भूत सपना है, भविष्य कल्पना है और बस वर्तमान अपना है -योगसागर

Past is dream, future is fantasy and just present is its own said yoga sagar
भूत सपना है, भविष्य कल्पना है और बस वर्तमान अपना है -योगसागर
भूत सपना है, भविष्य कल्पना है और बस वर्तमान अपना है -योगसागर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। श्री दि. जैन परवार मंदिर  परवारपुरा, इतवारी में विराजमान आचार्य विद्यासागर महाराज के परम शिष्य निर्यापक श्रमण योगसागर मुनिराज ने प्रवचन में कहा कि भूत सपना है, भविष्य कल्पना है और वर्तमान अपना  है। भविष्य सुधारना है  तो  वर्तमान को देखना  चाहिए। साधु  वर्तमान में जीता है। संवेदनाएं वर्तमान में होती हैं। वस्तु का स्वभाव धर्म है। रत्न उत्कृष्टता को कहते हैं और रत्नात्रय साम्यग्दर्शन, साम्यग्ज्ञान और साम्यग्चरित्र है। जिसके पास क्षमता व विशुद्धि होगी वे एक साथ रत्नात्रय को प्राप्त  कर सकते है।

साम्यग्दर्शन चारों गतियों में पाया जाता है। मिथ्यात्व का अभाव  होगा तभी सम्यक  का प्रभाव होगा। उन्होंने कहा, मोदी किसे कहते हैं? जो  स्वंय मंदिर  बनवाते  हैं, वे मोदी कहलाते हैं। स्वयं रथ बनवाकर गजरथ महोत्सव करवाते हैं। वे सिंघई होते हैं। जो दो गजरथ चलवाते है वे सवाई सिंघई होते हैं। जो सिंहों के रथ चलवाते हैं वे देवड़िया होते हैं। इन्हीं आयोजनों को देख मन हर्षित होता है। साम्यग्दर्शग्की प्राप्ति  होती   है। प्रभावना होती है। लौकिक ज्ञान व्यक्ति काे सन्यास नहीं लेने देता, आत्मा विशुद्धि व्यक्ति को सन्यास की ओर ले जाती है। 

भगवान से राग हो गया,  इसलिए वैराग्य हो गया
एक बार  एक व्यक्ति ने आचार्य विद्यासागर महाराज से पूछा- आपको वैराग्य कैसे हुआ? उन्होंने उत्तर  दिया कि भगवान से राग हो गया,  इसलिए वैराग्य हो गया।  वैराग्य अनुभव  की बात  है। विद्वान दूसरों के लिए  होता है। ज्ञान स्वयं को देखता है। जिनके अंदर विषय  वासना होती  है और लोक-लाज होती है, वह दीक्षा नहीं ले सकता। जिसके भीतर किसी भी प्रकार की  वासना नहीं हो तो सर्थक वैराग्य  उन्हें ही होता है। शास्त्रों में जो गुण साधु  के लिए होते हैं, वे आचार्य विद्यासागर में हैं। निस्पृह हैं, इसीलिए वे नमन के योग्य हैं। जिसके  पास इच्छाओं  का अंत हो गया  है  वे चलते-फिरते तीर्थ  हैं। शुद्ध ज्ञानी को ज्ञानी मानना मिथ्या है। सच में ज्ञानी तो वो है, जो जगत से विमुख होता है।

आचार्य कहते  हैं- अप्रभावना नहीं करना ही प्रभावना है। प्रवचन के पूर्व  भगवान का  अभिषेक किया गया। अभिषेक के प्रथम कलश का सौभाग्य सुमत लल्ला जैन  को मिला। द्वितीय कलश  संतोष  देवडिया, तृतीय कलश राजू रजनी,  चतुर्थ कलश संतोष  बैसाखिया  को मिला। शांतिधारा  का सौभाग्य राजू गोपीचंद बड़कूर व पंकज चंद्रकुमार बड़कुर को प्राप्त हुआ। दीप प्रज्वलन  एवं चित्र अनावरण  पवन बड़कुर, अशोक गोधा, चंद्रकुमार चौधरी,कमलकांत  व संतोष कहाते ने किया। मंगलाचरण सुधा  चौधरी ने तथा शास्त्र भेंट सनत पटेल, संतोष बैसाखिया, दिनेश जैन, विशाल जैन, विनय पटेल, शैलेश जैन, संतोष देवडिया ने किया। 

 

Created On :   23 Jan 2020 9:36 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story