प्रदर्शनकारी महिलाओं ने खोला पहचान के लिए मोर्चा, शुक्रवार को ऐतिहासिक संसद मार्च  

Thousands of farmers, women gathered for demands in the capital
प्रदर्शनकारी महिलाओं ने खोला पहचान के लिए मोर्चा, शुक्रवार को ऐतिहासिक संसद मार्च  
प्रदर्शनकारी महिलाओं ने खोला पहचान के लिए मोर्चा, शुक्रवार को ऐतिहासिक संसद मार्च  

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर से दो सौ किसान संगठनों के बैनर तले हजारों की संख्या में किसान गुरुवार को राजधानी में इकठ्‌ठा हो गए हैं। प्रदर्शनकारी किसानों की संपूर्ण कर्ज माफी और अपने उत्पादों के लिए उचित कीमत दिए जाने की इन अहम मांगों में एक मांग यह भी है कि देश की महिला किसानों की पहचान तय की जाए। अखिल भारतीय किसान सभा (महाराष्ट्र राज्य कमेटी) के बैनर तले विदर्भ के यवतमाल जिले के रालेगांव से दिल्ली पहुंची प्रमिला घारवटकर कहती है कि वह एक किसान है। उनके पति की मृत्यु हुई है। 2 एकड़ खेती है, लेकिन खेती का सात-बारा मेरे नाम नही है। वह बताती है कि जब वह किसान क्रेडिट कार्ड के लिए क्षेत्र के बैंक गई तो अधिकारी ने कहा, पति को साथ लेकर लाओ। नम आंखों से वह कहती है कि सुबह से शाम मै खेती मे काम करती हूं। बावजूद मेरी मेरी पहचान एक मजदूर की है।

मध्यप्रदेश के रीवा जिले के पकरा गांव में अपने खेतों में काम करने वाली सीमा कहती है कि हम रात-दिन काम करते हैं, लेकिन जब फसल के बेचने की बारी आती है तो हमारे घर वाले हमसे पूछना गवारा नही समझते कि बेचना ठीक है या नहीं। वह बताती है कि इतना ही नही, फसलों के बेचने से आया सारा पैसा पुरुष अपने पास ही रख कर हमें ऐसे देते है जैसे हमे मजदूरी दे रहे हो। सीमा कहती है कि खेती के जितने भी कठिन काम है वह हमारे हिस्से में आता है। जैसे कटाई, निंदाई, फसल का रख-रखाव आदि। यह काम पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ही करती हुई दिख जाती है। पुरुष का काम खेतों की रखवाली करना है।       

स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के प्रमुख राजू शेट्‌टी का कहना है कि भारत में खेती करने के तरीके का इजाद करने वाली महिला ही है। घर के काम-काज से लेकर खेतों के भी ज्यादातर कामों की जिम्मेदारी महिलाओं के ही कंधों पर होती है, लेकिन आज भी उसे महिला किसान के तौर पर पहचान नही मिली है। वह बस किसान की पत्नी के रुप में ही जानी जाती है। शेट्‌टी ने कहा कि मुश्किल से 5-10 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर खेती होगी। हमारा उदेदश भी यह है कि कृषि में वास्तविक योगदानकर्ता को उनकी पहचान और उनका हक दिलाया जाए। अखिल भारतीय किसान समन्वय संघर्ष समिति की शुरु से यही भूमिका है।

अगर 2011 के राष्ट्रीय नमूना स र्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के आंकडों को देखे तो पता चलता है कि भारत में ग्रामीण महिलाएं कृषि कार्यबल का 79 प्रतिशत हिस्सा हैं, जबकि उनमें से केवल 9 प्रतिशत के पास ही अपनी कृषि भूमि है। इससे यह साफ होता है कि कृषि क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की स्थिति हमारे और आपकी सोच में संकीर्ण है।

शुक्रवार को होगा किसानों का ऐतिहासिक संसद मार्च

किसान मुक्ति मार्च के पहले दिन स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव और जय किसान आंदोलन के संयोजक अभिक साहा के नेतृत्व में देशभर से आए किसानों ने बिजवासन से रामलीला मैदान तक पैदल मार्च की। इस किसान मार्च में विभिन्न राज्यों बिहार, झारखंड, उडिसा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, राजस्थान और उत्तरप्रदेश सहित देश के अलग-अलग हिस्सों से चलकर राष्ट्रीय राजधानी पहुंचे है।

दिल्ली के आनंदविहार, निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन और धौला कुआं से चलकर किसान अलग-अलग मार्गों से किसान जब रामलीला मैदान की ओर बढे तो कई जगहों पर ट्रैफिक बाधित हुआ। स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने मोदी सरकार को अब तक की सबसे किसान विरोधी सरकार बताते हुए कहा कि किसान मुक्ति मार्च देश के किसानों की लूट, आत्महत्या, शोषण और अन्याय से मुक्ति की यात्रा है। इस यात्रा में किसान अकेले नही है बल्कि पूरा देश उनके साथ चल रहा है।

यादव ने 30 नवबंर की संसद मार्च में ज्यादा से ज्यादा संख्या में हिस्सा लेने की अपील करते हुए कहा हमारे देश को सही और सार्थक दिशा किसानों की खुशहाली के बिना नही मिल सकती। उन्होने कहा कि दो दिन की हो रही किसान मुक्ति मार्च की मांग है कि संसद की विशेष सत्र बुलाकर किसान संसद द्वारा पारित किए गए दोनों महत्वपूर्ण विधेयकों को पास किया जाए। पहला कानून किसानों की ऋण मुक्ति का है, जबकि दूसरा कृषि उपज का उचित और लाभकारी मूल्य से जुड़ा है। 

Created On :   29 Nov 2018 4:36 PM GMT

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