पिता के जन्म प्रमाण पत्र से छेड़छाड़ कर नौकरी हासिल करने वाले बेटे को नहीं मिली राहत

Son did not get the job after tampering his fathers birth certificate
पिता के जन्म प्रमाण पत्र से छेड़छाड़ कर नौकरी हासिल करने वाले बेटे को नहीं मिली राहत
पिता के जन्म प्रमाण पत्र से छेड़छाड़ कर नौकरी हासिल करने वाले बेटे को नहीं मिली राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पिता के जन्म प्रमाण पत्र में छेड़छाड़ किए जाने की बात जानने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दावा करने वाले बेटे को राहत देने से इनकार कर दिया है। मामला आरक्षित पद के जरिए भारतीय डाक सेवा से जुड़ने वाले दत्तात्रेय दुर्गावले से जुड़ा है। दुर्गावले ने खुद के आरक्षित वर्ग (एसटी) से होने का दावा करते हुए 28 अप्रैल 2005 में केंद्र सरकार की भारतीय डाक सेवा से जुड़े थे। नौकरी के बाद उनके जाति के दावे को सत्यापन के लिए जाति प्रमाणपत्र प्रमाणीकरण समिति के पास भेजा गया। समिति ने जांच के बाद दुर्गावाले के जाति से जुड़े दावे को खारिज कर दिया।  समिति के निर्णय के खिलाफ दुर्गावले ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

क्या है मामला 

याचिका में दावा किया कि समिति ने उसके मामले में निर्णय लेते समय उसके पिता के 1932 के जन्म प्रमाणपत्र पर गौर नहीं किया है। जिसमे जाति के कालम में उन्होंने खुद को कोली महादेव बताया है। कोली महादेव एसटी में आता है। किंतु समिति के अधिकारी ने कहा कि उसने जब याचिकाकर्ता के पिता के स्कूल से जुड़े रिकार्ड व जन्म प्रमाणपत्र का मौलिक रजिस्टर देखा तो उसमे अलग जानकारी मिली और उसमे छेड़छाड़ भी नजर आया। जैसे जाति के कोष्ठक में सिर्फ कोली लिखा है, जबकि महादेव शब्द कोली के ऊपर लिखा गया है। जिसकी लिखावट अलग है और लिखने के लिए इस्तेमाल में लाई गई स्याही भी अलग है। स्कूल रिकार्ड में सिर्फ हिंदु कोली लिखा गया है। इस संबंध में समिति की ओर से खंडपीठ के सामने मौलिक रिकार्ड की प्रति पेश की गई। 

याचिकाकर्ता की दलील

मामले पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता के जन्म प्रमाणपत्र में छेड़छाड़ को लेकर समिति ने जो निष्कर्ष निकाला है, वह सही है और याचिकाकर्ता के जाति के दावे को अमान्य करने का निर्णय न्यायसंगत है। इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने खंडपीठ से अनुरोध किया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कार्रवाई न करने के अंतरिम आदेश को आठ हफ्ते के लिए बढ़ा दिया जाए, ताकि वह ऊपरी अदालत में हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती दे सके। इस पर खंडपीठ ने कहा कि अदालत ने 2014 में अंतरिम आदेश दिया था, अब हम इसे जारी नहीं रख सकते है।

Created On :   12 Nov 2017 11:07 AM GMT

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