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बिना मान्यता एक साल से मेयो में चल रहा है डायलिसिस सेंटर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (मेयो) में डायलिसिस सेंटर में अनियमितताओं के कारण मरीजों की जान से खिलवाड़ की जा रही है। एक साल से अधिक हो गया मगर अभी तक पूरी तरह से इसे मान्यता नहीं मिली। ऐसे में कोई हादसा होने पर जिम्मेदारी कौन लेगा? इस सवाल का जवाब भी प्रबंधन के पास नहीं है। लगातार शिकायतों के बाद भी डायरेक्ट्रेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एडं रिसर्च (डीएमईआर) से लेकर मेयो प्रबंधन ने चुप्पी साध रखी है। जर्मन रिनल केयर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के साथ पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर किडनी के मरीजों को जीवनदान देने के लिए मेयो में यह सेंटर बनाया गया है। मरीजों के परिजनों की शिकायत है िक उनसे बाहर से इंजेक्शन मंगवाए जाते हैं। डायलिसिस के लिए समय भी कम दिया जाता है।
जारी है पत्र व्यवहार
पता चला है कि डायलिसिस सेंटर को मेयो में संचालित तो कर दिया गया, लेकिन जर्मन रिनल केयर प्रा. लि. को अभी तक प्रशासकीय मान्यता नहीं मिली है। प्रशासकीय मान्यता के लिए मेयो प्रबंधन द्वारा चिकित्सा शिक्षा एवं शोध संचालनालय मुंबई को पत्र भेजा गया है, लेकिन मुंबई से मान्यता प्राप्त का पत्र अभी तक मेयो प्रशासन को नहीं मिला है। मेयो में डायलिसिस सेंटर संचालित हुए एक साल से अधिक समय हो चुका है। ऐसे में यदि किसी मरीज की मृत्यु होती है, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा यह जानकारी किसी अधिकारी के पास नहीं है। मामले में जब जिम्मेदारी की बात आती है, तो डीएमईआर डॉ. प्रवीण शिंगारे और मेयो प्रभारी डीन डॉ. अनुराधा श्रीखंडे एक-दूसरे पर जिम्मेदारी ढकेल रहे हैं।
करार सार्वजनिक नहीं
शुरुआत से ही विवादों में रहे प्राइवेट कंपनी के डायलिसिस सेंटर को मेयो की कैजुअल्टी में नवनिर्मित रेजिडेंट रेस्ट रूम को तोड़कर जगह दी गई थी। इसके बाद मोमेरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) को लेकर विवाद खड़ा हुआ। क्योंकि यह स्पष्ट ही नहीं हो सका कि मरीजों को क्या फायदा मिलने वाला है। जानकारी अनुसार कंपनी से हुए करार को सार्वजनिक नहीं किया गया। इससे डायलिसिस का शुल्क तय नहीं हो सका, जबकि मेयो द्वारा निजी संस्थान को बिजली, पानी और जगह की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
इनकी शिकायत
बिनाकी ले-आउट निवासी मनोज मुडणीकर ने लिखित शिकायत की कि महात्मा ज्योतिबा फुले जीवनदायी आरोग्य योजना में शामिल होने के बाद भी उनसे हर बार रक्त बढ़ाने वाला इंजेक्शन इथ्रोपोंइटिन बाहर से मंगवाया जाता है। महीने में 4 बार 600-700 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। 2-3 घंटे डायलिसिस किया जाता था, जिसकी शिकायत करने के बाद उसकी समय सीमा 4 घंटे की गई। नागपुर निवासी मनीषा बोले ने बताया कि वह महात्मा ज्योतिबा फुले जीवनदायी आरोग्य योजना में उपचार ले रही है, लेकिन उनसे बाहर से इंजेक्शन मंगवाया जाता है। हर बार छोटी-छोटी चीजों के लिए रुपए मांगे जाते हैं। योजना में मुझे यह सब नि:शुल्क मिलना चाहिए।
आमने-सामने डीएमईआर
डीएमईआर डायरेक्टर डॉ. प्रवीण शिंगारे के मुताबिक पिछले दिनों प्रशासकीय मान्यता के सवाल पर डीएमईआर-डीन ने अपना पल्ला झाड़कर एक-दूसरे को जिम्मेदारी होना बताया था। प्रशासकीय मान्यता का अधिकार मेयो की डीन को दे िदया है। उनके पास मान्यता देने का अधिकार है, वह दे सकती हैं, इसलिए मान्यता का विषय नहीं है। वहीं मेयो इंजार्च डीन के मुताबिक डॉ. अनुराधा श्रीखंडे प्रशासकीय मान्यता के लिए डीएमईआर को एक बार फिर से पत्र लिखा है। प्रशासकीय मान्यता देने का अधिकार मेरे पास नहीं, उनके पास है।
डायलिसिस सेंटर में 10 बेड
डायलिसिस सेंटर में 10 बेड हैं। इसमें 2 इमरजेंसी मरीजों के लिए आरक्षित रखे जाते हैं। लगातार आ रही शिकायतों के बाद मेयो प्रबंधन ने कहा कि एक शिफ्ट में ही डायलिसिस करें, लेकिन डायलिसिस सेंटर संचालक का कहना है कि सुबह 8 से 12 और दोपहर 1 से 5 की शिफ्ट में डायलिसिस करता है। नियमानुसार एक मरीज को डायलिसिस के लिए 4 घंटे देने पर सप्ताह में 24 मरीजों का डायलिसिस कर सकते हैं। एक मरीज का सप्ताह में दो बार डायलिसिस करना पड़ता है, जबकि डायलिसिस सेंटर द्वारा सप्ताह में 54 मरीजों का डायलिसिस किया जा रहा है। यही वजह है कि मरीज शिकायत करते हैं कि उन्हें 2-3 घंटे ही समय दिया जाता है।
Created On :   17 Dec 2017 4:32 PM IST