टाइगर प्रोजेक्ट पर खतरा, वन विभाग की उदासीनता का तस्कर उठा रहे फायदा

Tiger project is incomplete due to forest departments apathy
टाइगर प्रोजेक्ट पर खतरा, वन विभाग की उदासीनता का तस्कर उठा रहे फायदा
टाइगर प्रोजेक्ट पर खतरा, वन विभाग की उदासीनता का तस्कर उठा रहे फायदा

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। जंगल के समीप बसे गांव के किसान परेशान हैं। खेतों पर लहलहाती खड़ी फसल जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं। खेतों के चारों तरफ करंटयुक्त घेरा डालना उनकी मजबूरी है। किसानों के इस कदम से न ही खेत सुरक्षित रह पा रहे हैं और न ही जंगली जानवर। समय-समय पर खेतों में लगे करंट से जानवरों की मौत खासतौर पर बाघों की मौत से टाइगर प्रोजेक्ट पर सवालिया निशान लगने लगा है। यहां यह बताना भी जरूरी है इस क्षेत्र में बाघों के अवशेषों की तस्करी करने वाले भी सक्रिय हैं । किसान और फारेस्ट की कमजोरी का ये लोग फायदा उठाकर अपने अंजाम तक पहुंच जाते हैं।  वैसे देखा जाए तो फारेस्ट का काम है जंगल में ही बाघों के लिए पानी और उनके खाने की व्यवस्था करना, लेकिन यह सब न हो पाने से इस तरह की घटनाएं सामने आ रही है।

टाइगर प्रोजेक्ट पर मंडरा रहा खतरा

चंद्रपुर जिले के साथ विदर्भ में खेतों के संरक्षण के लिए लगाए तारों से करंट प्रवाहित करने से बाघ व अन्य वन्यजीवों की मृत्यु होने के मामले सामने आ रहे हैं। जिससे भविष्य में व्याघ्र संवर्धन की चिंता सताने लगी है। समय रहते इन पर उपाय योजना नहीं करने से बाघों की जान को खतरा होने की बात कही जा रही है। विदर्भ में बढ़ती बाघों की संख्या और फसलों को बचाने के लिए किसान द्वारा किए जा रहे प्रयास के चलते "किसान बनाम बाघ" की स्थिति दिखाई दे रही है। इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए उपाय योजना करना जरूरी है वरना बिजली के तार बाघों के लिए काल बनने का सिलसिला चलता रहेगा।  

एक के बाद एक इस तरह हुई बाघों की मौत

गौरतलब है कि गत सप्ताह चिमूर वनपरिक्षेत्र अंतर्गत आमड़ी (बेगड़े) स्थित गट क्रमांक 63 में किसान शेंडे के खेत में बाघ की मृत्यु होने का मामला सामने आया था। उसकी मौत करंट लगने से होने की पुष्टि हुई है। हालांकि, आरोपियों ने खुद को बचाने के चक्कर में मृत बाघ को जला दिया था। गत सप्ताह ही 4 नवंबर को चपराला में रेडियो कॉलर लगाकर छोड़ी गई बाघिन की भी करंट लगने से मौत हुई थी। इसके पहले  13 अक्टूबर को ब्रह्मपुरी से छोड़ी गई बाघिन भी खेत में लगाए गए विद्युत तारों से प्रवाहित करंट से बोर व्याघ्र प्रकल्प के समीप वर्धा जिले में मृत पाई गई।।

नागपुर जिले में भी इस तरह की अनेक घटनाएं हुई हैं। रेडियो कॉलर वाले प्रसिद्ध श्रीनिवास बाघ ब्रह्मपुरी वन विभाग में 27 अप्रैल को मृत पाया गया। इसके पूर्व मध्यचांदा कोठारी अंतर्गत 3 नवंबर 2016 को एक बाघ मृतावस्था में पाया गया। 3 दिसंबर 2016 को तेलंगाना राज्य के कागजनगर में मध्यचांदा वन विभाग से स्थलांतरित बाघ की भी इसी वजह से मृत्यु हुई थी। ये घटनाएं बाघों को कॉलर आईडी होने तथा किसी के जानकारी देने के बाद ही उजागर हुईं। इन घटनाओं का अब तक पर्दाफाश नहीं हुआ है। बाघ के साथ चंद्रपुर जिले में जंगली भैंसों की भी करंट से मृत्यु होने की घटना हुई थी। तार की बाड़ वाले एक खेत में कई वन्यजीवों के कंकाल भी निकाले गए थे। इससे तृणभक्षी वन्यजीवों की मौत होने के मामले हो सकते हैं।  

फसलों को बचाने लिया जा रहा करंट का सहारा

यहां के किसान सालभर में एक ही फसल के भरोसे रहते हैं। फसल बचाने के लिए वे कई प्रयास करता है। वन्यजीवों से फसल को बचाने के लिए किसानों द्वारा इस तरह के तारों का बाड लगाकर वहां करंट छोड़ा जाता है। विदर्भ के किसान मौसम के संकट से फसलों को बचने के बाद वन्यजीव से फसल बचाने के लिए जान की परवाह किए बिना जिंदा तार छोड़ देते हैं। ऐसा गलत तरीका अपनाने के बावजूद इसी तरह के प्रयास बदस्तूर जारी हैं। करंट से किसानों की भी मृत्यु होने की घटना सामने आ चुकी हैं। ऐसे गलत तरीके से खेत में कंरट का प्रवाह छोड़ना समर्थनीय नहीं है। बिजली और वन विभाग का कोई नियंत्रण नहीं होने से इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं।

ये भी हैं कारण

विदर्भ में बढ़ रही बाघों की संख्या, उनका होने वाला स्थलांतरण, स्थलांतरण होते समय भ्रमण मार्ग सिर्फ जंगल न होकर खेत परिसर, गांव, सड़क, नदी, नालों को लांघकर आगे वनक्षेत्र में सैकड़ों किमी चलकर आना है। वन व्याप्त गांव की खेती, जंगल से सटे खेत परिसरों में वन्यजीवों का विचरण रहता ही है। खेत में रहने वाले मवेशी अथवा परिसर में आने वाले जंगली सुअर, नीलगाय व अन्य तृणभक्षी प्राणियों का शिकार करने बाघ आता ही है। ऐसे में वन्यजीवों से फसल को बचाने के लिए किसान बिजली प्रवाहित करंट वाले तार लगाकर रखते हैं। जिससे वहां बाघों के लिए खतरा बढ़ जाता है। वन के साथ बिजली विभाग द्वारा इस तरह की घटनाओं को रोकने से बिजली का गलत उपयोग नहीं होगा, ऐसा कहा जा रहा है।  

बफर जोन की तर्ज पर उपाय योजना जरूरी

चंद्रपुर की ईको-प्रो संस्था के अध्यक्ष बंडू धोतरे का कहना है कि विदर्भ में बिजली के करंट से बाघों की मृत्यु होने की घटनाएं आए दिन सामने आ रही है, जो गंभीर व  चिंताजनक हैं। इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए वनमंत्री सुधीर मुनगंटीवार को ईको-प्रो संस्था ने ज्ञापन देकर उपाय योजना करने की मांग की है। बाघों की मृत्यु और फसल नुकसान रोकने के लिए ताड़ोबा के बफर जोन की तर्ज पर "व्यक्तिगत स्तर पर सौर ऊर्जा कुंपन अनुदान तत्व" पर देने की मांग की है। 

Created On :   10 Nov 2017 1:28 PM IST

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