जमानत से जुड़े विशेषाधिकार को किसी अधिनियम से नहीं ले सकते वापस - हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। किसी को जमानत देना है कि नहीं यह कोर्ट का विशेषाधिकार है इस अधिकार को किसी अधिनियम के जरिए से वापस नहीं लिया जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने एक 71 वर्षीय विचाराधीन कैदी के जमानत आवेदन को खारिज करते हुए अपने एक आदेश में उपरोक्त बात स्पष्ट की है। दरअसल राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण(एनएएलएसए)ने “रिलीज यूटीआरसी @ 75” ने एक योजना बनाई है। इस योजना के तहत एक श्रेणी में 65 वर्षीय विचारधीन कैदियों को जमानत पर छोड़ने का प्रावधान किया गया है। इस योजना की एक श्रेणी के तहत 71 वर्षीय विचाराधीन कैदी महिपति जाधव ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दायर किया था। क्योंकि सत्र न्यायालय ने जाधव को जमानत देने से इनकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति एसएम मोडक के सामने जाधव के जमानत आवेदन पर सुनवाई हुई। इस दौरान जाधव की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल की उम्र 65 साल से अधिक है। इसलिए वे “रिलीज यूटीआरसी @ 75” योजना के तहत उस श्रेणी में जमानत पर रिहा होने के लिए पात्र है जिसमें 65 वर्षीय कैदियों को छोड़ने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत यदि विचाराधीन कैदी को छोड़ने से पहले मामले के मैरिट (गुण-दोष) पर विचार किया गया तो इससे “रिलीज यूटीआरसी @ 75” का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
वहीं सरकारी वकील ने जाधवकी जमानत का विरोध करते हुए कहा कि जमानत देते समय मामले की मैरिट पर विचार किया जाना जरुरी है। यदि ऐसा नहीं होगा तो बहुत से विचाराधीन कैदियों को जेल से रिहा करना पड़ेगा। इसके अलावा मामले से जुड़े मौजूदा विचाराधीन कैदी पर हत्या के अलावा चार गवाहों की हत्या के प्रयास का आरोप है। इस लिहाज से सत्र न्यायालय ने आरोपी को जमानत न देने को लेकर जो आदेश दिया है वह सही है।
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति मोडक ने कहा कि जेलों में विचाराधीन कैदियों की भारी संख्या को देखते हुए व मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी किए गए कई निर्देशों के मद्देनजरएनएएलएसए ने“रिलीज यूटीआरसी @ 75” योजना तैयार की है। इस योजना का आशय जेल में विचाराधीन कैदियों की संख्या को घटाना है। इस योजना के तहत जिला व सत्र न्यायाधीश कोई जिम्मेंदारी दी गई है। इसके लिए कुछ दायित्व रिव्यू अंडर ट्रायल कमेटी को भी दिया गया है। जो इस विषय को लेकर बनाई गई व्यवस्था के तहत विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए कदम उठाएंगे। इस मामले में दो महत्वपूर्ण पहलू है। एक पहलू यह है कि आरोपी की ओर से जमानत के लिए आवेदन दायर किया जाए। दूसरा पहलू इस पर आदेश जारी किया जाए। लेकिन जमानत देना है या नहीं यह संबंधित कोर्ट का विशेषाधिकार है।
इस विशेषाधिकार को किसी अधिनियम के तहत बनाई गई योजना से वापस नहीं लिया जा सकता है। ऐसे में संबंधित प्राधिकरण जेल में बंद विचारीधीन कैदी के बारे में कोर्ट को जानकारी दे सकते है। इसलिए इस मामले में कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र विधि सेवा प्राधिकरण विचाराधीन कैदी जाधव की जानकारी कोर्ट के सामने लाने में सफल रहा है लेकिन जब जाधव के मामले पर मैरिट विचार किया जाए तो वह 65 साल के ऊपर होने के बावजूद जमानत के लिए पात्र नजर नहीं आता है। लिहाजा जाधव के जमानत आवेदन को खारिज किया जाता है लेकिन निचली अदालत उसके मुकदमे की सुनवाई को शीघ्रता से पूरा करने पर विचार करें।
Created On :   17 Feb 2023 9:18 PM IST