मुख्यमंत्री विधानभवन और सांसद पुत्र खेती में मशगूल

मुख्यमंत्री विधानभवन और सांसद पुत्र खेती में मशगूल
  • महाबलेश्वर तालुका स्थित अपने गांव दरे तांब आते रहते हैं सीएम
  • व्यस्ततम दिनचर्या में भी खेतीबाड़ी पर रहती है नजर

भास्कर न्यूज, पुणे। ज्यादातर शहरों में बस जाने के बाद खेती बाड़ी से नाल टूट जाती है। गांव आना- जाना भी औचित्य भर रह जाता है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने गांव और खेती बाड़ी से अपनी ह्याल कभी टूटने नहीं दी। रोजमर्रा की दौड़धूप भरी जिंदगी से थोड़ा समय निकालकर वे सातारा जिले के महाबलेश्वर तालुका स्थित अपने गांव दरे तांब आते रहते हैं। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में भी वे खेतीबाड़ी मवेशियों के लालन पालन के लिए समय निकालते हैं। हालांकि इन दिनों वे विधानसभा के मानसून सत्र में व्यस्त हैं। मगर उनके पुत्र श्रीकांत जोकि लोकसभा सांसद भी हैं, भी उनके नक्शे कदम पर चलते हुए इन दिनों अपने ग्राम की खेतीबाड़ी में व्यस्त हैं। पिछले दो दिन से वे धान की बुवाई में मशगूल हैं, खेती में व्यस्त उनकी कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अक्सर अपने गृहनगर दरे तांब आने के बाद कृषि कार्य में लग जाते हैं। अब उनके नक्शे कदम पर चलकर उनके पुत्र सांसद श्रीकांत शिंदे भी अपने खेत में धान रोपते नजर आए। उन्होंने अपने खेत में मशीनों की सहायता से कीचड़ बनाया। इसके बाद धान का बेड़ा हटाने में भी मदद की। अक्सर ऊंचे पद पर बैठे लोग खेती नहीं करते, लेकिन मुख्यमंत्री के परिवार ने कभी अपने गांव और खेती से नाता नहीं तोड़ा है। बिना यह दिखाए कि मैं अलग हूं, वे हमेशा गांव आते हैं और खेतों में पेड़ लगाने, स्ट्रॉबेरी लगाने, चावल की खेती करने का काम उत्साह से करते हैं। इसलिए एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन भी गए तो भी खेतीबाड़ी करने में पीछे नहीं हटते। उनके पुत्र सांसद श्रीकांत शिंदे कल गांव आये थे और परसों दो दिन तक धान की रोपाई में व्यस्त रहे।

सांसद श्रीकांत शिंदे ने कहा कि, धान के खेत में उगते धान, खिले हुए हरे पहाड़ और मिट्टी में बारिश के नजारे को देखने से एक ऊर्जा मिलती है। खेती में काम करते हुए बलिराजा की कड़ी मेहनत का एहसास हमें अपने हाथों में जिम्मेदारी का एहसास कराता है। यह एहसास आज धान रोपते समय हर पौधे रोपते हुए हो रहा है। मवेशियों की तरह उनका गूंगापन, उनकी ममता सब कुछ अबोल होती हैं लेकिन उन्हें देखकर उनके साथ समय बिताकर एक अलग अनुभूति होती है, जैसे कि वे हमारे साथ बात कर रहे हैं। अपने गांव में आने पर एक अलग ही आनंद का अनुभव होता है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति का यह उपहार जीवन का हिस्सा बनने से अलग नहीं है। ऐसे काम करने के बाद हमें अगले काम के लिए ऊर्जा जरूर मिलती है।

Created On :   18 July 2023 6:17 PM IST

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