- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- पुणे
- /
- जिन एचआईवी संक्रमित बच्चों को समाज...
अनोखी मिसाल: जिन एचआईवी संक्रमित बच्चों को समाज ने छोड़ा, उन्हें बुडुक दंपति ने अपनाया

- पुणे के दंपती पेश कर रहे हैं मिसाल
- कई पीड़ित अब अच्छे पदों पर कर रहे हैं नौकरी
- डॉक्टर भी दस्ताने पहनकर करते हैं जांच
Pune News. ऋषिकेश जगताप। शिल्पा और अमर बुडुक दंपति समाज के सामने मिसाल पेश कर रहे हैं। वे तमाम तकलीफें झेलकर एचआईवी संक्रमित बच्चों को खुशी-खुशी अपनाते हैं। उन्हें पाल-पोसकर पढ़ाते हैं। आमतौर पर जहां समाज ऐसे बच्चों का तिरस्कार कर उनसे दूरी बना लेता है, वहीं बुडुक दंपती एचआईवी संक्रमित बच्चों की पूरी देखभाल का बीड़ा उठा रहे हैं। उन्होंने अब तक न केवल 60 एचआईवी संक्रमित बच्चों की देखभाल की, बल्कि उन्हें जीवन में संघर्ष करने लायक बनाया। आज उनमें से कई अच्छे पदों पर नौकरी कर रहे हैं।
फिलहाल बुडुक दंपती 20 बच्चों को संभाल रहे हैं। उन्हें स्कूल भेजने, लाने, खाना खिलाने और रोजमर्रा की सारी जरूरतों का ध्यान रखने जैसी सभी बातों का वे पूरी जिम्मेदारी से ध्यान रखते हैं। उनके द्वारा संभाले गए कुछ बच्चों की शादी भी हो चुकी है। दंपती द्वारा पाली गई एक युवती को शादी के बाद बच्चा हुआ, तो वह एचआईवी निगेटिव था।
मिल चुके हैं 185 पुरस्कार
कात्रज स्थित ‘ममता फाउंडेशन’ नाम के केंद्र में एचआईवी संक्रमित बच्चे लड़के या लड़कियां बाल कल्याण विभाग की अनुमति से भर्ती किए जाते हैं। केंद्र द्वारा कई तरह के सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यक्रम चलाए जाते हैं। अब तक शिल्पा और अमर को सेवा कार्य के लिए 185 पुरस्कार मिल चुके हैं। वे बताते हैं कि हमें पहला पुरस्कार 2008 में मिला और इसके बाद समाज ने हमारे काम को पहचान दी और सराहा।
फाउंडेशन की संस्थापक शिल्पा बुडुक ने बताया कि हमारी शादी 2002 में हुई थी। उस समय हम दोनों नौकरी की तलाश में थे। हमें अनाथ आश्रम में काम मिला और वहीं से हमने एचआईवी संक्रमित बच्चों के लिए काम करना शुरू किया। चार साल तक क्षेत्र में अनुभव लेने के बाद 2007 में दो एचआईवी संक्रमित बच्चों (एक पांच साल और दूसरा छह साल का) की देखभाल शुरू की। तब हमें महसूस हुआ कि इन बच्चों का कोई नहीं है, तो क्यों न हम ही उनका सहारा बनें।
लोग किराए पर नहीं देते थे घर
दंपती ने बताया कि शुरुआत में हमें बहुत विरोध झेलना पड़ा। जहां हम किराए पर रहते थे, वहां से निकाल दिया गया। कई मकान मालिकों ने हमें घर देने से मना कर दिया। बच्चे छोटे थे, उन्हें खेलने के लिए घर से बाहर कहीं नहीं ले जा सकते थे। कभी-कभी तो हमें बच्चों को लेकर टैंट में भी रहना पड़ा। कुछ मकान मालिक 50,000 रुपए तक किराया मांगते थे, सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारे साथ एचआईवी संक्रमित बच्चे रहते थे। हमने हार नहीं मानी और ममता फाउंडेशन की नींव रखी।
डॉक्टर भी दस्ताने पहनकर करते हैं जांच
शिल्पा और अमर बुडुक कहते हैं कि जिन बच्चों की हम देखभाल करते हैं, वे जन्म से ही एचआईवी पॉजिटिव होते हैं। इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती। फिर भी समाज उन्हें अलग नजरों से देखता है। कई लोगों को डर लगता है कि उनके संपर्क में आने से अन्य बच्चों को भी संक्रमण हो सकता है, जबकि ऐसा नहीं है। लोगों को इस बारे में जानकारी और समझ की जरूरत है। आज समाज का नजरिया एचआईवी पीड़ित बच्चों के प्रति काफी हद तक बदल गया है, लेकिन अभी भी कई जगहों पर पुरानी सोच बनी हुई है। डॉक्टर भी चार दस्ताने पहनकर बच्चों की जांच करते हैं। इस सोच को बदलना बहुत जरूरी है। आज के समय में एचआईवी संक्रमितों की संख्या में कमी आई है, क्योंकि लोगों में जागरूकता बढ़ी है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं।
हमारे जाने के बाद पानी छिड़कते थे
उन्होंने बताया कि हम जहां भी बच्चों को लेकर जाते थे, हमारे जाने के बाद लोग वहां पानी छिड़कते थे। स्कूलों में भी बच्चों को एडमिशन नहीं मिल पाता था। कई स्कूलों ने नामांकन से मना कर दिया। बाद में स्थानीय नेताओं की मदद से हमने बच्चों का दाखिला मनपा स्कूलों में करवाया और अब वे पढ़ाई कर रहे हैं। शिल्पा बुडुक बताती हैं कि अब हम कात्रज इलाके में रहते हैं। वहां प्रकाश कदम ने जमीन दी, जिससे हमें बच्चों के लिए स्थायी घर मिला। एक समय ऐसा भी था, जब मुझे घर का किराया देने के लिए मंगलसूत्र बेचना पड़ा था। भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी वहां आ चुकी हैं। उन्होंने हमसे मुलाकात की और स्नेहपूर्वक 500-500 रुपए दिए थे। वह आत्मीय मुलाकात आज भी हमारे लिए अनमोल याद है।
Created On :   9 Nov 2025 8:53 PM IST












