गंगा के पानी पर हो रही रिसर्च, शोधकर्ताओं ने जुटाए नमूने, होंगे खुलासे 

research is running on water of river ganga
गंगा के पानी पर हो रही रिसर्च, शोधकर्ताओं ने जुटाए नमूने, होंगे खुलासे 
गंगा के पानी पर हो रही रिसर्च, शोधकर्ताओं ने जुटाए नमूने, होंगे खुलासे 

डिजिटल डेस्क, नागपुर। गंगाजल में बैक्टीरियोफेज की जानकारी जुटाकर नागपुर का नीरी यानी एनईईआरआई-नेशनल एन्वायरोमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट अब उसके जैविक गुणों की खोज में जुट गया है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से नीरी को दो वर्षों का प्रोजेक्ट मिला है। इन दो वर्षों में संस्थान गंगा नदी का जल किन गुणों के कारण खराब नहीं होता है, यह पता लगाया जाएगा। हालांकि गंगा जल के परीक्षण का पहला प्रोजेक्ट भी नीरी ने किया था। उस समय गंगा के विभिन्न तटों से जल के नमूनों का संकलन कर उसका अध्ययन किया गया था। नीरी की ओर से गंगा के गुणों की खोज पर किया जानेवाला यह दूसरा प्रोजेक्ट है। 

गंगा का पानी नहीं होता खराब

भारतीय संस्कृति और मान्यताओं में गंगा नदी के जल को पावन माना गया है। गंगा नदी के तीरे ‘कल्पवास’ के लाभों को भी रेखांकित किया गया है। अंग्रेज जहाजों में महीनों सफर करने के लिए टेम्स नदी का पानी भर कर लाते थे, लेकिन वह बीच रास्ते में ही खराब हो जाता था, लेकिन जब गंगा नदी के जल को ले जाते तो वह कभी खराब न होता। इसे जानने के लिए अंग्रेजों ने गंगा नदी के जल के गुणों को लेकर अनुसंधान किया, जिसमें कॉलरा जैसी घातक बीमारियों के कीटाणुओं को खत्म करने की क्षमता पाई गई थी। 

हिमालय में 40 किलोमीटर पैदल चलकर जुटाए नमूने

गोमुख में जल के नमूनों का संग्रहण टीम ने 12 अक्टूबर को किया। इसके लिए कम हवा और ऑक्सीजन के दबाव वाले क्षेत्र में टीम ने हिमालय की पहाड़ियों के दुर्गम भाग में करीब 40 किलोमीटर का लंबा और कठिन पैदल मार्ग तय किया। पूरे अभियान का समन्वयन नीरी के निदेशक डॉ. राकेश कुमार कर रहे हैं। दो साल के इस प्रोजेक्ट के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की तरफ से 5 करोड़ रुपए की राशि मंजूर हुई है। इसमें से पहली किस्त के रूप में 10 प्रतिशत राशि नीरी को प्राप्त भी हो चुकी है।दोबारा परीक्षण इसलिए 

टूटे पहाड़ ने बदला गंगा नदी का मार्ग

पहले प्रोजेक्ट के तहत गंगा-जल में पाए जानेवाले बैक्टीरियोफेज, उसकी गाद में पाए जानेवाले रेडियोएक्टिव तत्वों और बीमारियों से लड़ने संबंधी उसके गुणों आदि का अध्ययन किया गया था। तीन चरणों में किए गए इस अध्ययन में बैक्टीरियोफेज बीमारियों से लड़ने में सक्षम पाए गए थे। जुटाए गए नमूनों से गंगा नदी के जल में पाए जानेवाले बायोलॉजिकल, फीजियोलॉजिकल, साइटोकेमिकल, रेडियोएक्टिव केमिकल, मेटल्स, डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन आदि पहलुओं का परीक्षण किया जाएगा

इसलिए अध्ययन

यह अध्ययन गंगा स्वच्छता मिशन को प्रबल बनाने के लिए किया जा रहा है। दरअसल, लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के दुष्परिणामों से गंगा नदी को बचाने के लिए यह अध्ययन महत्वपूर्ण माना जा रहा है। नीरी के वाइरोलॉजी विभाग प्रमुख और प्रधान वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने बताया कि गंगा के नॉन-प्यूरेटफाइंग क्वालिटी अर्थात उसके खराब न होने के गुणों का पता नीरी के वैज्ञानिक तीन दलों में विभक्त होकर लगा रहे हैं। गंगोत्री धाम के पट बंद होने से ठीक पहले इस मिशन के पहले चरण की वाटर सैंपलिंग तीन टीमों ने मिलकर पूरी की। एक दल ने उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगा नदी के उद्गम स्थल गोमुख अर्थात 13 हजार 200 फीट की ऊंचाई पर जल का नमूना परीक्षण के लिए जुटाया। दूसरी टीम ने इसी दौरान गंगोत्री, हर्षिल और मनेरी में जल परीक्षण किया, वहीं तीसरी टीम ने बद्रीनाथ के साथ माना, नंदप्रयाग और रूद्रप्रयाग में गंगा के जल के नमूनों का संकलन किया। फिर -4 डिग्री सेल्सियस प्रशीतन अवस्था में लाया गया। इसके लिए ड्राइआइस का इस्तेमाल किया गया।

Created On :   22 Oct 2017 7:47 PM IST

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