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स्कूल के विकास में अपनी जेब का पैसा लगाता है पूरा स्टॉफ - बदल गई शासकीय स्कूल की तस्वीर
डिजिटल डेस्क शहडोल । शासकीय स्कूलों का जिक्र आते ही टूटी-फूटी दीवारें, जर्जर भवन, उपयोगहीन शौचालय और गंदा मैदान की तस्वीर उभकर सामने आती है। दैनिक भास्कर के मेरा स्कूल, मेरा गौरव अभियान के दौरान अनेक स्कूलों की दयनीय हालत सामने आ भी चुकी है, लेकिन जिले में ही एक ऐसा शासकीय विद्यालय है, जहां के हालात किसी निजी स्कूल से कम नहीं है। वह स्कूल है मुख्यालय से लगे ग्राम कोटमा का शासकीय हाई स्कूल व जन शिक्षा केंद्र। विद्यालय में स्वतंत्र सभागार, सुसज्जित पुस्तकालय, कार्यशील प्रयोगशाला, व्यवस्थित स्टाफ रूम, सभी कक्षाओं में फर्नीचर, क्लास रूम में पर्दे, खेल के दो भव्य मैदान, प्रशासकीय व शैक्षणिक के अलग-अलग खण्ड, पेवर ब्लाक युक्त शौचालय विद्यालय के बेहतर प्रबंधन की ओर इंगित कर रहे हैं। उपरोक्त समूची सुविधाएं शासकीय नहीं बल्कि प्राचार्य और उनके स्टॉफ द्वारा जुटाई गई हैं। शासकीय मदद मिलने की प्रक्रिया इतना लंबा होता है कि मिलने तक में उस चीज की उपयोगिता लगभग समाप्त हो जाती है। इसलिए स्टाफ अपनी जेब से राशि से खर्च करने के साथ लोगों से सहयोग भी लेते हैं। कोटमा में वर्ष 1955 से प्राथमिक स्कूल के रूप में शुरुआत हुई थी। उन्नयन होकर 1969 में माध्यमिक इसके बाद वर्ष 2006 में हाई स्कूल के रूप में उन्नयन हुआ। यहां कक्षा से एक से 10 वीं तक की कक्षाएं संचालित हो रही हैं। इनमें वर्तमान में 369 विद्यार्थी दर्ज हैं। टीचिंग स्टाफ पर्याप्त है। लेकिन हाई स्कूल में अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान व हिन्दी के नियमित टीचर न होने पर अतिथि शिक्षकों की सेवाएं ली जा रही हैं।
पहले ऐसे नहीं थे हालात
स्कूल की तस्वीर बदलने में मौजूदा प्राचार्य संजय पाण्डेय का बड़ा योगदान रहा है। वर्ष 2012 में उनके यहां पदस्थ होने के पूर्व विद्यालय की हालत अन्य स्कूलों की तरह दयनीय थी। सामने बाउण्ड्री तो थी, लेकिन सुरक्षित नहीं थी। स्कूल के पीछे का क्षेत्र जहां प्रायमरी व खेल मैदान थे गंदगी से भरे हुए थे। स्टॉफ रूम व बैठक हाल के भवन को डिस्मेंटल योग्य बता दिया गया था। लेकिन प्राचार्य व स्टाफ की पहल पर प्रशासनिक भवन की मरम्मत कराकर टाइल्स, पेवर ब्लाक लगवाकर आकर्षक बनवा दिया गया है। भवन का द्वार पीछे की ओर कराकर खेल मैदान को दुरुस्त कराया गया। बैठक हाल व कक्षाओं में फर्नीचर आदि की व्यवस्था कराई गई। संसाधन जुटाने में जो राशि खर्च होती है उसका अधिकांश हिस्सा स्टाफ वहन करता है। कुछ मदद बाहर से ली जाती है। दान दाता बढ़ चढ़कर भागीदारी करते हैं।
आदर्श विद्यालय बनाने का प्रयास
-हमारी ड्यूटी ही शिक्षा का स्तर बढ़ाकर बच्चों को काबिल बनाने की है। स्कूल में शिक्षा का बेहतर माहौल बनाने के लिए संसाधनों का होना जरूरी है। शासन से मदद मिलती है लेकिन उससे काम नहीं चलता। प्रयास है कि हम इस स्कूल को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करें। इसके लिए यदि हम अपनी राशि खर्च करते हैं तो बड़ी खुशी मिलती है। लोग मदद को आगे आ भी रहे हैं।
-संजय पाण्डेय, प्राचार्य
Created On :   30 Sept 2019 3:12 PM IST