का कारण देते हुए 5 जून 2006 को उन्हें सेवा से निष्कासित कर दिया गया। उन्होंने एमएसआरटीसी के इस फैसले को लेबर कोर्ट में चुनौती दी। जहां फैसला उनके पक्ष में आया। नौकरी ज्वाइन करने पर  एमएसआरटीसी ने 23 जनवरी 2012 को उनकी फिटनेस जांच करवाई। एमएसआरटीसी ने दावा किया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार कर्मचारी अनफिट है, ऐसे मंे उन्हें फिर एक बार निष्कासित कर दिया गया। उन्हें उस वक्त मेडिकल रिपोर्ट तक नहीं दी गई।  

लंबे समय तक लकवाग्रस्त होने के कारण 1 मई 2016 को उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके बेटे ने अनुकंपा आधार पर नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट की शरण ली। एमएसआरटीसी ने कारण दिया कि मृत्यु के समय कर्मचारी सेवा में नहीं थे, लिहाजा उनके बेटे को अनुकंपा पर नौकरी नहीं दी जा सकती। इस मामले में कोर्ट ने माना कि पर्सन्स विद डिजेबिलिटी एक्ट के तहत कर्मचारी को सेवा में रखा जाना था, लिहाजा उनका बेटा अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र है। कोर्ट में यह भी निकल कर आया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में कर्मचारी को फिट बताने के बावजूद उसे नौकरी से निकाला गया था। 

 
 

Created On :   20 Feb 2020 5:21 PM IST

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