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Pune City News: भारतीय खगोलविदों ने खोजी सांप के आकार वाली आकाशगंगा, नाम रखा अलकनंदा

- जेडब्ल्यूएसटी की मदद से खोजी गई
- महाविस्फोट के 1.5 अरब वर्ष बाद पूर्णतः विकसित हुई है अलकनंदा
- यह गैलेक्सी ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं के निर्माण की वर्तमान समझ को दे रही चुनौती
भास्कर न्यूज, पुणे। भारतीय खगोलशास्त्रियों ने नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ( जेडब्ल्युएसटी ) का उपयोग करके अब तक देखी गई सबसे दूरस्थ आकाशगंगाओं में से की खोज की है। यह आकाशगंगा महाविस्फोट के 1.5 अरब साल बाद पाई गई है जो पूरी तरह से विकसित आकाशगंगा है। देखने में यह सांप के आकार की तरह है। यह खोज पुणे स्थित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR) के राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केंद्र (NCRA-TIFR) के शोधकर्ता राशि जैन और डॉ. योगेश वाडदेकर ने की है।
रोचक तथ्य यह है कि डॉ. योगेश वाडदेकर (पुणे) के मार्गदर्शन में राशि जैन (भरतपुर, राजस्थान) पीएचडी कर रही हैं। उनका विषय 3 की रेडशिफ्ट (दूरी तय करने का मानक) के ऊपर स्थित आकाशगंगाओं का अध्ययन करना था। इसी दौरान उन्हें अलकनंदा आकाशगंगा दिखी। यह आकाशगंगा अन्य खोजी गई आकाशगंगाओं से अलग थी। इसपर पिछले ड़ेढ़ साल से सूक्ष्म अध्ययन किया गया। यह शोध अग्रणी यूरोपीय खगोल विज्ञान जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में हाल ही में प्रकाशित हुआ है। इस बारे में उन्होंने दैनिक भास्कर को जानकारी देते हुए बताया कि अलकनंदा एक पूरी तरह से विकसित सर्पिल आकाशगंगा है जो प्रारंभिक आकाशगंगा निर्माण के हमारे सिद्धांतों को चुनौती देती है। यह एक विशाल, सुंदर रूप से संरचित आकाशगंगा है, जो तब मौजूद थी जब ब्रह्मांड अपनी वर्तमान आयु का केवल 10 प्रतिशत था।
मंदाकिनी के समान दिखती है इसलिए रखा अलकनंदा नाम
राशि जैन ने बताया कि गंगा नदी की मुख्य सहायक नदियों में से एक अलकनंदा है, और दूसरी मंदाकिनी है। हमारी अपनी आकाशगंगा का नाम मंदाकिनी (मिल्की-वे) आकाशगंगा है। नई खोजी गई आकाशगंगा मंदाकिनी के समान दिखती है जिससे इसका नाम अलकनंदा रखना उचित समझा गया। उन्होंने बताया कि अलकनंदा लगभग 12 अरब प्रकाश वर्ष दूर एक सर्पिलाकार आकाशगंगा है और हमारी आकाशगंगा की तरह ही इसकी एक भव्य सर्पिलाकार संरचना है। अलकनंदा आकाशगंगा लगभग 4 की रेडशिफ्ट पर है जिसका अर्थ है कि इसका प्रकाश हम तक पहुंचने में 12 अरब साल से अधिक का समय लगा है।
आकाशगंगा के तारों का वजन सूर्य के वजन से 10 अरब गुना ज्यादा
यह आकाशगंगा विशाल द्रव्यमान (वजन) वाली और तेज़ी से तारे-निर्माण करने वाली परिपूर्ण आकाशगंगा है। जेडब्ल्यूएसटी की हाईरिज़ॉल्यूशन का उपयोग करते हुए खगोलशास्त्री जैन और वाडदेकर ने पाया कि आकाशगंगा के तारों में हमारे सूर्य के वजन से 10 अरब गुना ज्यादा वजन है, और यह प्रति वर्ष लगभग 63 सौर द्रव्यमान की दर से नए तारे बना रही है। जो हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी की वर्तमान तारा निर्माण दर से लगभग 20 से 30 गुना अधिक है।
बहुत परिपूर्ण और तेज
खगोलशास्त्रियों का मानना था कि प्रारंभिक ब्रह्मांड में आकाशगंगाएं अस्त-व्यस्त होती थी। यह माना जाता था कि स्थिर सर्पिलाकार संरचनाएं ब्रह्मांड में कई अरब वर्षों बाद ही उत्पन्न होती हैं। सर्वमान्य सिद्धांत यह सुझाव देता था कि प्रारंभिक आकाशगंगाएं गर्म और अव्यवस्थित थीं, और उन्हें शांत होने तथा सर्पिलाकार भुजाओं वाली डिस्क (चक्रिका) में व्यवस्थित होने में अरबों वर्ष लगने चाहिए थे। डॉ. वाडदेकर ने कहा कि अलकनंदा आकाशगंगा एक अलग ही कहानी बताती है। इस आकाशगंगा को केवल कुछ सौ मिलियन वर्षों में 10 अरब सौर द्रव्यमान के तारे जमा करने पड़े और साथ ही सर्पिलाकार भुजाओं के साथ एक बड़ी डिस्क का निर्माण करना पड़ा। यह अविश्वसनीय रूप से तेज़ है।
Created On :   3 Dec 2025 3:29 PM IST












