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अब नगराध्यक्ष सरकार की मर्जी से ही अपना कार्यकाल पूरा करेंगे
डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य में अब नगराध्यक्ष सरकार की मर्जी से ही अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। प्रदेश की नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में सीधे जनता द्वारा चुने गए नगराध्यक्षों को कार्यकाल के पहले ढाई साल तक पद से दूर करने की मांग अब नहीं की जा सकेगी। इसके बाद यदि नगराध्यक्षों को पद से हटाने की मांग नगरसेवक करते हैं तो नगराध्यक्ष के अनियमित कामकाज के बारे में ठोस सबूत देना पड़ेगा।
कलेक्टर के माध्यम से होगी आरोपों की जांच: नगरसेवकों के नगराध्यक्षों पर लगाए गए आरोपों की जांच जिलाधिकारी के माध्यम से की जाएगी। आरोप सही साबित होते हैं तो जिलाधिकारी प्रदेश सरकार के पास रिपोर्ट भेजेंगे। उसी रिपोर्ट के आधार पर सरकार नगराध्यक्षों को पद से हटाने का फैसला लेगी। यानी अब राज्य सरकार चाहेगी तभी नगराध्यक्ष अपने पद से हटेंगे। मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल ने नगराध्यक्षों को विशेष अधिकार और स्थिरता देने का फैसला लिया है। इसके लिए मंत्रिमंडल ने महाराष्ट्र नगरपरिषद, नगरपंचायत व औद्योगिक नगरी अधिनियम-1965 में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी करने को मंजूरी दी। मंत्रिमंडल के फैसले के अनुसार, नगर परिषद की निधि व सरकारी अनुदान से किए जाने वाले कामों को वित्तीय मंजूरी देने का अधिकार अब नगराध्यक्ष के पास होगा। इसके अलावा नगर परिषद के मुख्याधिकारी की भूमिका और प्रशासकीय जवाबदारी भी स्पष्ट की गई है। सदन में गैर कानूनी रूप से रखे गए प्रस्ताव को विखंडित करने का अधिकार मुख्याधिकारी के पास होगा।
हर माह सभा का भी है प्रावधान: नप व नपं में आमसभा दो महीने के बजाय एक महीने में बुलाने का प्रावधान किया गया है। ज्ञात हो कि नगरसेवक के साथ नगराध्यक्ष का चयन भी जनता द्वारा ही किए जाने के बाद सीधे नगराध्यक्ष पर आरोप लगाकर पद से हटाने की राजनीति होती है। नगराध्यक्ष का कार्यकाल स्थायी रूप से पूरा हो इस उद्देश्य से राज्य सरकार ने दो वर्ष पूर्व जो निर्णय लिया वह काफी हद तक सफल रहा है। फिर भी बीच-बीच में राजनीतिक गहमागहमी और कई बार नगराध्यक्ष की मनमानी सामने आती रही है। सरकार ने इन सारे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
Created On :   10 Jan 2018 5:59 AM GMT