मरने के बाद भी संघर्ष, 2588 किसानों की फाइलें बंद, अपात्र घोषित

Struggle even after death - Files of 2588 farmers closed, declared ineligible
मरने के बाद भी संघर्ष, 2588 किसानों की फाइलें बंद, अपात्र घोषित
नागपुर मरने के बाद भी संघर्ष, 2588 किसानों की फाइलें बंद, अपात्र घोषित

डिजिटल डेस्क, नागपुर. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के समय राष्ट्रीय स्तर पर किसान आत्महत्या से विदर्भ चर्चा में आया था। इसे विदर्भ पर कलंक की तरह देखा जा रहा था। विदर्भ का यह कलंक अभी भी खत्म नहीं हो रहा है। इस कलंक को धोने के लिए तत्कालीन सरकार ने 2008 में 60 हजार करोड़ की कर्जमाफी के विदर्भ पैकेज की घोषणा की थी, फिर भी यह धुला नहीं। किसान आत्महत्या की घटनाएं निरंतर जारी हैं। नागपुर विभाग अंतर्गत पिछले 22 साल में 5327 किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें 2665 किसान परिवार को सरकार से मदद मिली है। 25.97 करोड़ रुपए इन्हें आर्थिक सहायता के रूप में बांटा गया, लेकिन 2588 किसान आत्महत्या की घटनाएं सरकारी मानकों पर अब तक खरी नहीं उतर रही हैं। सरकार ने इन्हें मदद के लिए पात्र मानने से इनकार कर दिया है। 74 प्रकरण ऐसे हैं, जिन पर अभी तक फैसला नहीं हो पाया है। जांच के लिए प्रकरण लंबित है। पीड़ित परिवार घर का मुखिया चले जाने के बाद भी संघर्ष कर रहा है।

अनेक कारण माने जाते हैं : किसान आत्महत्या के पीछे विविध कारणों को गिनाया जाता है। अतिवृष्टि, सूखा से फसल बर्बाद, बैंक और साहूकारों का कर्ज, सिंचाई की अपर्याप्त सुविधा या फिर अन्य सुल्तानी संकट। समय-समय पर यह तस्वीरें सामने आती रहीं। कारण जो भी हो, लेकिन उसका सीधा असर किसानों की आर्थिक व मानसिक स्थिति पर पड़ा। सहन-शक्ति समाप्त होने पर अंतिम पर्याय के रूप में किसान ने फंदे को अपनाया। 2001 से 2022 तक नागपुर विभाग के छह जिलों में 5327 किसानों ने आत्महत्या की है। सर्वाधिक आत्महत्या वर्धा और चंद्रपुर में दर्ज की गई। वर्धा में 2248 और चंद्रपुर में 1075 आत्महत्या का आंकड़ा है।

मामला जांच समिति के पास : 5327 आत्महत्या की घटनाओं में से सिर्फ 2665 प्रकरण ही सरकारी मानकों पर खरे उतरे हैं। इन मामलों में सरकार ने तय नियमानुसार पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद उपलब्ध कराते हुए उन्हें 25.97 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए। 2588 प्रकरणों को सरकार ने अपात्र माना है। सरकार का मानना है कि यह मामले घरेलू कलह या किसी और अन्य वजह से हुई हैं, लेकिन वजहों के पीछे के कारणों को जानने का सरकार ने साहस नहीं दिखाया। लिहाजा, सरकार पर किसान आत्महत्या को लेकर दोहरा मापदंड अपनाने के आरोप लग रहे हैं। वर्ष 2022 में 339 किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें से 74 प्रकरणों में सरकार ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है। इन्हें जांच समिति के पास भेजा गया है।

नागपुर जिला भी पीछे नहीं : मेट्रोपॉलिटिन सिटी कहे जाने वाले नागपुर जिले में भी किसान आत्महत्या कम नहीं है। नागपुर जिले में हजार के करीब यानी 974 किसानों ने 22 साल में आत्महत्या की है। इसके बाद भंडारा में 650, गोंदिया में 291 और गड़चिरोली में 89 आत्महत्या दर्ज की गई। फिलहाल सभी आत्महत्या की घटनाओं को सरकार ने नैसर्गिक संकट या कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या किए जाने का केस मानने से इनकार कर दिया है।

योजनाएं भी बेअसर 

25 जून 2015 को सरकार ने किसानों को आत्महत्या से दूर रखने के प्रयास के तहत आत्महत्याग्रस्त जिलों में जिला स्तरीय समिति गठित की थी। समिति के माध्यम से किसानों के लिए चेतना अभियान चलाया गया। साथ ही वसंतराव नाईक शेती स्वावलंबन मिशन तैयार किया गया, लेकिन इन योजनाओं का भी कोई लाभ मिलता नहीं दिखा। विदर्भ की बात करें तो 2001 से 2022 तक कुल 24101 मामले सामने आए।
 

Created On :   30 Jan 2023 7:27 PM IST

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