जेब से खर्च कर देनी पड़ी विद्यार्थियों को पुस्तकें ,तब जाकर मिली माफी

Students had to spend books out of pocket, then got forgiveness
जेब से खर्च कर देनी पड़ी विद्यार्थियों को पुस्तकें ,तब जाकर मिली माफी
जेब से खर्च कर देनी पड़ी विद्यार्थियों को पुस्तकें ,तब जाकर मिली माफी

डिजिटल डेस्क,नागपुर। एक गटशिक्षाधिकारी को लापरवाही  इतनी भारी पड़ी कि अपनी जेब से किताबें खरीद कर विद्यार्थियों को उपलब्ध करानी पड़ी।  बात हिंगना पंचायत समिति की है। दरअसल गटशिक्षाधिकारी ने कक्षा पांचवीं के विद्यार्थियों को हिंदी की पुस्तकें ही उपलब्ध नहीं करवाई, जिससे बच्चों को दो महीने बिना पुस्तक के पढ़ाई करनी पड़ी। प्रसार माध्यमों को भनक लगने पर मामला सुर्खियों में आया। तब शिक्षाधिकारी ने गटशिक्षाधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया और एक वेतनवृद्धि रोकने की कार्रवाई प्रस्तावित की गई। कार्रवाई से बचने गटशिक्षाधिकारी ने आखिरकार जेब से पैसे खर्च कर विद्यार्थियों को पुस्तक उपलब्ध कराई, जिसके बाद उन्हें माफी दे दी गई।

पुस्तकों की मांग में लापरवाही

सरकारी स्कूलों में दिन-ब-दिन विद्यार्थी संख्या तेजी से घट रही है। इसे बढ़ाने के लिए पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को नि:शुल्क पुस्तकें, मध्याह्न भोजन, शालेय गणवेश देने आदि की विविध योजनाएं चलाई जाती हैं। पुस्तकों की आपूर्ति बालभारती की ओर से की जाती है। शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले संबंधित पंचायत समिति के गटशिक्षाधिकारी विद्यार्थी संख्या के अनुसार पुस्तकों की मांग करते हैं। जिले के सभी 13 पंचायत समितियों के गटशिक्षाधिकारियों की मांग पर स्कूल खुलने से पहले ही बालभारती ने पंचायत समिति स्तर पर पुस्तकें भेज दी। लेकिन हिंगना पंचायत समिति के गटशिक्षाधिकारी बालभारती से कक्षा पांचवीं की हिंदी पुस्तकें मांगना भूल गए। लिहाजा हिंदी की पुस्तक छोड़ अन्य पुस्तकें पंचायत समिति स्तर पर भेज दी गईं। हिंगना तहसील में पांचवीं कक्षा के 1875 विद्यार्थी हैं। उन्हें हिंदी की पुस्तक नहीं मिली।

गलती पर पर्दा डालते रहे

गटशिक्षाधिकारी को अपनी गलती का अहसास हो गया। तब उन्होंने बाद में सप्लाई करने का बहाना बनाकर अपनी गलती पर पर्दा डालते रहे। शिक्षकों की शिकायतें बढ़ने पर केंद्र प्रमुख के माध्यम से पुरानी पुस्तकें विद्यार्थियों को उपलब्ध कराने का मौखिक फरमान जारी कर आगे शिकायत नहीं करने की ताकीद दी गई। दो महीने इंतजार के बाद भी पुस्तक नहीं मिलने पर बवाल हो गया। मामला शिक्षाधिकारी तक पहुंचा। पुस्तकों की आपूर्ति करने महाराष्ट्र शिक्षण परिषद को 3 पत्र भेजे गए, लेकिन पुस्तकें नहीं मिली। दो महीने विद्यार्थी पढ़ाई से वंचित रह गए। तब शिक्षाधिकारी ने गटशिक्षाधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया और एक वेतनवृद्धि रोकने की कार्रवाई प्रस्तावित की गई। अपने ऊपर मामला उलटता देख गटशिक्षाधिकारी ने जेब से खर्च कर विद्यार्थियों को पुस्तकों का वितरण किया। 

उठाया पुस्तकों का खर्च

विद्यार्थियों को हिंदी की पुस्तक नहीं मिलने पर गटशिक्षाधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसके बाद उन्होंने अपनी जेब से खर्च कर विद्यार्थियों को पुस्तक उपलब्ध कराया है। तकनीकी गलती हुई, जानबूझकर ऐसा नहीं किया गया। इसके लिए कोई कार्रवाई करना उचित नहीं है।
चिंतामण वंजारी, शिक्षाधिकारी (प्राथमिक), जिला परिषद नागपुर
 

Created On :   1 Nov 2019 6:13 AM GMT

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