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जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के पास 5 साल से नहीं है फायर एनओसी

डिजिटल डेस्क,सतना। जिला अस्पताल पिछले 5 साल से बिना फायर एनओसी के चल रहा है। जिला अस्पताल प्रबंधन को वर्ष 2017 में एक साल के लिए इस शर्त पर प्रोवीजनल फायर एनओसी मिली थी कि एक साल के अंदर अग्नि सुरक्षा से संबंधित सभी आवश्यक उपाय सुनिश्चित कर लिए जाएं, लेकिन लापरवाही की हद तो ये है कि इस बीच आज तक फायर सेफ्टी के प्रबंध नहीं किए गए। जिला अस्पताल प्रबंधन के दावे के मुताबिक 5 माह के अंदर तकरीबन 3 मर्तबा फायर एनओसी हासिल करने की कोशिश की गई लेकिन फायर सेफ्टी के पैमाने पूरे नहीं होने के कारण सफलता नहीं मिली।
बेड क्षमता 400 : हजार के पार ओपीडी, रोज भर्ती होते हैं 150 से ज्यादा मरीज
जिला अस्पताल की मौजूदा क्षमता 400 बेड है। अस्पताल प्रबंधन ने स्वयं स्वीकार किया कि औसतन प्रतिदिन ओपीडी एक हजार के पार रहती है। हर दिन गंभीर किस्म के लगभग 150 मरीज भर्ती किए जाते हैं। ऐसा कोई दिन नहीं होता जब जिला अस्पताल में मरीजों की भर्ती स्थिति 400 के पार न रहती हो। इतना ही नहीं जोखिम इस बात का भी लगभग सवा 7 एकड़ में फैले जिला अस्पताल के इसी परिसर में 3 आक्सीजन प्लांट भी स्थित हैं। जानकारों का मानना है कि जिला अस्पताल में अग्नि से सुरक्षा भगवान के भरोसे है।
हादसे से सबक नहीं : एससीएनयू में लग चुकी है आग
जबलपुर के एक मल्टी स्पेशलिटी हास्पिटल में भीषण अग्नि हादसे के बाद यहां आननफानन में जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.एके अवधिया ने 2 जुलाई को दोपहर 2 बजे से सभी 47 निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों के संचालकों की बैठक बुलाई है। सीएमएचओ के दावे के मुताबिक सभी संचालकों से फायर एनओसी और इलेक्ट्रिक आडिट रिपोर्ट मांगी गई है। जानकारों का कहना है कि यह हादसे के बाद की महज स्वाभाविक सरगर्मी है। हादसों से सच में अगर सबक लिया जाता तो जिला अस्पताल की अपनी फायर एनओसी होती। उल्लेखनीय है, वर्ष 2011 में इसी जिला अस्पताल की एससीएनयू (नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई) शार्ट सर्किट से खाक हो गई थी।
47 निजी अस्पतालों में से सिर्फ 2 के पास हैं फायर सेफ्टी के इंतजाम
जिला अस्पताल के अलावा जिला मुख्यालय में मौजूदा समय में संचालित 47
निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में से महज 2 प्रायवेट हास्पिटल के पास नगर निगम की फायर एनओसी है। इसके अलावा एक भी अस्पताल के पास फायर सेफ्टी के प्रबंध शासन के तय मानकों की कसौटी में खरे नहीं हैं। जानकारों के मुताबिक शहर के 20 प्रतिशत नर्सिंग होम में सुरक्षा के प्रबंध 20 से 50 प्रतिशत तक हैं। अराजकता की हद का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 80 नर्सिंग होम्स और निजी अस्पतालों के पास भवन की अनुज्ञप्तियां नहीं हैं। कोई आवास तो कोई शैक्षणिक संस्थान या फिर कोई क्लीनिक की भवन अनुमति पर चल रहा है। जबकि नियमों के तहत निजी अस्पताल या नर्सिंग होम का संचालन 100 फीसदी सुरक्षा मानकों पर ही संचालित किया जा सकता है।
50 लाख के खर्चे का अनुमान,मगर न हर्र लगे न फिटकरी
जानकारों के एक अनुमान के अनुसार जिला अस्पताल में 100 फीसदी फायर सेफ्टी के मानक अपनाने के लिए लभगभ 50 लाख रुपए खर्च करने होंगे। पर प्रश्न यह है कि मरीजों,परिजनों और मेडिकल स्टाफ की सुरक्षा के लिए इतना बजट आए कहां से? इसीलिए जिला अस्पताल प्रबंधन हर्र लगे न फिटकरी की तर्ज पर नगर निगम प्रशासन से फायर एनओसी हासिल करने की कोशिश में है। विगत 5 माह में प्रबंधन ने ऐसी तीन कोशिशें की हैं। निगम प्रशासन का कहना है कि फायर सेफ्टी के पैमाने पूरे होने पर ही एनओसी संभव है।
बाधक हैं 2 दस्तावेज
फायर एनओसी के लिए 2 दस्तावेज जरुरी हैं। एक अस्पताल भवन के निर्माण की ऐसी अनुमति,जिसमें अस्पताल दर्ज हो। और दूसरा - टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की ऐसी अनुमति जिसमें भी प्रयोजन अस्पताल अंकित हो। जिला अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि जिला अस्पताल की बिल्डिंग वर्ष 1956 में बनाई गई थी। अब 66 वर्ष बाद भी दोनों दस्तावेज नहीं है। इतना ही नहीं अस्पताल प्रबंधन के सामने अग्नि सुरक्षा के लिए आवश्यक उपकरणों की खरीदी और स्थापना के लिए भी बजट का संकट है। कुल मिलाकर जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में अग्नि से सुरक्षा का भगवान मालिक है।
फैक्ट फाइल
जिला अस्पताल
स्थापना: 1956
बेड क्षमता : 400
प्रतिदिन ओपीडी : 1000 के पार
रोज भर्ती : लगभग 150
स्थिति : 400 से ज्यादा मरीज पूरे समय अस्पताल में
बड़ा खतरा: कैंपस में ही हैं 3 आक्सीजन प्लांट
Created On :   2 Aug 2022 3:19 PM IST












